कर्मों की गहराई को जानकर अपनी समस्याओं का समाधान स्वयं कीजिये

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“ये मत कहो खुदा से मेरी मुश्किलें बड़ी हैं,
उन मुश्किलों से कह दो, मेरा खुदा बड़ा है’’

आज मनुष्य के जीवन में दुःख-अशान्ति, कलह-क्लेश दन-प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे हैं और इसके लिए या तो वो परमात्मा को दोषी मानता है या फिर दूसरे लोगों को, परन्तु यह दोनों ही बातें सही नहीं है। एक तो इसमें परमात्मा पिता का कोई दोष नहीं है। क्योंकि परमपिता परमात्मा जिसको हम खुद ही माता-पिता कहते हैं, भला वो अपने बच्चों को दुःख क्यों देगा!

दूसरी बात न ही हमारे दुःख का कारण कोई अन्य व्यक्ति हो सकता है। इसका मुख्य कारण होता है - हमारे पिछले जन्मों के कर्म। जैसे-जैसे हम कर्म करते हैं, वैसे-वैसे हमें दुःख और सुख की पाप्ति होती है।

यदि आज हम दुःखी हैं तो उसका कारण हमारे स्वयं के कर्म और सोच हैं जो ईर्ष्यावश, बदले की भावना के कारण नीचे गिराने की या धन कमाने की होड़ किसी भी विधि से धन कमाएँ, कुछ ऐसे कर्म जो आज अनजाने में हो जाते हैं। श्रीमद्भगवाद्गीता में भगवान ने कहा है - हे अर्जुन, तू कर्म गति को पहचान कर श्रेष्ठ कर्म कर।

अब ये समझने के बाद कि जो मेरे जीवन में गलत हो रहा है, उसका कारण कोई और नहीं मैं स्वयं ही जिम्मेवार हूँ। तो इस स्थिति में अपने आपको भी दोषी नहीं मानना बल्कि इस समस्या का समाधान करना है।

आपकी समस्या का समाधान करने के लिए हम एक सहज विधि बता रहे हैं, जिसको करने से आपका जीवन फिर से खुशहाल बन सकता है, वो विधि इस पकार है -

1. सबसे पहले आप एक शान्तिपूर्वक स्थान पर या अपने पूजा घर में बैठ जाएँ।

2. अपने मन के विचारों को धीरे-धीरे शान्त कर लें।

3. अब मन-ही-मन विचार करें - जिस भी व्यक्ति के साथ आपकी नहीं बनती या सम्बन्धों में टकराव है, अब उस व्यक्ति को भी अपने पास बैठा हुआ महसूस करें।

4. मन-ही-मन विचार करें - हम दोनों परमात्मा पिता के सम्मुख बैठे हैं और मन-ही-मन उसव्यिक्ति से अपने मन की बात करें। यह ध्यान रहे कि मुख से कुछ नहीं बोलना है।

5. विचार करें और उस व्यक्ति से सच्चे मन में क्षमा माँगें और कहें - जाने-अनजाने में मैंने आपको पिछले जन्मों में जो भी दुःख दिये हैं, उसके लिए मुझे आप क्षमा कर दीजिये।

6. ऐसा करने से आपको किसी भी पकार का अहंकार नहीं आना चाहिए कि मैं क्षमा क्युँ माँगु, लेकिन आपको बता दें आप क्षमा उससे माँग कर, अपने आपको क्षमा कर रहे हैं।

7. इसके बाद अब सच्चे दिल से उस व्यक्ति को खुले दिल से दुआएँ दीजिये।

आप सदा खुश रहें, आपका तन-मन सदा स्वस्थ रहे, आपको परमात्मा का प्यार और साथ सदा मिलता रहे, आप अपने जीवन में सदा आगे बढ़ते रहें, परमात्मा की छत्रछाया सदा आप पर बनी रहे, आपका पूरा परिवार सदा खुशहाल रहे, आपके जीवन में धन की कमी न हो, आप सदा फलें-फूलें।

ऐसे-ऐसे सच्चे दिल से आप मन-ही-मन उस व्यक्ति को ढेर सारी दुआएँ दीजिये। इस विधि को आपको हर रोज 15 दिन तक करना है। 10-15 मिनट पात, 10-15 मिनट शाम को ऐसा करने से धीरे-धीरे उस व्यक्ति के मन में भी आपके प्रति अच्छी सोच बन जायेगी। आप शायद सोच नहीं सकते कि इस विधि को अपनाने से आपके जीवन में वो खोई हुई सुख-शान्ति फिर से आ सकती है।

आपका जीवन फिर से खुशहाल हो सकता है। आपके टूटे हुए रिश्ते फिर से पेम की डोर में बंध सकते हैं। उसके लिए आपको सच्चे मन से निस्वार्थ भाव से इस विधि को अपनाना है, जिसका लाभ आपको बहुत ही जल्दी मिलेगा।

भगवान कहते हैं - तुम सबकुछ मुझे सौंप दो, सारा दर्द, सारी परेशानियाँ और बिल्कुल स्वयं हल्के होकर, मुझे प्यार से याद करो तो धीरे-धीरे तुम्हारा जीवन ख़ुशियों से भर जायेगा।

अधिक स्पष्टीकरण के लिए अपने शहर में स्थित
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में सपरिवार पधारें।
आपका तहे दिल से स्वागत है।

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