1. भारतभूमि 12 ज्योतिर्लिंगमों से घिरा हुआ देश है, जो लिंग मात्र ईश्वर के निराकार होने के पतीक ही है।
2.
द्वापरयुग से शुरू हुई भक्ति युग में सर्वप्रथम शिवलिंग की ही पूजा हुई,
जिसका अति पाचीनतम मन्दिर भारत के गुजरात प्रदेश में सोमनाथ मन्दिर है।
3.
रामायण (रामचरित मानस) में भी ईश्वर को यह कहर कि बिन पग चले सुने विन काना, बिन कर
करम करे, विधि नाना, निराकार स्वरूप में ही कहा गया है, परन्तु बाद में भूलवश अयोध्या
के राजाराम को भारी भूल वश भगवान कहकर बहुत भारी भूल कर दी, जबकि राजा राम महा मानव
(श्रेष्ठ कुल के) ईश्वर की रचना हैं।
4.
तीर्थ स्थान गोपेश्वर में भी श्रीकृष्ण महाराज जी को भी ईश्वर के निराकार स्वरूप प्रतीक चिह्न शिवलिंग की ही पूजा
करते हुए दिखाया गया है।
5.
शंकर (सूक्ष्म आकारी देवता) जी एवं उनके परिवार में माँ पार्वती, गणेश जी को भी शिवलिंग
के सम्मुख ध्यानस्थ एवं पूजा करते हुए भक्ति मार्ग में दिखाया गया है।
6.
सर्वशास्त्र शिरोमणि श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीकृष्ण जी, अर्जुन को परमात्मा का परिचय,
आत्म रूप में ही सम्पूर्ण परिचय देते हैं।
7.
विश्व प्रसिद्ध यात्रा अमरनाथ गुफा में पाकृतिक रूप में ही शिवलिंग (बर्प)
बनता है, जो परमात्मा के निराकार होने का प्रमाण सिद्ध होता है।
8.
एक धार्मिक दृष्टान्त के अनुसार राक्षसराज रावण (10 बुराईयों का प्रतीक) भी शिवलिंग
की अखण्ड भक्ति-पूजा करता था।
9.
सिक्खों के पथम गुरूनानक देव जी ने भी परमात्मा को अपनी वाणी में निराकार, ज्योति ही
बताया है और पार्थना में कहा है कि - देहि शिव वर मतोहे, शुभ करमन ना टख।
10.
ईसाईयों के पैगम्बर ईसामसीह ने भी ईश्वर को प्रकाश में बता कर निराकार रूप
को स्पष्ट किया है।
11.
इस्लाम धर्म संस्थापक श्री इब्राहिम ने भी ईश्वर को नुक्ता-ए-नूर रूप में बताया।
12.
हिन्दू धर्म के लोग भी मन्दिर में दीप जलाकर ईश्वर को निराकार ही सिद्ध करते हैं।
13.
मनुष्य (कलियुगी अवस्था) की सतयुगी अवस्था देवी-देवता स्वरूप में पूज्यनीय है, जोकि
निराकार परमपिता शिव भोलेनाथ की सर्वोत्त्कृष्ट रचना है।
14.
परमात्मा ईश्वर के निराकार रूप होने के कारण उसे विचित्र कलाकार और विराट रूप में संकेत
करते हैं।
15.
निराकार परमपिता परमात्मा को आत्मिक-स्वरूप से ही सारी आत्माओं का माता-पिता एवं सबका
मालिक एक कहा गया है।
16.
साकार (मनुष्यात्माएँ) रचना एवं निराकार रचयिता कहलाता है।
17.
निराकार आत्माओं एवं परमपिता परमात्मा का निवास स्थान परमधाम, ब्रह्मलोक, शान्तिधाम
कहलाता है, जहाँ से आत्माएँ पृथ्वी पर साकार रूप में आकर अपना-अपना पार्ट बजाती हैं।
18.
हिन्दूओं की आरती में भी ईश्वर को पारब्रह्म परमेश्वर बताया गया है।
19.
हिन्दूओं की आरती में ही ईश्वर को तुम हो एक अगोचर, कहकर निराकार को ही संकेत किया
गया है।
20.
संसार की स्थूल, सूक्ष्म चीजों का असली मालिक भगवान ही है। परन्तु निराकार रूप होने
के कारण हमारे पास कुछ नहीं रखता है। इसलिए भक्त पार्थना में कहते हैं – तन-मन-धन सब
तेरा।
21.
निराकार ईश्वर के ऊपर स्थित होने के संदर्भ में ही बहुत-सी श्रेष्ठ भावनाएँ आज भी कहती
हैं कि ऊपर वाले से तो डरो।
22.
महान संत साईं (शिर्डी) बाबा को भा चित्रों में शिवलिंग के साथ दिखाकर, उनके शब्दों
में लिख दिया जाता है - सबका मालिक एक। उनके वरदानी हाथ में शान्ति या ओम भी लिखा मिलता
है।
23.
आध्यात्मिक ज्ञान की शक्तियों से भरपूर मानवी आत्माओं को ईश्वर की शिव-शक्ति एवं पाण्डव
सेना के रूप में माना जाता है।
24.
ईश्वर के जन्म को अलौकिक एवं जन्म-मरण से परे अवतरण होने का पमाण रूप में बताया गया
है, जिसे केवल दिव्य-चक्षु से ही अनुभव किया जा सकता है। परन्तु नाटक के भावी अनुसार
ईश्वर को निराकार अनुभव न कर पाने के कारण ऋषि-मुनि, साधु-संतों ने ईश्वर को नेति-नेति
कहकर महान भूल कर दी। दूसरी महान भूल साकार मनुष्यात्माओं को ईश्वर की उपाधि दे दी,
जिससे मानव आत्माएँ पतन की ओर अग्रसर होते हुए आज बिगड़ती हालातों की अति चरम सीमा
पर पहुँच चुकी हैं।
25.
ईश्वर के रूप को नहीं पहचानने के कारण पूरा मानव समाज धर्म, मजहवों, जाति, परजातियों
एवं ऊँच-नीच के महान गर्त में फँस चुका है।
26.
गीता में परम पुरुष और मर्यादा पुरुषोत्तम (परम आत्मा) शिव को ही निराकार कहा गया है,
क्योंकि ड्रामा में 3 एक्टर हैं। परमात्मा, आत्मा एवं प्रकृति।
27.
गीता में निराकार ईश्वर के अवतरण को कलियुग के अन्त में अति धर्म ग्लानि के समय बताया
गया है जोकि वर्तमान में चल रहा है। यह बात 100 प्रतिशत तार्पिक व वैज्ञानिक सत्य
सिद्ध हो रही है।
28.
ईश्वर को स्वयंभू, पभु नाम भी 5 तत्वों से पार निराकार स्वरूप को ही प्रमाणित करता है।
29.
आत्मिक-ज्ञान द्वारा अनुभव किया जा सकता है कि परमात्मा अपने बच्चों से महाभारत या
गीता में वर्णित स्थूल युद्ध नहीं करवा सकता है। सूक्ष्म विकारों के युद्ध को ही अज्ञानवश
स्थूल युद्ध में रूपान्तरण कर, मानव आत्माओं को हिंसक पवृत्तियों में धकेल दिया गया।
एक ओर परमात्मा को निराकार, शिव भोलेनाथ से नामित किया गया, जिसका अर्थ कल्याणकारी
रूप में होता है। साथ ही कलियुग के अन्त में सृष्टि का विनाश सूक्ष्म आकारी देवता शंकर
जी द्वारा दिखाते हैं।
30.
धार्मिक एवं भक्ति मार्ग की मान्यताओं के अनुसार कोई भी मन्दिर शिवलिंग की स्थापना
के बाद से पूर्व माना जाता है।
31.
शिवलिंग (बड़े आकार) एवं शालिग्राम (छोटे आकार) में निराकार परमपिता परमात्मा शिव एवं
उनकी संतान आत्माओं का ही सांकित चिह्न है।
32.
विश्व के अन्य धर्मों में भी परमात्मा को किसी-न-किसी रूप में निराकार रूप में ही पदर्शित
किया जाता है। जैसेकि ज्योति, कैण्डिल आदि।
33.
विश्व पसिद्ध सोमनाथ मन्दिर निराकार परमात्मा शिव पिता का द्वापरयुग में स्थापित पथम
पूज्यनीय यादगार है।
34.
नेपाल में विश्व पसिद्ध दर्शनीय मन्दिर पशुपतिनाथ भी निराकार ईश्वर को ही संकेत कर
दिखाता है।
35.
रामचरित मानस के अनुसार बिन सत्संग विवेक न होई, राम कृपा बिन सुलभ न सोई, यहाँ पर
सत एवं राम का भावार्थ निराकार परमपिता परमात्मा के लिए ही हुआ है।
36.
रामलीला नाटक में दिखाये जाने वाली कहानी में राजा राम (भक्ति में भगवान) को वनवास
के दौरान में कई विपत्तियों में घिरा हुआ (वनवास, पिता जी की मृत्यु, सीता का हरण आदि)
दिखाया जाता है, इन्हीं विपत्तियों के कारण वे एक तीसरी शक्ति से पार्थना करते हैं
कि करि क्या हाय कर्त्ता ने विपद सब एकदम डाली, जोकि निराकार ईश्वर को ही याद का ही
संकेत करता है।
37.
एक दृष्टान्त के अनुसार जब असुरों ने देवताओं को अति दुःखी कर दिया तो देवता लोग अपनी
रक्षा इन शब्दों में करते हैं कि - शरण में सदा शिव के आए हुए हैं, करो नाथ रक्षा समाए
हुए हैं।
38.
परमात्मा अपरिवर्तशील है, इसलिए निराकार सिद्ध होता है।
39.
अध्यात्म के अनुसार दृश्य असत्य एवं अदृश्य सत्य। अत परमात्मा एवं आत्मा निराकार ही
सिद्ध होती है।
40.
लौकिक पढ़ाई-ज्ञान लौकिक शिक्षक, माता-पिता द्वारा दिया जाता है परन्तु पारलौकिक शिक्षा
(आध्यात्मिक) निराकार, पारलौकिक परमपिता ही देते हैं।
41.
निराकार परमात्मा द्वारा अपना स्व-रचित (कर्मानुसार) नाम शिव बताया है, जिसका अर्थ
कल्याणकारी एवं बिन्दु रूप में लिया जाता है।
42.
शिव की आरती गायन में भी जय शिव ओउमकारा में ओमकारा शब्द भी ईश्वर के निराकार स्वरूप
को ही सिद्ध करता है।
43.
पार्थिक शरीर के आगे-पीछे चलने वाली मनुष्यात्माएँ राम नाम सत्य है, कहते हुए शमसान
घाट की यात्रा पर जाते हैं। इसमें वर्णित राम शब्द निराकार परमात्मा के लिए ही पयुक्त
होता है। क्योंकि दूसरा राम नाम दशरथ पुत्र का भी है, जबकि वह साकार, श्रेष्ठ, पावन
मनुष्यात्मा है, पृथ्वी पर राजा की भूमिका निभाता है।
44.
त्रेतायुगी अयोध्यावासी राम को रचने वाला निराकार, सर्वशक्तिवान राम (रामेश्वर) है,
जिसमें पथम राम रचयिता तथा राजाराम रचना है।
45.
महात्मा गाँधी जी जिस रामराज्य की कामना अपने मन मन्दिर में करते थे, वह भी निराकार,
सर्वशक्तिवान राम (शिव) द्वारा ही स्थापित है, परन्तु दो राम के संशय में सर्वशक्तिवान
परमात्मा राम (रामेश्वर) को भूल ही गए।
46.
आध्यात्मिक ज्ञान केवल निराकार परमपिता परमात्मा ही सहज रूप से दे सकता है, जबकि मनुष्यात्माएँ
भौतिक चित्रों का ही ज्ञान दे सकती हैं। मनुष्यात्माएँ अल्पज्ञ हैं, जबकि परमात्मा
सम्पूर्ण एवं सर्वज्ञ है। मनुष्यात्माओं के ज्ञान में आध्यात्मिकता का नामोनिशान भी
नहीं होता है।
47.
मनुष्यात्माओं द्वारा गाई गई एक पार्थना बहुत चर्चित है - हे पभु आनन्द दाता, ज्ञान
हमको दीजिये, शीघ्र शीघ्र दुर्गुणों से दूर हमको कीजिये, देश भक्ति, कृष्ण जैसी बुद्ध
जैसा पेम दो। इससे स्पष्ट होता है कि आनन्द दाता (निराकार ईश्वर) से पार्थना है कि
मुझे कृष्ण जैसा महान व्यक्ति बनाओ। अत स्पष्ट होता है श्रीकृष्ण जी निराकार परमात्मा
शिव की सर्वोच्च रचना है।
48.
सत्यम्-शिवम्-सुन्दरम् निराकार परमात्मा शिव भोलेनाथ के लिए प्रयुक्त होता है, क्योंकि वह
अपरिवर्तनशील है।
49.
निराकार स्वरूप में होने के कारण ही सारे संसार की मनुष्यात्माएँ उसे माता-पिता कहती
हैं, आत्मिक सम्बन्ध के कारण ही सभी आत्माएँ आपस में भाई-भाई का सम्बन्ध रखती हैं।
50.
निराकार परमात्मा के तेज की तुलना हजारों सूर्यों के तेज के साथ की गई है, जिससे स्पष्ट
होता है कि परमात्मा ज्योतिर्बिन्दु के रूप में हैं।
आपका प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में तहे दिल से स्वागत है।