आध्यात्मिक क्रान्ति का संकल्प दिवस – शिवरात्रि पर्व

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आज यह बात बहुत थोड़े लोगों के ध्यान पर है कि महाशिवरात्रि पर्व उस समय की यादगार है जब स्वयं परमपिता परमात्मा ज्योतिर्बिन्दु शिव ने पृथ्वी पर अवतरित होकर एक महान् आध्यात्मिक क्रान्ति की रणभेरी बजाई थी। मातृ-शक्ति को इस क्रान्ति का अग्रदूत बनाया था और उन्हें ‘शिव-शक्ति’ नाम प्रदान किया था। यह कार्य परमात्मा शिव ने उस समय किया जब पृथ्वी पर आत्म-ज्ञान प्रायःलोप था। मनुष्यात्माएं पूर्णतया भौतिकवादी बन कर अपने विचार और व्यवहार में कलुषित हो चुकी थीं। प्रत्येक मानव सुख-शान्ति की चाहना रखते हुए भी दूसरे मनुष्यों को दुःखी और अशान्त कर रहा था जिसके फलस्वरूप वह स्वयं भी दुःखी और अशान्त हो कराह रहा था और भौतिक ज्ञान की मदान्धता में आकर प्रकृति पर विजय पाने की आकांक्षा से प्रेरित वह प्रकृति के मूल स्वाभाविक स्वरूप को नष्ट-भ्रष्ट करने पर उतारू ही नहीं था परन्तु नष्ट-भ्रष्ट कर रहा था। जनसंख्या इतनी बढ़ गई थी कि पृथ्वी उनका भार सहन नहीं कर सकती थी। उनके लिए पर्याप्त अन्न जल उपलब्ध नहीं करा सकती थी। पृथ्वी माँ अपने बच्चों को भूखा-प्यासा देख चिन्तित थी परन्तु उसकी सन्तान मनुष्य-प्राणी फिर भी काम विकार में पूर्ण रूप से लिप्त हो अपने स्वास्थ्य और अपने चरित्र को तो गिरा ही रहे थे पर साथ-साथ अपनी जनसंख्या में दिन प्रतिदिन वृद्धि करते हुए अपनी समस्याओं में भी वृद्धि कर रहे थे। क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार से ग्रसित हो वह ऐसे अस्त्र-शस्त्र बना रहे थे जिनसे समूचे मानव समाज के नष्ट  हो जाने की सम्भावना प्रत्यक्ष होने लगी थी। सर्व प्रकार की भौतिक सामग्रियों के होते भी किसी के हृदय में शान्ति नहीं थी। किसी भी चेहरे पर प्रसन्नता नहीं थी, सभी तरफ जैसे भय, शंका और शत्रुता का वातावरण बन गया था। चहुं ओर त्राहि-त्राहि मची हुई थी। यह पृथ्वी जैसे एक तप्त तवा थी और इस पर रहने वाले मनुष्य उस पर जले हुए मुर्दे से हो गये थे। ऐसे समय में कल्याणकारी शिव परमात्मा ने साधारण मनुष्य तन का आधार लेकर इस तप्त सृष्टि को शीतल किया। अज्ञान में डूबे मानव को ज्ञान का अमृत पिलाया। देहाभिमानी मानव को आत्म-ज्ञान का पाठ पढ़ाया। जिन्होंने उस पा

 को पढ़ा, अपने जीवन को उसके अनुरूप ढाला उन्होंने स्वयं भी अमरत्व प्राप्त किया और पृथ्वी को भी स्वर्ग बनाने का पुरुषार्थ किया। जिन अज्ञानी मानवों ने इस पर ध्यान नहीं दिया और अपने कुकृत्यों में लगे रहे उन्होंने अपने विकृत मस्तिष्क से ऐसे अस्त्र-शस्त्र तैयार किये जिससे उन्होंने मानव कुल का विनाश किया परन्तु यह विनाश भी एक वरदान ही था क्योंकि इससे पृथ्वी का बोझ हल्का हुआ और पृथ्वी पर सतोगुणी मनुष्यों के रहने के लिए शुद्ध वातावरण बना जिससे यही पृथ्वी जो पहले नर्कमयी थी वह स्वर्ग बन गई। मनुष्यात्मायें जो अपने आसुरी स्वभाव के कारण असुर कहलाने लगी थीं वे दैवी गुण धारण करने के कारण देवी और देवता कहलाने लगीं। इस प्रकार परमात्मा शिव के अवतरण से सम्पूर्ण मानव सृष्टि की ही काया पलट हो गयी। ऐसे कल्याणकारी शिव के पृथ्वी पर अवतरित होने के स्मृति स्वरूप यह शिवरात्रि पर्व मनाया जाता है परन्तु इसका मनाना तभी सार्थक हो सकता है जब परमपिता परमात्मा शिव द्वारा बताये गये मार्ग का हम अनुसरण करें।

परमात्मा शिव के अवतरण का समय

यह बात महत्त्वपूर्ण है कि परमपिता परमात्मा ज्योतिर्बिन्दु शिव प्रत्येक कल्प में एक बार कलियुग के अन्त और सतयुग के आदि के संगम समय पर आकर पुनः पुनः आसुरी समाज का विनाश कर दैवी समाज की स्थापना करते हैं। इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण बात मानवता के लिए यह है कि वर्तमान समय वह महत्त्वपूर्ण समय है जबकि कल्याणकारी शिव अपना कल्प पूर्व वाला कार्य फिर से कर रहे हैं। आज संसार की परिस्थितियाँ भी बिल्कुल ऐसी हैं जिनमें उनके आने की आवश्यकता है। आज मानव इतिहास पुनः एक महत्त्वपूर्ण मोड़ पर पहुंचा है जहाँ एक ओर मानव उत्थान की अनन्त सम्भावनायें हैं तो दूसरी ओर उसके समूल विनाश की पूरी तैयारी है। विज्ञान और तकनीकी प्रगति दूषित मस्तिष्क वाले मानवों के हाथ का खिलौना बनी है। उसने मानव जाति को ऐसे बारूद की ढ़ेरी पर ला खड़ा किया है जिसमें किसी भी समय विस्फोट हो सकता है। प्रकृति पर विजय पाने के हर्षोल्लास में मानव इतना पागल हो गया है कि उसे स्वयं का होश रहा है। अपने मूल स्वभाव शान्ति, प्रेम, आनन्द आत्म-ज्ञान से उसका सम्पर्क टूट चुका है। सर्व भौतिक साधनों के होते भी मानसिक तनाव बढ़ता जा रहा है और नींद के लिए गोलियों की आवश्यकता है। आत्म-हत्याओं और हृदयगति अवरोधों से मृत्यु की संख्या में दिनोंदिन वृद्धि हो रही है। वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण ध्वनि प्रदूषण से मनुष्य परेशान अवश्य है परन्तु वह इन प्रदूषणों को रोक नहीं पा रहा है क्योंकि इन सबके पीछे जो मानव मस्तिष्क का प्रदूषण है वही नहीं बन्द हो रहा है। मानव-समस्याएं दिनों-दिन बढ़ती जा रही हैं। अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में जहाँ राष्ट्रों के बीच तनाव बना हुआ है वहाँ प्रत्येक राष्ट्र के अन्दर भी शासक और शासित के सम्बन्ध नहीं हैं। इसीलिए हम आये दिन राजनीतिक हत्याओं की बात सुनते हैं। नारियों की लाज सरे बाजार कामातुर पुरुषों के हाथ बिक रही है। यही नहीं, नारियाँ स्वयं भी इसे एक व्यापारिक सामग्री के रूप में बेच रही हैं। अनुशासन का हर क्षेत्र में सर्वथा अभाव है। तनाव हर क्षेत्र की एक सामान्य बात हो गई है। इस प्रकार शिव परमात्मा के आने का यह अनुकूल समय है और वह आकर अपना कार्य कर भी रहे हैं।

परमात्मा शिव का दिव्य सन्देश

परमपिता परमात्मा शिव अपना दिव्य सन्देश यही दे रहे हैं कि व्यक्ति और समाज की सर्व समस्याओं के मूल में है आत्म-विस्मृति। आत्म-विस्मृति से पुनः आत्म-स्मृति में मानवों को लाना ही शिव द्वारा उद्घोषित आध्यात्मिक क्रान्ति का लक्ष्य है। इसमें ही मानव की सर्व समस्याओं का समाधान निहित है। परमात्मा शिव मनुष्यात्माओं को उनके ज्योतिर्बिन्दु आत्मा-स्वरूप का बोध कराने के साथ-साथ यह भी बतला रहे हैं कि मूल रूप में आत्मा शान्ति स्वरूप, प्रेम स्वरूप, ज्ञान स्वरूप आनन्द स्वरूप है। इसी अवस्था में स्थित रह कर उसे सर्व कार्य-व्यवहार में आना है। बहुत समय से देहाभिमान की अवस्था में रहने के कारण जो विकारी स्वभाव बन गया है, उसके लिए मनुष्य को निरन्तर ‘राजयोग’ के अभ्यास में रहना है जो अभ्यास केवल इतना ही है कि वह हर समय अपने को आत्मा निश्चय कर कार्य-व्यवहार करता रहे। इस स्थिति के लिए जहाँ उसे अपने स्वरूप की स्मृति में रहने की आवश्यकता है वहीं पर परमात्मा के वास्तविक नाम, रूप, गुण, कर्त्तव्य और धाम को जानकर उन्हें अपना पिता मानकर स्मृति को आत्म-स्वरूपी बनाया जाये तो आत्म-स्थिति प्राप्त करने में सहायता मिलेगी, क्योंकि सर्व आत्माओं के एक परमपिता परमात्मा ज्योतिर्बिन्दु शिव की सन्तान निश्चित करने से विश्व बन्धुत्व की भावना सुदृढ़ करने के लिए आधार प्राप्त होता है तथा एक दूसरे को आत्म-दृष्टि से देखने पर उसके शरीर धर्मी दोषों पर ध्यान नहीं जावेगा। जब हम सभी धर्म, जाति और देश वाले, परमात्मा को उसके वास्तविक स्वरूप से जान जायेंगे तो धार्मिक असहिष्णुता मतभेद आप से आप मिट जायेगा। ज्योतिर्बिन्दु शिव परमात्मा केवल हिन्दुओं का ही परमात्मा नहीं परन्तु वह सर्वधर्मावलम्बियों का पारलौकिक परमपिता है। सब धर्मों के अपने-अपने अलग-अलग धर्मगुरु हो सकते हैं परन्तु उन सर्व धर्मगुरुओं का पिता एक निराकार परमात्मा है जिसे सनातन धर्मावलम्बी ज्योतिर्बिन्दु कहते, दूसरे उसे नूर कहते, कोई उसे एक लाइट अथवा प्रकाश मानता है परन्तु सबका संकेत उस एक की ओर ही है।

शिवरात्रि पर हमारा संकल्प

अतः यह शिवरात्रि पर्व सभी धर्म के लोगों को सम्मिलित पर्व के रूप में मनाना चाहिए। वह जो है और जैसा है उसे वैसा जानकर, उसकी याद में रहकर अपने मूल ‘आत्मा’ स्वरूप को पहचानना और मूल गुण को धारण करना चाहिए। यही इस महापर्व का सन्देश सारे मानव समाज के लिए है जिसे आज की परिस्थितयों में प्रभावी रीति से स्वीकार करना व्यवहार में लाना हमारे अपने ही हित में है। इसलिए इस शिवरात्रि पर्व पर हम सभी मनुष्य प्राणी यह दृढ़ संकल्प लें कि हम देहाभिमान त्याग आत्म-स्थिति में स्थित होकर आत्मा के मूल गुणों को धारण कर जीवन के व्यवहार में लायेंगे। अन्य मनुष्यात्माओं को भी इस स्थिति में स्थित कराने के लिए अपने को इस महान् ईश्वरीय मानवी सेवा में अर्पित कर संसार के कल्याण अर्थ शिव परमात्मा द्वारा चलाई हुई आध्यात्मिक क्रान्ति को सफल बनायेंगे।

आपका प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में तहे दिल से स्वागत है।

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