परमपिता परमात्मा द्वारा आत्माओं रूपी बच्चों को ईश्वरीय स्नेह सहित निमंत्रण

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आत्मा रूपी मीठे बच्चो,

ईश्वरीय याद और प्यार। मैंने 5000 वर्ष पूर्व यह वचन दिया था कि जब नैतिक मूल्यों तथा दिव्य गुणों का अत्यन्त ह्रास होगा और सभी स्वयं को देह मान कर कर्म करते होंगे अर्थात् जब धर्म की ग्लानि होगी, तब मैं पुन आऊँगा और पवित्रता, दिव्यता, आध्यात्मिकता एवं शान्ति की अर्थात् सतयुग अथवा देवयुग की पुन स्थापना करूँगा।

लाडले बच्चो, उसी वचन के अनुसार, अब मैं आत्माओं को पवित्रता एवं शान्ति की ईश्वरीय विरासत अथवा जन्म-सिद्ध अधिकार देने के लिए पुन आ चुका हूँ। वत्सो, मैं जन्म-मरण और सुख-दुःख से सदा न्यारा हूँ और शरीर रहित ज्योतिस्वरूप, परम पवित्र एवं सर्व का कल्याण करने वाला, सभी का माता-पिता, स्वामी, सखा, शिक्षक एवं सद्गुरु अर्थात् सद्गतिदाता हूँ।

मैं लौकिक जन्म नहीं लेता बल्कि एक साधारण एवं वृद्ध मनुष्य (ब्रह्मा) के शरीर में पविष्ट एवं सन्निविष्ट होता हूँ ताकि उसके मुख द्वारा पायलुप्त हुआ ईश्वरीय ज्ञान एवं राजयोग की शिक्षा दे सपूँ। मेरे इस विधि साधारण मानवी तन में दिव्य जन्म की रीति को न जानने के कारण लोग मुझे पहचान नहीं सकते।

पिय वत्सो, मैं जो हूँ और जैसा हूँ, मैं अपना परिचय स्वयं ही आकर देता हूँ क्योंकि मनुष्यात्मायें जन्म-मरण, कर्म-बंधन, संस्कार बंधन तथा देहाभिमान के कारण मुझे नहीं जानतीं। वत्सो, यदि मैं अवतरित न होऊँ तो संसार को सत्य, पारलौकिक ज्ञान एवं श्रेष्ठ कर्म करने तथा संस्कार बनाने की शिक्षा कौन देगा?

मेरे पिय बच्चो, मैं आप ही को मुक्ति और जीवनमुक्ति देने के लिए बहुत-बहुत दूर परमधाम, ब्रह्मलोक अथवा परलोक नामक प्रकाशपूर्ण देश से यहाँ आया हूँ। आपको सम्पूर्ण पवित्रता, सुख-शान्ति का वरदान देने के लिए ही मैंने ज्ञान-यज्ञ रचा है। इस ज्ञान-यज्ञ में आप भी काम, कोध, लोभादि मनोविकारों की आहुतियाँ डालो और यहाँ जो ईश्वरीय ज्ञान एवं सहज योग की शिक्षा रूपी प्रभु-प्रसाद मिल रहा है, उसे पाप्त करो।

वत्सो, मैं आपका परमपिता आपको अत्यन्त स्नेहपूर्वक एवं चाव से निमंत्रण दे रहा हूँ। मेरे लाडले बच्चो, आप देख तो रहे ही हैं कि मनुष्यात्माओं के अपने ही निकृष्ट संस्कारों और कर्मों के कारण संसार पर महाविनाश के बादल मँडरा रहे हैं। 5000 वर्ष पूर्व की तरह मूसल, अग्नेयास्त्र इत्यादि बन चुके हैं, पर्यावरण पदूषण बहुत बढ़ चुका है और जनसंख्या भी अपनी चरम सीमा को पहुँचने वाली है। 

वत्सो, मैं न तो घर-बार छोड़ने के लिए कहता हूँ, न अपना व्यवसाय बंद करने के लिए और न ही अपना सारा धन या सम्पत्ति दान करने के लिए; बल्कि जिन कमियों, कमज़ोरियों और बुराइयों से आप परेशान हैं, उनका मुझे दान देने के लिए कहता हूँ ताकि आप पवित्र एवं राजयोगी बन सकें। वत्सो, इस ईश्वरीय निमंत्रण को, जोकि 5000 वर्ष पूर्व की तरह दिया जा रहा है, स्वीकार करना या न करना, अपना महान भाग्य बनाना या न बनाना आपकी इच्छा पर निर्भर है।

मेरे लिए यह मेरे कर्त्तव्य की पूर्ति है ताकि निकट भविष्य में आप यह न कहें - “हे पभु, हे पिता, आप इस धरा पर आए और आपने यज्ञ रचा परन्तु आपने हमें निमंत्रण नहीं दिया!’’ परन्तु, वत्सो, समय बहुत कम है, टालमटोल ठीक नहीं। याद रखो कि - “अब नहीं तो कभी नहीं!’’

मानव सृष्टि वृक्ष का चेतन बीज रूप ज्ञान सागर, सर्वगुणों-शक्तियों-विशेषताओं का सागर निराकार परमपिता परमात्मा शिव है। इसलिए निराकार परमात्मा शिव की याद से जन्म-जन्मान्तर के विकर्मों का विनाश होकर जीवन में पवित्रता-सुख-शान्ति-समृद्धि की धारणा होती है। साकार (श्रीकृष्ण या अन्य देवी-देवतायें, धर्म स्थापक आदि) को याद करने से हमारे पूर्व जन्मों और इस जन्म के पाप कर्मों का खाता भस्म नहीं होता है एवं मन-बुद्धि का सम्बन्ध परमात्मा से विच्छेद हो जाने से केवल पाप्ति की इच्छा से मन-बुद्धि इधर-उधर, चारों तरफ भटकता रहता है।

इसी के फलस्वरूप भारत जो सोने की चिड़िया था, आज मिट्टी की चिड़िया केवल बच्चों की तरह मन बहलाने वाला रह गया है। सारा विश्व जिसमें विशेष भारत पतित, दुःखी, भ्रष्टाचारी, मोहताज, कंगाल हो गया है।

निराकार, ज्ञान सागर, त्रिमूर्ति शिवभगवानुवाच पजापिता ब्रह्मा के साकार मुख कमल द्वारा - सर्वशक्तिवान, निराकार, परमपिता परमात्मा त्रिमूर्ति शिव कल्प पूर्व की तरह फिर से वर्तमान विश्व कल्याणकारी पुरुषोत्तम संगमयुग पर पजापिता ब्रह्मा के साकार माध्यम द्वारा गीता ज्ञान सुनाकर 100 प्रतिशत पवित्रता-सुख-शान्ति-सम्पन्न, अटल-अखण्ड-निर्विघ्न सतयुगी त्रेतायुगी दैवी स्वराज्य का 21 जन्मों का ईश्वरीय जन्म-सिद्ध अधिकार का अमूल्य वर्सा फिर से दे रहे हैं।

प्रश्नावली --

1. मनुष्य को देवता बनाने वाले परमपिता परमात्मा शिव की महिमा का वर्णन करते हुए परमात्मा और देवताओं में अन्तर की स्पष्ट अभिव्यक्ति कीजिए।

2. परमात्मा ने गीता ज्ञान युद्ध के मैदान में केवल अर्जुन को सुनाया या सभी को सुनाया? गीता ज्ञान कौन-से युग में सुनाया गया?

3. देवताओं के वाम मार्ग में जाने का अर्थ क्या है?

4. हिन्दू धर्म की स्थापना कब, किस विधि से और किसके द्वारा हुई?

5. गीता ज्ञान द्वारा कौन-से धर्मों की स्थापना हुई?

6. नई सृष्टि की रचना कब, किस विधि से और किसके द्वारा हुई?

7. आपे ही पूज्य, आपे ही पुजारी; विष्णु सो ब्रह्मा, ब्रह्मा सो विष्णु; वैजयन्ती माला; श्याम-सुन्दर; स्वदर्शन चक और स्वास्तिका का आध्यात्मिक रहस्य क्या है?

8. शिव जयन्ती और शिव रात्रि का रहस्य और दोनों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।

9. पतित-पावन पानी की गंगा है या ज्ञान गंगायें हैं?

पुन नम्र निवेदन - भारत निराकार परमपिता परमात्मा शिव के दिव्य अवतरण का पूज्य अविनाशी खण्ड है। भारत में ही वर्तमान अति धर्म-ग्लानि के समय परमपिता परमात्मा शिव प्रजापिता ब्रह्मा के साकार तन में अवतरित होकर गुप्त रीति से अपने बच्चों द्वारा सतयुगी भारत के नवनिर्माण का कार्य करवा रहे हैं।

अत: यम धर्मराज की सजाओं से बचने एवं ईश्वरीय जन्म-सिद्ध अधिकार के वर्से को पाप्त करने के लिए सभी बहन-भाईयों से नम्र निवेदन है कि अज्ञान नींद से जागिये, उठिये और विनाश के समय को पहचान कर अपने 21 जन्मों के दैवी स्वराज्य के वर्से का ईश्वरीय जन्म-सिद्ध अधिकार पाप्त कीजिये। 

यही समय है जबकि अंधकार से निकल, सम्पूर्ण विकारी जीवन द्वारा दुर्गति पाप्ति का रास्ता त्याग कर सारे विश्व और विशेष भारत को गति-सद्गति दिलाने में परमपिता परमात्मा के सहयागी बनकर अपना भाग्य बना लेवें। सम्पूर्ण जानकारी के लिये आप प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय की अपने नजदीक की शाखा पर सादर आमंत्रित हैं। परन्तु याद रखिये, ‘अभी नहीं तो कभी नहीं।’

अधिक स्पष्टीकरण के लिए अपने शहर में स्थित

प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में सपरिवार पधारें।
आपका तहे दिल से स्वागत है।

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