सर्वशास्त्रमयी शिरोमणि श्रीमत्भगवत्गीता निराकारी मत का शास्त्र है, साकारी मत का नहीं

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भारतवर्ष में भगवत् पेमियों के जीवन में पाय यह पक्की धारणा है कि सर्वशास्त्रमयी शिरोमणि श्रीमत्भगवत्गीता का भगवान श्री वासुदेव पुत्र श्रीकृष्ण है। महात्मा गाँधी, डॉ. राजेन्द्र पसाद, तिलक आदि अनेकानेक गीता के विद्वत टीकाकारों ने इस मान्यता का पूरी तरह से खण्डन किया है। सर्व धर्मावलम्बियों की यह निर्विरोध, सर्वमान्य मान्यता है कि विश्व के सभी धर्मों का परमपिता परमात्मा एक है। वह मनुष्यों की तरह माता के गर्भ से कभी जन्म नहीं लेते हैं अर्थात् देहधारी न होकर निराकार, बिन्दू स्वरूप हैं।

महान विचित्र विडम्बना है कि सत्य ज्ञान को बुद्धि में स्वीकारते हुए भी चर्चा के समय मानव क्षणभर विचार किये बिना, सहज भाव से निसंकोच कह देते हैं कि परमात्मा माता के गर्भ से जन्म लेते हैं या नहीं अर्थात् निराकार है या साकार है, इसमें कोई अन्तर नहीं पड़ता है, क्योंकि हमें केवल परमात्मा को याद करके उनके गुणों को जीवन में धारण करना है।

साधारणत सुनने में यह बात ठीक पतीत होती है, परन्तु विचार करने पर ध्यान में आता है कि जिस समय परमात्मा को याद करते हैं, उस समय परमात्मा का नाम, रूप, देश, काल, गुण, कर्त्तव्य, विशेषतायें आदि का चिन्तन चलता है। इसी चिन्तन, मनन, सिमरण को परमात्मा की याद कहते हैं। निराकार परमपिता परमात्मा त्रिमूर्ति शिव और साकार श्रीकृष्ण के नाम, रूप, देश, काल, गुण, कर्त्तव्य, विशेषताओं सभी में पूर्ण भिन्नता है।

अत निराकार और साकार की याद से अनुभूतियाँ और पाप्तियाँ भी भिन्न और महान अन्तर वाली होना स्वभाविक है। गायन है - मनुष्य को देवता किये, करत न लागी वार अर्थात् देवी-देवतायें अपने पूर्व जन्म में निराकार परमपिता परमात्मा शिव द्वारा दिये गये गीता ज्ञान और सहज राजयोग की शिक्षा द्वारा ही पालब्ध रूप में देवपद पाप्त करते हैं।



मानव सृष्टि वृक्ष का चेतन बीज रूप ज्ञान सागर, सर्वगुणों-शक्तियों-विशेषताओं का सागर निराकार परमपिता परमात्मा शिव है। इसलिए निराकार परमात्मा शिव की याद से जन्म-जन्मान्तर के विकर्मों का विनाश होकर जीवन में पवित्रता-सुख-शान्ति-समृद्धि की धारणा होती है।

साकार (श्रीकृष्ण या अन्य देवी-देवतायें, धर्म स्थापक आदि) को याद करने से हमारे पूर्व जन्मों और इस जन्म के पाप कर्मों का खाता भस्म नहीं होता है एवं मन-बुद्धि का सम्बन्ध परमात्मा से विच्छेद हो जाने से केवल पाप्ति की इच्छा से मन-बुद्धि इधर-उधर, चारों तरफ भटकता रहता है। इसी के फलस्वरूप भारत जो सोने की चिड़िया था, आज मिट्टी की चिड़िया केवल बच्चों की तरह मन बहलाने वाला रह गया है। सारा विश्व जिसमें विशेष भारत पतित, दुःखी, भ्रष्टाचारी, मोहताज, कंगाल हो गया है।

अत सभी की श्रेष्ठ भावनाओं का पूर्ण रूप से सम्मान करते हुए सभी महानुभावों से हृदय से निवेदन है कि इस विषय पर विवेक और गम्भीरता से विचार करके भारत को फिर से स्वर्णिम भारत और भारतवासियों को फिर से देवी-देवता बनाने के पुनीत कार्य में सहयोगी बनने का अपना श्रेष्ठ योगदान देकर भविष्य 21 जन्मों के लिए वैकुण्ठ में ऊँच पद पाप्त करें। यही इस पुस्तिका का एकमात्र उद्देश्य है।

निराकार, ज्ञान सागर, त्रिमूर्ति शिवभगवानुवाच प्रजापिता ब्रह्मा के साकार मुख कमल द्वारा - सर्वशक्तिवान, निराकार, परमपिता परमात्मा त्रिमूर्ति शिव कल्प पूर्व की तरह फिर से वर्तमान विश्व कल्याणकारी पुरुषोत्तम संगमयुग पर पजापिता ब्रह्मा के साकार माध्यम द्वारा गीता ज्ञान सुनाकर 100 प्रतिशत पवित्रता-सुख-शान्ति-सम्पन्न, अटल-अखण्ड-निर्विघ्न सतयुगी त्रेतायुगी दैवी स्वराज्य का 21 जन्मों का ईश्वरीय जन्म-सिद्ध अधिकार का अमूल्य वर्सा फिर से दे रहे हैं।

आज सारे विश्व में चारों ओर विकारों का नशा (पापाचार, भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार, व्यभिचार) बढ़ता जा रहा है। भक्ति व्यभिचारी, दिखावटी और तमोपधान होने से मर्यादाओं के विपरीत एक तरह से गिरावट का कार्य कर रही है।
देवता धर्म पायलोप हो गया है। देवतायें वाममार्ग में जाने के कारण यानि अपवित्र बनने से अपने को हिन्दू कहलाने लग गये हैं। मनुष्य तमोगुणी होने के कारण सम्पूर्ण विकारी बन आपसी भाईचारे को समाप्त कर अनाथ बन कंगाल, मोहताज होकर आपस में खूनेनाहक खेल, खेल रहे हैं।
ऐसे दुःख-अशान्ति की घोर अंधियारी रात्रि के धर्मग्लानि के समय निराकार, त्रिमूर्ति परमपिता परमात्मा शिव प्रजापिता ब्रह्मा के साकार तन के द्वारा गीता ज्ञान का उच्चारण करके मुख्य तीन धर्मों की यानि संगमयुग में ब्राह्मण धर्म, सतयुग में देवी-देवता धर्म और त्रेतायुग में क्षत्रिय धर्म की स्थापना अपने बच्चों के साथ गुप्त रूप में कर रहे हैं।
नवयुग निर्माता परमपिता परमात्मा शिव पजापिता ब्रह्मा के साकार मुख कमल द्वारा जो ज्ञान सुनाते हैं उसको पजापिता ब्रह्मा स्वयं सुनकर तीव्र पुरुषार्थ करके पालब्ध के रूप में अगले जन्म सतयुग में पथम विश्व महाराजकुमार का पद पाप्त करते हैं।
यहाँ मानवी भूल के कारण पुरुषार्थ कराने वाले निराकार परमपिता परमात्मा शिव के नाम को उड़ा कर पुरुषार्थ के द्वारा पालब्ध के रूप में श्रीकृष्ण का पद पाप्त करने वाले को भगवान मानने से गीता शास्त्र का खण्डन हो गया है, जिसके फलस्वरूप सभी शास्त्र झूठे हो गये हैं। इसलिए शास्त्रों में कहते हैं- झूठी माया, झूठी काया, झूठा सब संसार।



गीता के भगवान को जो मनुष्यात्मायें समझ जायेंगी, वही परमपिता परमात्मा शिव के ऊपर फूल चढ़ायेंगी यानि फूल बन परमात्मा के ऊपर बलि चढ़ जायेंगी। गीता में कोटों में कोई, कोई में भी कोई का गायन है। अत सभी परमात्मा के ऊपर बलि नहीं चढ़ेंगे क्योंकि सतयुग के पारम्भ में 9 लाख देवी-देवतायें होते हैं जो त्रेतायुग के अन्त तक 33 करोड़ हो जाते हैं।

इसलिए शास्त्रों में 33 करोड़ देवी-देवताओं का गायन है। भगवान को कोई फूल देते हैं, तब भगवान कहते हैं कि मुझे फूल बनने वाले बच्चे चाहिए अर्थात् जो काँटे (पतित, पापाचारी, भ्रष्टाचारी मनुष्यात्मायें) मेरे ऊपर बलि चढ़ते हैं मैं पेम सागर, दयालु-कृपालु, सर्व का गति-सद्गतिदाता उनको खुशबूदार फूल बनाता हूँ, तभी मुझे बबुलनाथ कहते हैं।

कलियुग है फारेस्ट ऑफ थ्रोंस (काँटों का जंगल) जिसको निराकार परमपिता परमात्मा शिव गॉर्डन ऑफ अल्लाह यानि डिटी गार्डन पुन बना रहे हैं। श्रीकृष्ण सर्वगुण सम्पन्न, सोलह कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी, मर्यादा पुरुषोत्तम, डबल अहिंसक होने से स्वयं खुशबूदार फूल हैं। इस फूल को बनाने वाला निराकार परमपिता परमात्मा शिव ही हैं।

कहीं-कहीं वेदों की मान्यता अधिक है, फिर भी निराकार परमपिता परमात्मा शिव द्वारा उच्चारण होने के कारण गीता का पचार-पसार अधिक है। शास्त्रों आदि का उच्चारण धर्मगुरुओं द्वारा हुआ है।

परमपिता परमात्मा देवी-देवता धर्म और उसके साथ सूर्यवंशी और चन्द्रवंशी दैवी राजधानी की भी स्थापना करते हैं जो आधा कल्प यानि 2500 वर्षों तक चलती है। वहाँ एक धर्म, एक भाषा, एक राज्य, एक कुल, एक दैवी मत, एक खण्ड (सम्पूर्ण भारत) होता है।

किसी भी पकार की हलचल नहीं होती है। सभी क्षीर खण्ड होकर रहते हैं। देवतायें सम्पूर्ण निर्विकारी एवं डबल अहिंसक होने के कारण वहाँ पुलिस, कोर्ट, कचहरी, हॉस्पिटल आदि की आवश्यकता नहीं होती है।



श्रीकृष्ण सतयुग के पथम विश्व महाराजकुमार हैं। वहाँ के रीति-रिवाज के अनुसार स्वयंवर के समय श्रीकृष्ण का नाम बदल कर श्रीनारायण रख देते हैं। सृष्टि-चक में इसी श्रीकृष्ण (श्रीनारायण) के अन्तिम 84वें जन्म में निराकार परमपिता परमात्मा शिव अवतरित होकर इनका मरजीवा दिव्य नाम प्रजापिता ब्रह्मा रखकर इनके साकार मुखारविंद द्वारा सहज गीता ज्ञान और सहज राजयोग द्वारा वैकुण्ठ नई राजधानी की स्थापना करते हैं।

प्रजापिता पतित ब्रह्मा ज्ञान और राजयोग में तीव्र पुरुषार्थ के फलस्वरूप अगले जन्म सतयुग में श्रीकृष्ण की पालब्ध पाप्त करते हैं। इन्हीं श्रीकृष्ण के परिवर्तित नाम श्रीनारायण की सतयुग में आठ गद्दियाँ और त्रेतायुग में श्रीराम के नाम से 12 गद्दियाँ चलती हैं।

श्रीकृष्ण की आत्मा जन्म-पुनर्जन्म में आते-आते द्वापरयुग में राजा विकमादित्य के पद को पाप्त करके हीरे के शिवलिंग की स्थापना से भव्य स्वर्णिम सोमनाथ मंदिर का निर्माण करती है। इसी सुन्दर श्रीकृष्ण को जो कलियुग के 42वें पुनर्जन्म में श्याम पजापिता ब्रह्मा बन जाता है, उनको परमपिता परमात्मा शिव अपना बच्चा बनाकर उसे राजयोग की धारणा का तीव्र पुरुषार्थ करवा कर अगले जन्म वैकुण्ठ में पुन श्रीकृष्ण का पद दिलाते हैं।

इसी को कहते हैं - श्रीविष्णु की नाभी कमल से श्रीब्रह्मा निकला। यही श्रीब्रह्मा प्रत्येक सृष्टि-चक में श्रीनारायण बनते रहते हैं। इससे स्पष्ट है कि निराकार परमपिता परमात्मा शिव ही मनुष्य को सहज गीता ज्ञान और सहज राजयोग द्वारा देवता बनाते हैं। परमात्मा के अतिरिक्त कोई भी मनुष्य को देवता नहीं बना सकता है।

यदि गीता में श्रीकृष्णवाच मानते हैं, तब श्रीकृष्ण ने कहा, “काम महाशत्रु है।’’ अत श्रीकृष्ण के साथ राजमहलों में रास-लीला एवं खेलपाल करने के लिए राजमहलों का सदस्य बन श्रीकृष्ण समान बनना ज़रूरी है। इसलिए गीता के भगवान की श्रीमत अनुसार हमें निर्विकारी बनना ही पड़ेगा।

इस कलियुगी, पतित, भ्रष्टाचारी पृथ्वी पर पावन, पूज्य देवता पाँव भी नहीं रख सकते हैं। स्वर्णिम निर्विकारी सम्पूर्ण भारत आज पतित, पापाचारी, भ्रष्टाचारी, दुराचारी, कंगाल, मोहताज इण्डिया बन दूसरे देशों पर आश्रित हो गया है। राजसत्ता में देश के नेता देश सेवा को भूलकर नाम, मान, शान की अपनी कुर्सी के लिए स्वार्थवश आपस में लड़ रहे हैं।

धर्म शक्तिहीन होने से मुख्य धर्मों में विभाजन हो गये हैं। अत धर्मसत्ता सुख-शान्ति स्थापन करने की जगह स्वयं ही हलचल में हैं। विज्ञान सत्ता भी पकृति को नियंत्रण करने में असमर्थ हो गई है। ऐसे समय विश्व और खास भारत को गति-सद्गति देने का कर्त्तव्य करने वाला केवल परमपिता परमात्मा शिव ही है।

विश्व के सर्व धर्मावलम्बी देहधारी देवता श्रीकृष्ण को परमात्मा न मानकर केवल निराकार परमपिता परमात्मा शिव को ही परमात्मा मानते हैं। इससे निर्विवाद रूप से स्पष्ट सिद्ध होता है कि सर्वशास्त्रमयी शिरोमणि श्रीमत्भगवत्गीता का भगवान, देवता श्रीकृष्ण नहीं, परन्तु सर्वशक्तिवान, ज्ञान के सागर, निराकार, त्रिमूर्ति शिव हैं।

नम्र निवेदन : सर्व के पति श्रेष्ठ वृत्ति, शुभ भावना, शुभ कामना से ओत-पोत होकर मानव मात्र के कल्याण के लिए विश्व में फिर से सम्पूर्ण सुख-शान्ति-पवित्रता की स्थापना हेतु सभी धर्मात्माओं, पण्डितों, विद्वानों, शास्त्रवादियों, भक्तजनों, संन्यासियों से अति नम्र निवेदन है कि इस विषय पर गम्भीरता, धैर्यता, शान्ति और सभ्यता से विवेकपूर्ण विचार सागर मंथन करके विश्व को दुर्गति से सद्गति पाप्त कराने में अपना श्रेष्ठ सहयोग पदान करें।

इसी संदर्भ में इस पुनीत कार्य की सफलता हेतु आपसे निवेदन है कि निम्न प्रश्नावली पर अपना श्रेष्ठ मन्तव्य देकर अनुग्रहित करें। आप सभी हमारे लिये अति आदरणीय हैं और सदा ही अति आदरणीय रहेंगे।

प्रश्नावली :

1. मनुष्य को देवता बनाने वाले परमपिता परमात्मा शिव की महिमा का वर्णन करते हुए परमात्मा और देवताओं में अन्तर की स्पष्ट अभिव्यक्ति कीजिए।

2. परमात्मा ने गीता ज्ञान युद्ध के मैदान में केवल अर्जुन को सुनाया या सभी को सुनाया? गीता ज्ञान कौन-से युग में सुनाया गया?

3. देवताओं के वाम मार्ग में जाने का अर्थ क्या है?

4. हिन्दू धर्म की स्थापना कब, किस विधि से और किसके द्वारा हुई?

5. गीता ज्ञान द्वारा कौन-से धर्मों की स्थापना हुई?

6. नई सृष्टि की रचना कब, किस विधि से और किसके द्वारा हुई?

7. आपे ही पूज्य, आपे ही पुजारी; विष्णु सो ब्रह्मा, ब्रह्मा सो विष्णु; वैजयन्ती माला; श्याम-सुन्दर; स्वदर्शन चक और स्वास्तिका का आध्यात्मिक रहस्य क्या है?

8. शिव जयन्ती और शिव रात्रि का रहस्य और दोनों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।

9. पतित-पावन पानी की गंगा है या ज्ञान गंगायें हैं?

पुन नम्र निवेदन : भारत निराकार परमपिता परमात्मा शिव के दिव्य अवतरण का पूज्य अविनाशी खण्ड है। भारत में ही वर्तमान अति धर्मग्लानि के समय परमपिता परमात्मा शिव प्रजापिता ब्रह्मा के साकार तन में अवतरित होकर गुप्त रीति से अपने बच्चों द्वारा सतयुगी भारत के नवनिर्माण का कार्य करवा रहे हैं।

अत यम धर्मराज की सजाओं से बचने एवं ईश्वरीय जन्म-सिद्ध अधिकार के वर्से को पाप्त करने के लिए सभी बहन-भाईयों से नम्र निवेदन है कि अज्ञान नींद से जागिये, उठिये और विनाश के समय को पहचान कर अपने 21 जन्मों के दैवी स्वराज्य के वर्से का ईश्वरीय जन्म-सिद्ध अधिकार पाप्त कीजिये। यही समय है जबकि अंधकार से निकल, सम्पूर्ण विकारी जीवन द्वारा दुर्गति पाप्ति का रास्ता त्याग कर सारे विश्व और विशेष भारत को गति-सद्गति दिलाने में परमपिता परमात्मा के सहयागी बनकर अपना भाग्य बना लेवें।

सम्पूर्ण जानकारी के लिये आप प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय की अपने नजदीक की शाखा पर सादर आमंत्रित हैं। परन्तु याद रखिये, ‘अभी नहीं तो कभी नहीं।’ ओमशान्ति।

अधिक स्पष्टीकरण के लिए अपने शहर में स्थित
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में सपरिवार पधारें।
आपका तहे दिल से स्वागत है।

 

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