ज़न्नती-इंसान बनने का दावतनामा (इल्म-ए-इलाही के ज़रिये)

0



बिसमिल्लाहिर्रहीमानिर्रहीम

अल्लाह-ताला से व़ाकिफयत

अल्लाह-ताला पर ईमान लाने वाला हर मज़हब का हर इंसान बाअदब अपने-अपने सल़ीके से अल्लाह-ताला की इबादत ज़रूर करता है, मगर मुकम्मल व़ाकिफयत न होने के सबब से अल्लाह-ताला से ह़क़ीकत में उल्फ़त भरे सचे सरूर का अहसास नहीं करता है और ख़ुदा की ख़ूबियों को अपनी ज़िन्दगी में हासिल करके अमन-चैन महसूस नहीं करता है।

लिहाज़ा, अल्लाह-ताला की सही प्यार भरी याद से शैतान से नज़ात हासिल करके, इस ज़िन्दगी को प्यार-मुहब्बत में बिताते, क़यामत के बाद ख़ुदा के बग़ीचे में ख़ुदा का ख़ुशबूदार फूल बन बहिस्त के तख़्तोताज हासिल कराने का रूहानी इल्म अल्लाह-ताला ख़ुद इस वक़्त ज़ाहिर कर रहे हैं।

सभी रूहों के मुआिफ़क अल्लाह-ताला भी अज़ली-अबदी नुक़्ता-ए-नूर रूह हैं। सभी रूहों से आला होने के सबब से उन्हें रूह-ए-आला कहते हैं। अल्लाह-ताला ग़ैर मुज़स्सम हैं यानि उनका अपना जिस्म नहीं है। अल्लाह-ताला और सभी मज़हबों की रूहें आलम-ए-अरवाह में रहती हैं।

अल्लाह-ताला सभी सलाहियतों, ख़ूबियों, फ़नकारों में सदा ही वाहिद और बहर है। इनमें से कुछ का बयान तसवीर में किया गया है। सुबहान-अल्लाह।

बिसमिल्लाहिर्रहीमानिर्रहीम

ख़ुदाई ख़िदमतगार नेक बन्दों के ख़ुदाई उसूल

1. ख़ल्क़ की सभी मज़हबों की सभी इंसानी रूहों का मालिक एक अल्लाह-ताला है।

2. किसी भी मज़हब का कोई भी इंसान कभी अल्लाह नहीं बन सकता है।

3. अल्लाह-ताला और सभी मज़हबों की इंसानी रूहों का मज़हब अमनो-अमान, प्यार-मुहब्बत और दिल-दिमाग-ख़्यालात की प़ाकीज़गी है।

4. हिन्दू-मुसलमान-सिख-ईसाई रूह के मज़हब नहीं हैं। फ़कत पहचान के वास्ते हिन्दू-मुसलमान-सिख-ईसाई कहना पड़ता है।

5. क़यामत का दौर ज़ारी है। क़यामत कभी भी क़ायम हो सकती है।

6. अल्लाह-ताला की सही, पाक याद से शैतान पर नज़ात हासिल करके इंसान क़यामत के बाद जन्नत में तख़्तोताज का ह़कदार बन सकता है।

7. यदि हमें किसी भी मज़हब के किसी भी बंदे से ऩफरत है तो हमें अल्लाह की दुआ कभी भी हासिल नहीं हो सकती है। अल्लाह के सभी मज़हबों के सभी बंदों से प्यार माना अल्लाह-ताला से प्यार।



बिसमिल्लाहिर्रहीमानिर्रहीम

मज़हब

आज कहीं-कहीं बिलावज़ह मज़हब को तबदील करना इंसानी िफतरत दिख़ाई देती है। ह़क़ीकत में पहले हम पुख़्ता समझें कि मज़हब का मतलब क्या है? इंसान के फ़ना होने वाले जिस्म में जानदार ताकत फ़कत अज़ली-अबदी रूह ही है। अहमियत रूह की है, जिस्म का कोई मोल नहीं है।

वतन में जब रूहें होती हैं, उस वक़्त वहाँ उनका हिन्दू-मुसलमान-सिख-ईसाई कोई मज़हब नहीं होता है। जिस ख़ानदान की वालिदा के जिस्म में रूह दाख़िल होकर इंसानी सरजमीं पर पैदा होती है, उसी के ख़ानदान के मज़हब को उस रूह का मज़हब हिन्दू या मुसलमान मान लेते हैं।

एक रूहानी महिफल में एक आलिम ने अवाम से एक उम्दा सवाल पूछा कि बताओ अल्लाह-ताला का मज़हब हिन्दू है या मुसलमान है? अवाम के लोग हँसने लगे कि अल्लाह-ताला का मज़हब न हिन्दू है, न मुसलमान है। क़ाबिले ताऱीफ आलिम ने बड़े सल़ीके से समझाया कि यदि अल्लाह-ताला हिन्दू नहीं है तो हिन्दू कहाँ से आये? यदि अल्लाह-ताला मुसलमान नहीं है तो मुसलमान कहाँ से आये? 

ह़क़ीकत में अल्लाह-ताला और अल्लाह-ताला के सभी बंदों का मज़हब अमनो-अमान, प्यार-मुहब्बत और दिल-दिमाग-ख़्यालात की प़ाकीज़गी है। इसका नतीजा यह हुआ कि हिन्दू-मुसलमान-सिख़-ईसाई महज़ जिस्म के मज़हब हैं।

ऊपर की बात अवाम को ठीक नज़र आई। हम भी एक लम्हे के ख़ातिर इसे क़बूल करते हैं। इत्मीनान और संजीदगी से ग़ौर करने पर ज़हन में आता है कि जिस्म फ़ना होने वाली बेजान चीज़ है। दुनिया में मेज़, कुर्सी, साईकिल आदि जितनी भी बेजान चीज़ें हैं, उनका कोई मज़हब नहीं होता है। 

लिहाज़ा, जिस्म का भी हिन्दू-मुसलमान-सिख़-ईसाई कोई मज़हब नहीं है। रूहानी इल्मयाफ़्ता आलिम ने तमीज़ से आगे समझाया कि असल में हिन्दू-मुसलमान-सिख़-ईसाई कोई मज़हब नहीं है। फ़कत पहचान की ग़रज़ से हम हिन्दू-मुसलमान-सिख़-ईसाई कहते हैं।

जैसे गुजराती, पंजाबी, पाकिस्तानी, अमेरिकन पहचान के वास्ते कहते हैं, हूबहू यह भी ऐसे ही हिन्दू-मुसलमान-सिख़-ईसाई पहचान की सबब से कहना पड़ता है।

दुनिया एक है, अल्लाह-ताला एक है, सूरज-चाँद, हवा-पानी, धरती-आसमान, क़ुदरत सब एक है। ख़ल्क़ के सब इंसानों के ख़ून का लाल रंग एक है। लिहाज़ा, ख़ुदा के सब बंदों का मज़हब एक है। इस असलीयत को ज़हन में पुख़्ता बिठा कर, इस पर अमल करते हुए, हम हिन्दु-मुसलमानों को एक साथ अह्ले ख़ानदान बनकर प्यार-मुहब्बत, अमनो-अमान, दिल-दिमाग-ख़्यालात की प़ाकीज़गी से आपसी भाईचारा निभाते, एक-दूसरे के सच्चे दोस्त बन, ख़ूब मेलजोल से रहते, ख़ुशी की ज़िन्दगी हँसते-हँसाते, ख़ाते-पीते, नाचते-गाते एक साथ बसर करनी है। यही ख़ुदा की मंसा है।

ख़ुदाई ख़िदमतगार ख़ुदा के बंदों को सदा याद रखना है - ‘सबका मालिक एक है, सबका मज़हब एक है’।

ऐ मेरे दिलपसंद पाक परवरदिगार दिलनशीन रूहानी रब, ऐ मेरे दिलबर रूहानी दिलरुबा मौला, इंसानी रूहों ने मज़हब के नाम से जो ऊँची-ऊँची दीवारें ख़ड़ी कर रख़ी हैं, उन्हें नेस्तोनाबूद करके, सभी मज़हबों के इंसानों के दिलो-दिमाग में अमनो-अमान, प्यार-मुहब्बत के दिली भाईचारे का दरिया पैदा कर। शुकिया, मेरे दिल़फरेब मालिक-ए-रूहानी शुकिया। तेरा लाख़-लाख़ शुकिया, शुकिया, शुकिया। आमीन।



बिसमिल्लाहिर्रहीमानिर्रहीम

अजूबा ख़ुदाई दारुलउलूम-ए-रूहानी से व़ाक]िफयत

इस इंसानी सरजमीं पर सबसे बड़ी और सबसे ज़्यादा त़ाकतवर रूहानी हस्ती, हमेशा-से-हमेशा के वास्ते महज़ एक अल्लाह-ताला ही है। अल्लाह-ताला ही ख़ल्क़ की तमाम इंसानी रूहों का जिस्मानी और रूहानी परवरिशगार है, जिस्मानी और रूहानी मालिक है।

उस हिर्रहीमानिर्रहीम रूहानी मालिक के हस्ब इरशाद इस क़यामत के दौर से गुज़रती जहन्नम बनी दुनिया में हर मज़हब के बंदों को बिना क़ौमी-मज़हबी-ज़ुबानी तथा नस्ल के फ़ऱक के जहन्नम को जन्नत बनाने की राह-ए-अमन की रहनुमाई की ग़रज़ से सन् 1937 में पाकिस्तान के हैदराबाद सिंध में यह हज़रत आदमज़ादी  ख़ुदाई दारुलउलूम क़ायम किया गया। सन् 1950 में यह हिन्दुस्तान में आबू पर्वत (राजस्थान) में मुंतिकल हुआ।

दुनिया के सब मदरसों, कालेजों, दारुलउलूमों में इंसानी जिस्म के परवरिश के मद्देनज़र फ़कत जिस्मानी तालीम दी जाती है। महज़, यह एक अपने आपमें सबसे अलग, एक नायाब और अजूबा मदरसा-ए-रूहानी, कालेज-ए-रूहानी, दारुलउलूम-ए-रूहानी है जहाँ ग़ैब रूह और रूहों के ग़ैब मालिक की रूहानी तालीम के ज़रिये शैतान (हवस, गुस्सा, लालच, लगाव, ग़रूर) से नज़ात हासिल करवा कर इस इंसानी सरजमीं पर सब मज़हबों के इंसानों के दरमियान अमन क़ायम करने की रहनुमाई की जाती है। 

दारुलउलूम का मतलब ही है कि सारी दुनिया में इसकी शाख़ाएँ हों, जहाँ सारी दुनिया में, सारी दुनिया के हर मज़हब के हर इंसान को रोज़ाना ह़र्प-ब-ह़र्प एक जैसी तालीम अपनी-अपनी ज़ुबान में मुहैय्या करवाई जाये। आपके जहन में, है कोई ऐसा दारुलउलूम, इस इतनी बड़ी नीली छत के नीचे, इतनी बड़ी इंसानी सरजमीं पर?

क्या किसी इंसान या किसी भी मुल्क की ह़ुकूमत में ऐसी क़ाबिलियत या ऐसी क़ुव्वत है कि सही मायनों में ऐसा दारुलउलूम क़ायम कर सके? संजीदगी से सोचिये, इत्मीनान से सोचिये, सोचते रहिये, सोचते रहिये। अच्छा, अब ज़्यादा परेशान होने की ज़रूरत नहीं है। फ़कत पाक परदिगार ख़ुदा ही ऐसा नायाब क़रिश्मा कर सकता है।

फ़ज्लेख़ुदा, यह ख़ुदाई दारुलउलूम-ए-रूहानी, इस बेहिसाबी इतनी बड़ी जमीं पर एक ही अदीम-उल मिसाल है, जहाँ रोजाना हर मरकज़ पर ख़ुली किताब का, आसमानी किताब का ख़ुदाई कलाम ह़र्प-ब-ह़र्प एक जैसा हर मुल्क में, हर मुल्क की अपनी ज़ुबान में हर मरकज़ में सुनाया जाता है। देखा, क़ादिरे-कुल ख़ुदा का ग़जब का शानदार, बेमिसाल क़रिश्मा।

इस वक़्त, इस इंसानी जहाँ में इस ख़ुदाई दारुलउलूम-ए-रूहानी की त़करीबन 145 मुल्कों में त़करीबन 9000 मरकज़ हैं, जहाँ त़करीबन नौ लाख़ रूहानी-इल्म-ए-ख़्वाहां रोज़ाना ख़ुदाई कलाम सुनकर पाक परवरदिगार ख़ुदा की पाक याद से फ़रिश्त बनने का रियाज़ करते हुए इस इंसानी दुनिया में अमनो-अमान क़ायम करने की रहनुमाई के नेक काम को सरअंजाम देते हैं।

दुनिया में ग़ैब रूहानी इल्म के ज़रिये सही तौर पर क़ायम-ए-अमन के क़ामयाब नेक कारनामों के मद्देनज़र संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस ख़ुदाई दारुलउलूम की भूतपूर्व मुख्य पशासिका दादी पकाशमणि जी को सन् 1981 और सन् 1986 में दिली प्यार से ‘पैगंबर-ए-अमन’ के ख़ुसूसि ख़िताब से बाअदब नवाज़ा है। वक़्त-ए-मौजूद, यह ख़ुदाई दारुलउलूम-ए-रूहानी, ख़ुदाई-इल्म-ए-रूहानी के बदौलत सारे जहाँ में अमनो-अमन के रूहे गुलाब की रूहानी ख़ुशबू चारों ओर फ़ैलाकर सबके वासते राह-ए-अमन की रहनुमाई कर रहा है।

यहाँ मज़हब तबदीली अपना वजूद नहीं रखती है। शैतान ने अपनी गुमराही से हर इंसान में जो शैतानियत भर दी है, यहाँ उस शैतानियत से नज़ात मुहैय्या करवा कर शैतान को फ़रिश्त बनाने की तिलिस्मी ख़ुदाई िफतरत काम करती है। तालीम देने में मज़हब तबदीली का कोई सवाल पैदा नहीं होता है।

पाक परवरदिगार अल्लाह-ताला को याद करने में तिलक लगाने, चिराग़ जलाने, आरती उतारने की हरगिज़ ज़रूरत नहीं है। लिहाज़ा, आईये, हम सभी हिन्दू-मुसलमान-सिख़-ईसाई इस ख़ुदाई इल्म-ए-रूहानी के राह पर क़दम-ब-क़दम मिलाते, एक साथ क़दम बढ़ाते इस जहन्नम को जन्नत में तबदील करने के अल्लाह-ताला के अज़मत कर्म में मददगार बन ख़ुदा के बगीचे में ख़ुशबूदार फूल बनने का अपना रूहानी ह़क रूहानी मालिक से पुख़्त कर लें।

बिसमिल्लाहिर्रहीमानिर्रहीम

जन्नती-इंसान, मुकम्मल-इंसान, िफरदौसी-इंसान

दुनिया की सबसे बड़ी सच्चाई है कि ख़ल्क़ के तमाम मज़हबों की तमाम इंसानी रूहों का परवरिशगार, सबका मालिक एक अल्लाह-ताला है। दुनिया की दूसरी बड़ी सच्चाई या ह़क़ीकत है कि किसी भी मज़हब का वालिदा के जिस्म से पैदा होने वाला कोई भी इंसान कभी भी ख़ुदा नहीं बन सकता है। लिहाज़ा, आप जो तसवीर देख रहे हैं, यह ह़क़ीकत में ख़ुदा नहीं है। यह फ़कत जन्नती इंसान का फ़ोटो है।

इसमें ग़ौरतलब ख़ासियत है कि इस इंसान में और आज के इंसान में जमीन-आसमान का फ़रख़ है। आज सभी इंसान शैतान की गुमराही के सबब से शैतान के पंजे में पूरी तरह से ज़कड़े हुए हैं, जबकि यह मुस्त़फा इंसान शैतान की साया तक से एकदम मह़फूज़ है यानि इनमें आज के इंसानों के मुआफ़िक नफ़्सानी ख़्वाहिशियात, गुस्सा, लालच, लगाव, ग़रूर आदि नहीं है।

इस नज़र से ये मुकम्मल-इंसान है, मुस्त़फा-इंसान है। आज के इंसान के ऐबों का इनको इल्म तक भी नहीं है।

एक फ़ाज़िल बिरादर ने नज़रेइनायत करते हुए हमारे जन्नति इल्म में इज़ाफा किया कि जन्नत में रेशम और मख़मल के रंग-बिरंगे दिल-दिमाग पसन्द, दिलख़्वाह, दिलपज़ीर, दिलकश लिबासों में हीरे-मोती जड़े होंगे, हीरों से जड़ित सोने के कंगन होंगे। बदन पर बेशुमार बेहद कीमती हीरे-मोतियों-रत्नों के ज़ेवर होंगे। एक-से-एक आलीशान, क़ाबिल़ेकद्र, मंहगे गहनों के सिंगार होंगे...बस, यही यह तसवीर है।

ह़क़ीकत में जन्नत की दिलकश दुनिया के आलमे-मालिके-म़ुअज़्ज़िम (आलमगीर) और आलमे-मुलिकाए-म़ुअज़्ज़िम (आलमगीर) निहायत ही नेक तबीअत इंसानों के ये नायाब तसवीर हैं। बहिस्त अपने आप में आलीशान जिस्म-दिल-दिमाग को कामिल राहतकदा दुनिया का नाम है। ऐसे बहिस्त की दुनिया के ये इंसानों में ऊँची-से-ऊँची इंसानी हस्ती है। अलबत्ता, ये ख़ुदा या उसके हमसर क़तई नहीं हैं।

वक़्त-ए-क़यामत जो ख़ुदाई ख़िदमतगार इंसानी रूहें, ख़ुदा की ख़िदमत में अपना दिल-दिमाग-दौलत पूरी तरह से कुर्बान करके, ख़ुदा की दिन-रात ख़िदमत करके, ख़ुदा की इबादत में हमेशा शराबोर रहते अपनी आबिद ज़िंदगी से ख़ुदा का नाम रोशन करते, ख़ुदा ऐसे अपने दिलख़्वाहा, दिलरुबा, दिलपसंद बंदों को क़यामत के बाद ख़ुदा के ख़ुशबूदार बगीचे में ख़ुशबूदार फूल बनाकर त़ख्तनशीन करता है। लिहाज़ा, यह तसवीर व़ाकई कामिले-इंसान, िफरदौसी-इंसान, ग़म की दुनिया के इल्म से दूर रहने वाले, ख़ुदाई-म़ुकद्दर वाले ख़ुशिकस्मत पाकनफ़्सी इंसान की है। ख़ुदा के खुले दरबार में, ख़ुदा की ख़िदमत से हर इंसान ऐसा बनने का ह़कदार है।

आप और हम सभी पाकपरवरदिगार ख़ुदा के पाक उसूलों को पूरी तरह से अपनी ज़िंदगी में अमल करके, पूरी तरह से ख़ुदा के रास्ते पर ख़ुद चलकर और दूसरों को चलाकर ख़ुदा के ख़ुशबूदार बगीचे में इस तसवीर जैसा पाकबाज़, ख़ुशबूदार फूल यानि इंसानी फ़रिश्त बनने की अ़फज़ल ख़्वाहिश यानि अपनी पाक तमन्ना पूरी कर लें।

ख़ुदा अपने हज़ारों हाथों से हर वक़्त इमदाद करने को हाज़िर है। वक़्त की नज़ाकत को देखते हुए एक लम्हें की भी देरी किये बिना अल्लाह-ताला के सीधे रास्ते पर चलने का स़फर फ़ौरन शुरू करें। याद रखें कि वक़्त तेज़ी से जा रहा है। वक़्त का कोई भरोसा नहीं है। जो करना है अभी कर लो। ऐसा ना हो कि म़ौका हमेशा-हमेशा के वास्ते हाथ से चला जाये।

यहाँ पाकदामन जन्नति इंसानों का ज़िक महज़ जानकारी देने की ग़रज़ से किया गया है। इसका यह म़कसद क़तई नहीं है कि हम उनकी बंदगी या इबादत करें। अल्हम्दु लिल्लाही रब्बिल आलमीन यानि ताऱीफ और शुक फ़कत एक अल्लाह-ताला का ही है। लिहाज़ा बंदगी और इबादत एक अल्लाह-ताला की करके सभी राबते उनसे क़ायम करके जन्नत में तख़्तनशीन बनने का ह़क हासिल करना है यानि तसवीर जैसा ख़ुदा ताला का नूरेजहाँ लाय़क जन्नती इंसान बनना है।

बिसमिल्लाहिर्रहीमानिर्रहीम

गुज़ारिश : फ़रिश्त बनने का दावतनामा

ख़ुदापस्त तमाम इंसानी रूहों से पुरज़ोर, दिली गुज़ारिश है कि फ़रिश्त बनने का यह नायाब दावतनामा क़बूल करके इल्म-ए-रूहानी की पूरी तालीम एक हफ़्ता, रोज़ाना एक घण्टा, बिलादाम के ज़िंदगी में इख़्तियार कर जन्नत के तख़्तोताज का ह़क पुख़्त हासिल करने की नेक ग़रज़ से आप अपने शहर के हज़रत आदमज़ादी ख़ुदाई दारुलउलूम (प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय) से मुल़ाकात करें।

वक़्त का कोई भरोसा नहीं है। इस वास्ते याद रखें कि - ‘अभी नहीं तो कभी नहीं’।

रूहानी मालिक का दिल व जान से लाख़-लाख़ शुकिया अदा करते हुए सभी क़ाबिल़ेकद्र दिलाराम खुदा के दिल तख्तनशीन रूहानी पाठकों को अल्विदा।

गुज़ारिश : किसी भी मज़हब में ईमान लाने वाले ख़ुदा के बंदे के जज़्बातों को तिनका बरोबर भी त़कल़ीफ पहुँचाना इस लेख़ का म़कसद क़तई नहीं है। फिर भी किसी को कोई बात नागवार लगे तो ख़ुदा का यह बंदा म़ाफी का तलबगार है।

 अधिक स्पष्टीकरण के लिए अपने शहर में स्थित
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में सपरिवार पधारें।
आपका तहे दिल से स्वागत है।

 


Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
Post a Comment (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top