सच्ची सफलता (Part 4)

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(भाग 3 का बाकि)

4. नकारात्मकता से दूर सदा परमात्मा में विश्वास

निश्चय-बुद्धि-विजयन्ति।

दृढ़ विश्वास और साहस की छोटी-सी शुरूआत ही मनुष्य को ऐश्वर्य सम्पन्न बना सकती है। श्रद्धा और विश्वास के आश्चर्यजनक परिणाम के आगे वैज्ञानिक व्याख्या बिलकुल असमर्थ है।

विजय अभियान में जीवन पथ पर कई बार कठिन परिस्थितियाँ उमड़ कर सामने आ जाती हैं। उसमें टिके रहने के लिए हमें अत्यधिक संघर्ष करना पड़ता है। उस समय आत्म-प्रोत्साहन और परमात्मा की शक्ति  पर असीम विश्वास रख एक मात्र उनका स्मरण और उनके द्वारा प्राप्त दिशा निर्देशों की ज़रूरत पड़ती है। अपने को निमित्त समझ अपने जीवन की बागडोर परमात्मा के हाथों में समर्पित कर देना सफलता के लिए अत्यधिक आवश्यक है। जहाँ निश्चय है वहाँ विजय के तकदीर की लकीर मस्तक पर है ही।

इस जगत में प्रत्येक व्यक्ति एवं प्रत्येक वस्तु अतुलनीय है। आपकी तुलना किसी दूसरे के साथ हो ही नहीं सकती। क्योंकि इस सृष्टि के विशाल रंग-मंच पर सभी का अभिनय अलग-अलग है। इसलिए यह छोटा है, यह बड़ा है इस प्रकार का दृष्टिकोण अयथार्थ और त्रुटिपूर्ण है। व्यक्ति को अपने निर्धारित लक्ष्य के अनुसार अपने भूतकाल की अपेक्षा अपने बेहतर वर्तमान की तुलना करने से खुद की प्रगति का आंकलन सम्भव है।

अपनी इच्छा और स्वप्नों में मनुष्य को प्रतिपल यही विश्वास पैदा करते रहना चाहिए कि हम ज़रूर अपने लक्ष्य में कामयाब होंगे। क्योंकि परमात्मा हमारा साथी है।

कहावत भी है – `जिसका साथी है भगवान, उसको क्या रोकेगा आँधी और तूफान' अपने इसी दृढ़ विश्वास के साथ कि-चलो, हम कमज़ोर हैं, फिर भी कोई बात नहीं क्योंकि हमारा साथी सर्वशक्तिवान परमात्मा है, कदम बढ़ाते चलें। `सत्य की नाव हिलेगी, डुलेगी ज़रूर, परन्तु डूबेगी नहीं' इतना तो निश्चित है। क्योंकि हमारा खिवय्या प्रभु ही है। अपने अर्न्तमन में इस दृढ़ आस्था को बनाए रखें कि हमारी दोस्ती की इस जोड़ी को कोई हरा नहीं सकता। जहाँ परमात्मा है विजयश्री वहाँ निश्चित है क्योंकि `निश्चय-बुद्धि-विजयन्ति'

सदा इस सकारात्मक चिन्तन में मस्त रहें कि

1. हम परमात्मा की अमृत संतान हैं।

2. हम इस सृष्टि में उनकी सर्व श्रेष्ठ रचना हैं, इसलिए सर्व महान् भी हैं।

3. प्रभु का अविनाशी प्यार, उनकी ज्योतिर्मय छवि और उनकी पावन याद हमारे स्नेही मन-मन्दिर में चन्दन की सुवास सदृश्य रची-बसी है।

4. सभी आत्माओं के प्रति सदा मन में एक मंगलमय संकल्प बना रहे कि मेरी तरह सभी का जीवन मंगलमय हो।

5. मैं विश्व पिता की प्यारी संतान हूँ इससे ऊँचा सम्मान और प्रसन्नता मेरे लिए और क्या हो सकता है, इसलिए मैं इस जगत की समस्त श्रेष्ठ उपलब्धियों का अधिकारी हूँ।

परमात्मा से बुद्धि का ऐसा उच्चतर योग असम्भव-सा कार्य भी सम्भव करा देता है। आप अपने अन्दर उस अद्भुत सामर्थ्य को प्रकट होते हुए देखेंगे कि सहसा आपको स्वयं पर यह विश्वास भी नहीं होगा कि हमने इस मुसीबत पर कैसे विजय हासिल कर ली।

आपकी माँगे स्वीकृत होकर महाप्रसाद के रूप में आपके जीवन में बरस जायेगी और आपका जीवन चारों तरफ प्राप्तियों की हरियाली से भरपूर हो जायेगा। परमात्मा के प्रति अटूट निश्चय और प्रेम के साथ अपने सम्पूर्ण सामर्थ्य को ईमानदारी से अपने निर्धारित लक्ष्य के प्रति सम्पादित करें।

उसका परिणाम होगा विघ्नों और कठिनाईयों से मुक्ति और हाथ आयेगी सफलता और प्रसन्नता। जिससे अपना और दूसरे लोगों का हित सधे, ऐसे महान् लक्ष्य और उद्देश्य के प्रति समर्पित महान् विचार, उत्तम विश्वास और पावन कार्य के प्रति समर्पित व्यक्ति निसन्देह परमात्मा का कृपा पात्र बन जाता है साथ ही परमात्मा की समस्त शक्तियाँ उस व्यक्ति के जीवन को गरिमामय और आभामय बना देती हैं।

5. श्रेष्ठतर कार्यक्षमताओं का प्रयोग करें

``मनुष्यों के आलसी प्रवृत्ति की काली छाया मात्र करने तक ही नहीं परन्तु सोचने तक भी फैली हुई है ऐसे लोगों को ही आलसी और अकर्मण्य कहते हैं ऐसों के लिए ही इस संसार में सम्भव कुछ भी नहीं। असम्भव कही जाने वाली वे तमाम मुश्किलें आप की थोड़ी सी सजगता का अभाव मात्र है। वैसे ही जैसे फैली हुई विशाल अग्नि को चुल्लु भर जल से बुझाया जा सकता था। ज़रूरत है कि कैसे उस सुषुप्त श्रेष्ठतम क्षमताओं को जगाया जाए''

एक सामान्य आदमी अपनी कार्यक्षमता और योग्यता का मात्र 25 प्रतिशत ही उपयोग करता है। संसार उन लोगों की इज्जत करता है, जो अपनी क्षमता का 50 प्रतिशत उपयोग करते हैं और उन चुनन्दे लोगों को यह संसार अपने सर-आँखों पर बिठा लेता है जो इस क्षमता का सौ प्रतिशत उपयोग करते हैं।

एड्रयु कारनेगी

मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति अधिक से अधिक 20 प्रतिशत अपनी मानसिक शक्तियों का उपयोग अपने पूर जीवन-काल में करता है। उसका कारण है अपनी सुषुप्त विशाल आन्तरिक शक्तियों के प्रति अविश्वास और अज्ञान। जबकि हमारा सामर्थ्य वर्तमान कार्यक्षमता से कई गुणा अधिक है। फिर यह प्रश्न उठता है कि कैसे उन सुषुप्त शक्तियों को जगाएँ। इसके लिए निम्नलिखित बातों पर ध्यान दें

w शीतलता और सहनशीलता कमरे में वातानुकूल के समान हैं, इससे कार्य क्षमता बढ़ती है।

w लगातार कार्य करने के अभ्यास से कार्य क्षमता बढ़ती है। किसी कार्य का सम्पादन सर्वोत्तम ढंग से हो इसके लिए तनावपूर्ण गलियों से नहीं गुजरें, बल्कि तनाव मुक्त सुविधापूर्ण राजमार्ग का चुनाव करें।

w निर्धारित लक्ष्य को पाने का न तो केवल एक ही साधन है और न ही तो एक मार्ग। अनेक साधन और बहुत से पथ हैं। जो सुविधापूर्ण और घर्षणामुक्त हो उसी मार्ग का चयन करें। इससे आपको अधिक से अधिक परिणाम प्राप्त होगा।

w अधिकतम परिणाम प्राप्त हों इसके लिए उचित समय पर लक्ष्य का क्रियान्वयन और इन बातों के प्रति आपके दृष्टिकोण का केन्द्रित होना अपेक्षित है।

w थकान का कुप्रभाव भी अधिकतम परिणाम को प्रभावित करता है। इसलिए लगातार काम और विश्राम के बीच संतुलन आवश्यक है। थकान से बचना तथा कार्य को आनन्दपूर्ण और मनोरंजन के माहौल में करना, अधिकतम परिणाम पाने के लिए कारक तत्व है।

w कार्य-प्रणाली को अचेतन का हिस्सा या आदत बनाने तक सतत् अभ्यास करते रहना चाहिए। आदत का निर्माण हो जाने पर कर्म शक्ति का व्यय कम और परिणाम की प्राप्ति अधिक सहज होगी।

w शारीरिक और मानसिक शक्तियों के बीच भी संतुलन आवश्यक है। दोनों ही स्वास्थ्य उत्तम गुणवत्ता वाला होना चाहिए। अपने प्रतिदिन के कार्य में शारीरिक और मानसिक परिवेश के अन्दर ऐसा सुन्दर सामंजस्य बिठाना चाहिए कि अधिक-से-अधिक कार्य का निष्पादन सर्वोत्तम ढंग और उत्तरदायित्वपूर्ण तरीके से कुशलतापूर्वक हो सके। सफलता के लिए जीवन में इस कला को सीखना आवश्यक है। किसी जादुई चमत्कार की अपेक्षा में बैठे-बैठे जीवन गवाँ देना ठीक नहीं।

w जीवन में अधिकतम पाने वाले उन सभी लोगों को अपने आप से एक मौलिक प्रश्न अवश्य पूछना चाहिए कि क्या आप पूर्ण स्वाभिमानी हैं। यदि हाँ, तो उन सभी कार्यों को तत्काल झटक दें जिसे करने से आप अपनी नज़र में खुद ही गिर जायेंगे।

जिसे करने पर आप ग्लानि महसूस करते हैं, खराब और कष्टपूर्ण अनुभव करते हैं, उसे कभी नहीं करने की अटल प्रतिज्ञा अपने आपसे कर लें। अपनी उन किसी भी गलत आदत को अपने ऊपर हावी न होने दें। यदि आपके मन के किसी कोने से उस कार्य को पूरा करने का ज़रा भी संदेह है तो निश्चित जानिये उस कार्य में आपको पूर्ण सफलता नहीं मिल सकेगी।

सफलता जीवन को पूर्ण प्रसन्न, विनम्र, मधुर, सहनशील, प्रेमपूर्ण, क्षमावान और दयावान बनाती है। ऐसे लोग सफलता पाने के रहस्य और नियम को जानने के कारण कम परिश्रम और अधिक फल पाते हैं। अपने स्वर्णिम भविष्य के सपनों को यदि सफलता के रंग-बिरंगी मनोहारी सुन्दर दृश्यों से सजाना हो तो आज से ही छोटे-छोटे लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफलता की चढ़ाई शुरू कर दें। वह दिन दूर नहीं जब आप जीवन के महान् उद्देश्यों को पाने में सफल होंगे, तथा जीवन को सफल कर लेंगे।

6. सफलता के कारक तत्व

किसी भी बात की सफलता के लिए मात्र इतना ही काफी नहीं है कि उस कार्य के करने का ढंग और निर्देश ठीक हो अपितु यह देखना भी परम आवश्यक है कि जिस सिलसिलेवार ढंग से वह कार्य होना चाहिए था क्या वैसा ही वह कार्य हो रहा है?

सफलता के लिए दैनिक कार्य का क्रमबद्ध प्रबन्धन हो। इस बात का पूर्ण निर्धारण होना चाहिए कि किस कार्य को पहले करना है और किसे उसके बाद। यह प्रत्येक व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर करता है कि कार्य की प्राथमिकता क्या होगी।

सोने से पहले इस समय सारणी और उसमें कार्य का क्रम ठीक-ठीक सम्पन्न हुआ या नहीं।

w शंकाशील प्रवृत्ति को टालें।

w हिम्मतहीन करने वाले विषैले संकल्पों से दूर रहने की कोशिश करें, नहीं तो वह आपके शीर्ष पर पहुँचने की भावना में रुकावट पैदा करेंगे।

w याद रहे संसार ऐसे लोगों को नकार देता है जो दीन-हीन-पराधीन और परजीवी है। उसका आदर्श तो प्रतिभा सम्पन्न, दिव्य और शक्तिशाली व्यक्तित्व के धनी लोग ही होते हैं, इसलिए आपका जीवन इन्हीं अपेक्षाओं पर खरा उतरे तो अच्छा है।

w उन विचारों का पोषण भूलकर भी नहीं करें जो आप अपने जीवन में साकार नहीं होने देना चाहते हैं।

w सही निर्णय का अभाव और निर्णय लेने में विलम्ब सफलता के बाधक तत्व हैं। `आज नहीं, कल यह काम कर लेंगे' की आदत बहुत से कार्य में विफलता दिला देती है।

w सफलता के लिए मन में विजय की भावना सदा ज्योतिर्मय रहे।

w कार्य को कम परिश्रम और अधिक सफलता वाले सिद्धाँत के अनुसार करना चाहिए।

w विश्रामपूर्ण ढंग से कार्य करने की कला सीखनी चाहिए।

w लक्ष्य पूर्ति के लिए दृढ़ और अटल विश्वास रखें।

w आशा से भी अधिक सफलता पाने का निश्चय रखें।

w अपने मनोनुकूल लक्ष्य का निर्धारण कर लें।

w लक्ष्य पाने में समय का निर्धारण कर लें।

w लक्ष्य पाने की परियोजना तथा उसे साकार करने की कल्पना मे सम्पूर्ण शक्ति का क्रियान्वयन करें।

w बड़े लक्ष्य के लिए लम्बे समय का तथा छोटे-छोटे लक्ष्यों को पूरा करने के लिए छोटे-छोटे काल खंडों की योजना बना लें।

महान् लक्ष्य और महान् जीवन के प्रति उन्मुख लोगों को निम्नलिखित बातों पर गम्भीरता से विचार करना चाहिए

w अपने आसपास ऐसे लोगों को कभी न फटकने दें जो नकारात्मक सोच और हीनभावना से ग्रस्त हों।

w ऐसे लोगों से दूर रहे; जो आपके समय रूपी अमूल्य सम्पदा को बरबाद करते हों, चाहे वे आपके मित्र या परिजन ही क्यों न हों।

w जिस भी कार्य को आप करते हैं उसके विशेषज्ञ बन जाएँ। उसे इतने श्रेष्ठ ढ़ंग से सम्पादित करें जिसे दूसरा उतने अच्छे ढंग से नहीं कर सकता है।

शेष भाग - 5

प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में सपरिवार पधारें।
आपका तहे दिल से स्वागत है।

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