(भाग 2 का बाकि)
2. सफल और सुखमय जीवन का राज़
चुनौती को स्वीकार करें : जीवन एक चुनौती है, जहाँ साहस और विवेक की ज़रूरत है, मानाकि वहाँ खतरे हैं, परन्तु उपलब्धियाँ उससे भी कहीं
अधिक हैं। यह ठीक है कि मछलियाँ यदि अपना मुँह नहीं खोलें
तो वह शिकार होने से बच सकती हैं, परन्तु ऐसे में
तो वह जीवित भी नहीं रह सकती हैं। कार शोरूम में सुरक्षित तो रह सकती है, परन्तु ज़रा सोचिये कि क्या वह इनके लिए बनाई गई है'?
लोग पुरानी और हानिपूर्ण आदतों में जीते रहते हैं, परन्तु रूपान्तरण में कम आस्था रखते हैं। कई बार परिवर्तन असुविधापूर्ण होता है। उन्नति का क्रम उत्तरोतर आगे बढ़ता रहे इसके लिए परिवर्तन का निर्णय परम आवश्यक है
जीवन में अचानक उत्पन्न हुई कठिनाईयों के समय निर्णय का अभाव समस्या को ज्यूँ-का-त्यूँ ठहराने में सहायक बन जाता है और उचित समय पर
उचित निर्णय मनुष्य के व्यक्तित्व में कई तरह के सामर्थ्य को उत्पन्न करने का कारक
तत्व बन जाता है। किसी समस्या के प्रति निर्णय लेना चुनौती को स्वीकार करने जैसा है।
सभी आवश्यक गुण और शक्तियाँ चुनौती के कारण मनुष्य के व्यक्तित्व में उमड़ कर कार्य
की सफलता के लिए क्रियाशील हो उठती हें। जैसे साहस, दृढ़ आत्म-विश्वास, शक्तिशाली प्रयत्न और लगन में मगन की स्थिति
इत्यादि।
आज के इस उपभोक्तावादी संस्कृति में समाज के लिए नैतिक और आध्यात्मिक मूल्य के
साथ-साथ सकारात्मक सोच और दृष्टिकोण एक बार पुन प्रासंगिक हो उठा है।
भांति-भांति की सुख-सुविधाओं से भरपूर चकाचौंध
वाली ज़िन्दगी में प्रत्येक व्यक्ति इस लालसा से युक्त है कि उन सभी चीज़ों का उपयोग
कैसे किया जाये।
पाने की लालसा के दौर में आज का युवा मन इस कदर आहत है कि छोटी-छोटी असफलता से हार कर धैर्य और आशा को छोड़, हताशा का
शिकार हो जाता है। आज उन्हें अपने इस नकारात्मक सोच को बदलने की अत्यधिक आवश्यकता है।
उन्हें इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि सोने की शुद्धता की परख कसौटी पर ही होती है।
किसी चीज़ को पाने के लिए मूल्य चुकाना आवश्यक है।
असफलता का इतना ही अर्थ है कि आपने ईमानदारी से अपनी शक्तियों का कार्य के प्रति
विनियोग नहीं किया है। इसमें निराश होने जैसी कोई भी बात नहीं। सफलता के मार्ग में
आने वाली कठिनाईयाँ आपके लिए वे चुनौतियाँ हैं जिसे स्वीकार करते ही, उतनी शक्तियाँ आपके अन्दर से खिंचकर अपने आप बाहर आ जायेंगी। इसमें घबराने
की आवश्यकता बिल्कुल ही नहीं है।
3. असफलता – आत्म-विश्लेषण का अल्पकालिक
पड़ाव है
असफलता की चिन्ता मत करो, ये बिल्कुल स्वाभाविक
है। असफलताएँ जीवन का सौन्दर्य हैं। जीवन में यदि संघर्ष न रहे, तो जीवित रहना ही व्यर्थ है। संघर्ष जीवन का काव्य है। संघर्ष और त्रुटियों
की परवाह मत करो। आदर्श को सामने रखकर हज़ार बार आगे बढ़ने का प्रयत्न करो। यदि तुम
हज़ार बार भी असफल रहते हो तो एक बार फिर प्रयत्न करो।
– विवेकानन्द
इतिहास साक्षी है उन सभी सफलताओं के किस्सों की जो अपनी पिछली बड़ी-बड़ी असफलता के हिस्सों के जोड़ की अंतिम परिणति थी। एक बार यदि कोई अपने जीवन में असफल हो जाता है तो उसे मान लेने में उसके प्रति न्यायपूर्ण दृष्टि कदापि नहीं माना जा सकता है।
इतिहास साक्षी है कि दुनिया में अब्राहम लिंकन जैसे व्यक्ति सैकड़ों
बार असफल हुए, फिर भी अन्त में अपेक्षित सफलता ने उनके गले में
विजय का हार डाल ही दिया। इसलिये कर्मशील मनुष्य को बार-बार की
असफलता के बावजूद भी अपने पुरुषार्थ को कभी भी ढीला नहीं होने देना चाहिये। बल्कि नूतन
स्फूर्ति और साहस के साथ कृत संकल्प हो सफलता प्राप्त करने में प्रयत्नशील रहना चाहिये।
कई बार पत्थर प्रथम आघात में ही नहीं टूट जाता है, उसे तोड़ने
के लिये उस पर बार-बार आघात की आवश्यकता होती है।
महर्षि विश्वामित्र ने राजर्षि से ब्रह्मर्षि तक की यात्रा में अनेक बार अपनी तपस्या
की शक्ति खोई अर्थात् बार-बार असफल होकर, गिर-गिरकर भी अंत में ब्रह्मर्षि पद को प्राप्त हुए। इसे उन्होंने चुनौती के रूप
में स्वीकार किया और प्रत्येक प्रयत्न से मिली असफलता से उन्होंने कुछ-न-कुछ सीखा और अन्त में अपने प्रयत्न में सफल हो गये।
मनुष्य को सोचने और समझने की अद्भुत क्षमता का जो वरदान प्रभु से मिला है वह किसी अन्य प्राणी को नहीं मिला है। हालांकि शारीरिक क्षमता में अन्य प्राणी मनुष्य से कई गुणा बढ-बढ़कर हैं। फिर भी हम इस ईश्वरीय सौगात का कितना फायदा उठाते हैं यह प्रश्न हमें अपने आप से अवश्य पूछते रहना चाहिए। कुछ लोग बिना सोचे-समझे कार्य कर बैठते हैं और पछताते हैं।
दूसरी तरह के लोग वे हैं, जो किसी कार्य को बिना अच्छी तरह सोचे समझे नहीं करते हैं। निश्चय ही आप अपने को दूसरी तरह के लोगों की श्रेणी में रखते होंगे। अन्यथा आप अपनी-प्रतिभा का बेहतर उपयोग नहीं कर रहे हैं। लंगर डालकर नाव चलाना और पानी पर लकीर खींचना - दोनों ही श्रेष्ठतम क्षमता का घोर अपमान है। ज़िन्दगी बाह्य घटनाओं, परिस्थितियों, भाग्य और हमारे पुरुषार्थ का स्वतंत्र मिश्रण है।
भाग्य और कुदरत के प्रभाव को तो हम नहीं टाल सकते
हैं, परन्तु कुम्हार की तरह कुछ निर्माण तो अवश्य ही कर सकते
हैं। अकाल, भूकम्प, बीमारी और दुर्घटनाओं
को टाला तो नहीं जा सकता है, परन्तु हताश होने के बदले उससे समझौता
कर हमें आगे बढ़ जाना चहिए किन्तु बुरे कर्म और बुरी आदतों से तो कम-से-कम हम अपने को बचा ही सकते हैं।
एक बार दो मित्र जंगल से गुजर रहे थे। उन्हें शेर के दहाड़ने की आवाज़ सुनाई दी।
उसमें से एक ने फारेस्ट-शू उतार कर रनिंग-शू पहन लिए। इस पर दूसरे ने मजाक में कहा – ``क्या तुम
यह समझते हो कि शेर से भी तेज दौड़ोगे। पहले ने कहा नहीं मित्र यह तो नहीं हो सकता,
परन्तु तुमसे ज़्यादा तेज तो अवश्य ही दौड़ सकता हूँ''।
गलाघोंट प्रतियोगिता के जिस दौर से आज का युवा गुजर रहा है, उसे दृढ़ संकल्प से अपने मनोभावों और आवेगों पर नियंत्रण स्थापित करना ही होगा। प्रत्येक असफलता से यह सीखना होगा कि हमने सफलता के मार्ग से एक अवरोध को हटा दिया है। क्या अब्राहम लिंकन, एडीसन जैसे हज़ारो लोग इस संसार में नहीं हुए हैं?
क्या असफलता से हारकर उन्होंने पलायनवादी वृत्ति
को अपना लिया? नहीं। उन्होंने अपनी असफलता का बार-बार पुनर्मूल्यांकन किया और सफलता हासिल कर जीवन में विजय के प्रति लोगों के
सामने सकारात्मक दृष्टिकोण रखा। जब वे सफल हो सकते हैं फिर आप क्यों नहीं। थोड़ी-सी कठिनाई और परेशानी से घबरा कर सफलता के अनीतिपूर्ण शॉर्ट-कट रास्ते को अपना कर बहुमूल्य जीवन नष्ट कर लेना कहाँ की समझदारी है?
प्रयत्न में प्राप्ति का माधुर्य समाहित है : प्रत्येक व्यक्ति की आन्तरिक इच्छा होती है कि वह अपने लक्ष्य को उपलब्ध करने में सफलता हासिल कर ले, परन्तु जीवन सफलता और असफलता का अद्भुत मिश्रण है। यह वह बाधा दौड़ है जहाँ असफलता का अवरोध बार-बार आपके सामने आ खड़ा होता है, परन्तु इसका मतलब यह भी नहीं है कि अवरोध के सामने हमें हिम्मत हारकर घुटने टेक देना है, अपितु प्रत्येक अवरोध को चुनौती और मनोरंजन समझ कर उमंग-उत्साह से ``एक बार फिर से प्रयत्न करने के संकल्प'' की छलांग लगाते-लगाते सफलता को अंत तक प्राप्त कर लेना ही है।
जिस प्रकार कठोर शारीरिक श्रम
से भूख का माधुर्य मूल्यवान हो जाता है, ठीक उसी प्रकार संघर्ष
और प्रयत्न के उपरान्त उपलब्धि अत्यन्त मूलवान हो जाती है। चाहे कई अर्थों में वह उतना
मूल्यवान नहीं भी हो, परन्तु सफलता का मापदण्ड संघर्ष और प्रयत्न
के बाद अच्छा महसूस करने में ही समाहित है। सफलता की कसौटी इस बात पर निर्भर करती है
कि, कर्त्ता के कार्य पूर्ण करने की श्रेष्ठ मनोदशा और प्रयत्न
का ढ़ंग क्या है?
असफलता का भय : हर समय उसका भूत मनुष्य का पीछा
करता रहता है। असफलता का भय, मृत्यु का भय, बदनामी का भय, अपने आरामपूर्ण दायरे से बाहर निकलने में
अनिश्चितता और असुरक्षा का भय कि कहीं इतना पैसा लगाने पर भी क्रिया पार में सफल नहीं
हुए, तो फिर क्या होगा? हाँ इसका यह मतलब
कदापि नहीं है कि आप जुआ, स्मगलिंग इत्यादि अवैध अविवेकपूर्ण
कार्य का खतरा मोल लें। जिन खोजा तिन पाईयाँ, गहरे पानी पैठ जो बौरी डूबन डरा रहा किनारे बैठ।
पलायन की प्रवृत्ति : अक्सर ऐसा देखा गया
है कि किसी लक्ष्य को पाने के लिए हम उमंग, उत्साह, योजना सभी बातों को ध्यान में रख कार्य प्रारम्भ तो कर देते हैं, परन्तु मुश्किलों रूपी तूफान हमारी हिम्मत और धैर्य को परास्त कर देते हैं।
ऐसे में हिम्मत और धैर्य के प्रति दृढ़ता के अभाव में हम उस कार्य को बीच में ही अधूरा
छोड़ कर भाग खड़े होते हैं।
सफलता के लिए आवश्यक प्रतिभा और साधनों के बावजूद कठिन परिस्थितियों में भी दृढ़ता
से कार्य क्षेत्र में पैर जमाए रहने के लिए आन्तारिक आत्म-विश्वास और साहस की ज़रूरत होती है। सतत् प्रयत्न और प्रतिरोधक क्षमता का विकास
हमारी पलायनवादी प्रवृत्ति पर विजय दिलाकर वह हमारे सफलता के मार्ग को सदा के लिए प्रशस्त
कर देगी। आशायें एकांगी सच तो नहीं है, परन्तु यदि उसमें दृढ़ता सम्पन्न अभ्यास और प्रभु-प्रेम
से भरा विश्वास सम्मिलित कर दिया जाए तो वे अवश्य सफलता दिलाती है।
यदि नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों का आधार दृढ़ता रूपी चट्टान पर स्थापित किया जाए, तो समृद्ध जीवन की बुलन्दियाँ स्वत ही आसमान को छूने लगेगी। लक्ष्य के प्रति दृढ़ निश्चय, आत्म-विश्वास, सकारात्मक सोच, प्रसन्नता और प्राप्तियों के लिए सतत् प्रयत्नशीलता हो। यही सफलता का राज मार्ग है। बस नकारात्मक सोच और गलत संग से दूर रहें। आश्चर्य है! सफलता तो हम पाना चाहते हैं, परन्तु पुरुषार्थ करते समय हम अपने ही प्रयत्नों के प्रति शंकाशील दृष्टिकोण बनाये रखते हैं कि कहीं ऐसा नहीं हुआ तो?
अपनी ही आन्तरिक शक्तियों के प्रति ऐसा अविश्वास तो उड़ते धूल में कपड़ा धोकर सुखाने जैसा है। चुस्त-दुरुस्त कार्य-शैली, असफलता का पूर्ण मूल्यांकन और उन कारणों की खोज, असफलता और विपरीत परिस्थितियों में निराशा और हताशा को तिलांजली दे उमंग-उल्हास से पुन पुन प्रयत्नशील होने वाले, निश्चित ही सफलता और प्रसन्नता का अमृत चखते हैं। सदा प्रसन्नता का नज़रिया जब जीवन यात्रा की स्थाई आदत हो जाती है तो ऐसा व्यक्ति नर्क-तुल्य स्थिति में भी स्वर्गिक आनन्द का निर्माण कर लेता है।
जबकि दुःखी सोच वाला स्वर्ग को भी नर्क तुल्य बना देता है। असफलता और कुछ नहीं, सिवाय इसके कि आपने उसके लिए पूरा प्रयत्न ही नहीं किया है। `बस एक और प्रयास' वाली नीति सहज ही सफलता दिला देती है। एक बार फिर से प्रयत्न करने का दृढ़ संकल्प जिसके पास है, उसकी विजय अटल है। सफलता पाने में वास्तविक समस्या क्या है? मात्र सम्यक और सकारात्मक चिंतन का अभाव। इसलिए ध्यानपूर्वक सोचिए और आप पायेंगे कि सम्भावनाओं के बेहतर द्वार सदा की आपके लिए खुले हैं।
मनुष्य की शान इस बात में नहीं होनी चाहिए कि वह सदा विजयी हो, बल्कि इसमें है कि गिरने के बाद पूरे उत्साह के साथ फिर से जीतने के संकल्प
को लेकर उठ खड़ा हो सके। `मनुष्य का लक्ष्य सफलता से भी अधिक
इस सद्गुण पर अधिक होनी चाहिए कि उसकी मानसिक प्रसन्नता अविरत रूप में बढ़ती रहे'। क्योंकि प्रसन्नता बुद्धि को शान्त और एकाग्र होने में सहायक है और सफलता
के लिए इस बात का होना सर्वाधिक मूल्यवान है।