दुनिया का सबसे बड़ा ताज़्जुब - इंसानी रूह

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दुनिया के सात ताज़्जुब मशहूर हैं, जिन्हें सब जानते हैं मगर बड़ी हैरत की बात है कि इंसानी जमीन पर आसमानी छत के नीचे रहने वाला ख़ुदा का बंदा अपनी रूह के बारे में क़तई बेइल्म और ब़ाफिक है। प़कत रूह नाम से सब ज़रूर वािक़फ हैं। ह़क़ीकत में रूह तो दुनिया का सबसे बड़ा ताज़्जुब है।

वालिदैन की सुह्बत से वालिदा के जिस्म में कुदरत की पाँच चीज़ों से बना एक पिण्ड बनता है। इस पिण्ड में जान नहीं होती है। जब यह पिण्ड चार या पाँच महीने का हो जाता है तो इसमें नुक़्ता-ए-नूर रूह के ख़ुद-ब-ख़ुद दाख़िल हो जाने से वालिदा के पेट में चुरपुर महसूस होती है। यह भी अल्लाह-तआला का बड़ा भारी करिश्मा है कि कैसे नुक़्ता-ए-नूर रूह, ख़ुद-ब-ख़ुद अपने वतन को छोड़कर अपनी वालिदा के जिस्म में दाख़िल हो जाती है।

वतन यानि अर्श-ए-आज़म में तमाम मज़हबों की तमाम इंसानी रूहों का मालिक और तमाम मज़हबों की इंसानी रूहें एक साथ रहती हैं। ख़ुदा-तआला भी एक नुक़्ता-ए-नूर रूह है। यह वतन यानि आलम-ए-अरवाह सूरज-चाँद से पार ऊपर में बहुत दूर-ही-दूर है। यह वतन दारुल अमान साइंसदान की पहुँच से तो क्या, उनके सोच से भी बहुत दूर है। है ना, इंसानी रूह एक बहुत बड़ा अजूबा?

पैमाइश में सभी इंसानी रूहें और रूह-ए-आला बारीक से बारीक है। इतनी बारीक चीज़ जहान में हो नहीं सकती है। सभी इंसानी रूहें और रूह-ए-आला लत़ीफ है गोया सभी पैमाइश में एक जैसे हैं,छोटे-बड़े नहीं हैं। है ना, रूह ख़ुदा का बहुत बड़ा अजूबा? कितना भारी ग़ज़ब का करिश्मा है?

इंसान का जिस्म तो क़ुदरत की बेजान पाँच चीज़ों का बना है। जिस्म में जीवन यानि त़ाकत नहीं होती है। चुनाँचे फ़ना हो जाता है। इस जिस्म में जानदार त़ाकत इंसान की रूह है। अहमियत फ़कत इस जानदार त़ाकत रूह की है। जिस्म जो मिट्टी का बना है, उसकी क़तई अहमियत नहीं है।

इंसान के जिस्म में रहने वाली रूह अज़ली-अबदी है। यह रूहानी रूह कभी भी मरती नहीं है, कटती नहीं है, जलती नहीं है, घिसती नहीं है, हवा में उड़ती नहीं है, पानी में भीगती नहीं है। है ना रूह ख़ुदा का शानदार करिश्मा!

साइंसदान लाख़ कोशिश करने पर भी यह इल्म हासिल करने में नाकामयाब रहा है कि यह अजूबा रूह जिस्म में कैसे दाख़िल होती है और जिस्म को कैसे छोड़ती है? चूँकि कोई भी साइंसदान इतनी त़ाकत वाली ख़ुर्दबीन ईजाद नहीं कर सका है, जिससे अपनी आँख़ों से रूह को देख़ सके। है ना, इंसानी रूह एक बड़ा भारी अजूबा ?

इंसान दुनियादारी के और रोज़मर्रा के सब कामों को सर-अंजाम देता है। बच्चा पैदा होता है। ख़ाता-पीता, ख़ेलता-कूदता, हँसता-हँसाता, बड़े होने पर मदरसे में जाकर तालीम हासिल कर, ह़कीम, वकील, इंजीनियर आदि बनता है। साइंसदान  बड़े-बड़े हैरतअंगेज आविष्कार कर शोहरत की बुलंदी पर पहुँचता है।

इन सब कामों को सर-अंजाम देने वाला जिस्म या जिस्म के हिस्से क़तई नहीं हैं। इन सब जिम्मेवारियों को नुक़्ता-ए-नूर रूह बख़ूबी निभाती है। आँख़ें नहीं देख़ती हैं। आँख़ों की fखड़कियों की माऱफत रूह देख़ती है। ज़ुबान नहीं बोलती है, ज़ुबान को बोलने का ज़रिया बना कर रूह बोलती है। कानों से सुनना, हाथों से काम करना, पैरों से चलना आदि सब काम करने वाली इंसान की नुक़्ता-ए-नूर रूह है।

नुक़्ता-ए-नूर रूह के जिस्म से निकल जाने से जिस्म में आ़ँखें होते हुए भी, आँख़ें देख़ नहीं सकती हैं। मौत के बाद इन्हीं आँख़ों को अंधे इंसान की आ़ँखों की जगह लगाने से अंधा देख़ने लग जाता है। इससे साबित है कि आँख़ों या जिस्म के दिगर हिस्सों का मौत से कोई ताल्लुक नहीं है। इसका नतीजा यह हुआ कि आँख़ या जिस्म के हिस्सों की ख़राबी का मतलब मौत नहीं है।

फ़कत  जिस्म रूपी कार से जानदार रूह के जिस्म से निकल जाने से जिस्म रूपी कार की कोई अहमियत नहीं रहती है। कार, कार का ड्राईवर दो ज़ुदा-ज़ुदा हस्तियाँ हैं। इसी तरह जिस्म और रूह दो ज़ुदा-ज़ुदा हस्तियाँ हैं। है ना इस दुनिया में इंसानी रूह की अजीबो-ग़रीब ख़ूबियाँ?

नुक़्ता-ए-नूर रूह इंसान के इतने बड़े जिस्म में पेशानी के बीच में बैठकर इस दुनिया-ए-आरज़ी पर अपने सारे किरदार निभाती, ज़िन्दगी का लम्बा सफर तय करती है। रूह जब जिस्म में द़ाखिल होती है तब जिस्म में जान आती है। जिस्म से रूह का निकल जाना ही मौत है। असल चीज़ रूह के जिस्म से निकल जाने पर बेकार चीज़ जिस्म को सुपुर्द-ए-ख़ाक कर देते हैं या अग्नि संस्कार कर देते हैं।

बारीक, ज़र्रा, नुक़्ता-ए-नूर रूह तीन लत़ाफ त़ाकतों, ख़्याल, अक़्ल और आदतों के ज़रिए दुनिया-ए-आरज़ी में अपने सारे किरदार निभाती, जिन्दगी का ख़ट्टा-मीठा-कड़वा लम्बा सफर तय करती है। मन में विचार उठते हैं, अक़्ल फ़ैंसला करती है।

अक़्ल के फ़ैंसले के बाद रूह जो कर्म करती है, उसके असर को आदत कहते हैं। नेकी या बदी के किये गये सभी कारनामों के फल आदत का ख़ट्टा-मीठा-नमकीन ज़ायका रूह के साथ एक पैदाईश से दूसरे पैदाईश में जाता रहता है। है ना, इंसानी रूह अल्लाह का बनाया हुआ तिलिस्मी ताज़्जुब?

नुक़्ता-ए-नूर रुह के अजीबो-ग़रीब सलाहियतों और ख़ूबियों की वाहिद-फ़हरिस्त का यहीं ख़ात्मा नहीं होता है। इंशा अल्लाह, मौका मिलने पर इसका मुफस्सल ख़ुलासा करेंगे। नुक़्ता-ए-नूर रूह के बारे में इतनी बेइंतहा जानकारी हासिल करने पर दिल से तीन दफा तस्लीम है, तस्लीम है, तस्लीम है के मुबारकी बोल ज़ुबान से या मन-ही-मन में बोलिये चूँकि आपने दुनिया के सात मशहूर तअज़्जुब से भी असली, बड़ा, शानदार, मज़ेदार, अचरज़ भरा तअज़्जुब अल्लाह-तआला की जन्नती रचना नुक़्ता-ए-नूर इंसानी रूह का दीदार किया है।

आज इस बेहद के नीले आसमानी छत के नीचे इतना बड़ा बेहद का रंग-बिरंगा जहान क़ायम है। सभी मज़हबों की मुकद्दस किताबें मौज़ूद हैं, जिनको ख़ुदाई ख़िदमतगार, ख़ुदा के नूर-ए-रत्न रोज़ाना पढ़ते हैं। इतना सब कुछ होते हुए भी अल्लाह-तआला जोकि अकेला ही रूहानी इल्म का दरिया-ए-इल्म है, उस रूहानी इल्म को कोई भी ख़ुदा का बंदा मुकम्मल तौर पर, बख़ूबी, य़कीनन, सही रूहानी मायने में नहीं जानता है।

हिन्दुओं के पवित्र धर्मग्रंथ श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार इस समय धर्मग्लानि का समय चल रहा है। इस्लाम मज़हब की मुकद्दस किताब पाक-ए-कुरआन के मुताब़िक क़यामत का दौर जारी है। ये सभी बातें और दुनिया में चारों तरफ गर्मागर्म नज़ारे जो हम दिन-रात हर वक़्त देख़ते हैं, उनसे रोजे-रोशन ज़ाहिर है कि अल्लाह-तआला जोकि इस दुनिया का मालिक और पालनहार है,

दुनिया के तमाम मज़हबों की तमाम इंसानी रूहों की बहबूदी के वास्ते इस जहान में अपना वतन दारुल-अमान को छोड़कर बाबा आदम अलैहिस्सलाम के जिस्म में दाख़िल होकर उनके ज़ुबान-ए-मुबाऱक को आला ज़रिया बना कर इंसानी जहान को जो अब जहन्नम बन गई है उसे फिर से रूहानी इल्म के ज़रिये जन्नत में तब्दील करने के नेक काम को सर-अंजाम दे रहे हैं।

इस काम को करने की त़ाकत किसी भी मज़हब के किसी भी इंसान में नहीं है। फ़कत अल्लाह-तआला ही एक ऐसी आला हस्ती है जो इस काम को कर सकता है। महज़ अल्लाह-तआला ही इस सारी दुनिया में सबसे अज़ीम त़ाकत है। इसका बयान कुरआन मजीद की पहली सुरा की पहली आयत यानि फ़ातिहा-एक में लिखा है ‘अल्हम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन’ यानि शुक और पशंसा केवल एक अल्लाह की है, जो सारे संसार का मालिक और पालनहार है।

आख़िर में, दुनिया के तमाम मज़हबों की तमाम इंसानी रूहों के नेक दिलों से पुरज़ोर  गुज़ारिश है कि हम इंसानी रूहें अल्लाह-तआला के सीधे रास्ते पर चलकर, अल्लाह-तआला पर सच्चा ईमान लाकर, अल्लाह-तआला के नूर-ए-रत्न बन, अल्लाह-तआला का दुनिया में नाम रोशन करें।

साथ में अल्लाह-तआला की रूहानी तालीम को अच्छी तरह से समझ कर, रूहानयित में शराबोर होकर अल्लाह-तआला की पाक याद के ज़रिये शैतान की ज़ंजीरों से मुकम्मल तौर पर नज़ात हासिल करके जन्नत में बादशाह-ए-बहिश्त का शानदार पाक औहदा हासिल करें। परन्तु याद रखें, अभी नहीं तो कभी नहीं।

वक़्त का कोई भरोसा नहीं है। इस वास्ते याद रखें कि - ‘अभी नहीं तो कभी नहीं’।

रूहानी मालिक का दिल व जान से लाख़-लाख़ शुकिया अदा करते हुए सभी क़ाबिल़ेकद्र दिलाराम खुदा के दिल तख्तनशीन रूहानी पाठकों को अल्विदा।

गुज़ारिश : किसी भी मज़हब में ईमान लाने वाले ख़ुदा के बंदे के जज़्बातों को तिनका बरोबर भी त़कल़ीफ पहुँचाना इस लेख़ का म़कसद क़तई नहीं है। फिर भी किसी को कोई बात नागवार लगे तो ख़ुदा का यह बंदा म़ाफी का तलबगार है।

 अधिक स्पष्टीकरण के लिए अपने शहर में स्थित
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में सपरिवार पधारें।
आपका तहे दिल से स्वागत है।

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