सच्ची सफलता (Part 8)

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(भाग 7 का बाकि)

12. उत्तरदायित्व

उत्तरदायित्व के प्रति स्वीकार भाव अच्छे व्यक्तित्व का निर्माण करता है –– जब भी कोई मनुष्य अपने जीवन के किसी महत्त्वपूर्ण उद्देश्य का निर्धारण कर उसे मूर्त रूप देने का दृढ़ संकल्प करता है, तक्षण उसके सामने कठिनाईयों के रूप में कई प्रकार की अनचाही चुनौतियाँ उपस्थित हो जाती हैं। उस चुनौति को स्वीकार करते ही उसके अन्दर से कई प्रकार की सुषुप्त आन्तरिक शक्तियों का जागरण प्रारम्भ हो जाता है, जो उसे सफलता की मंज़िल तक पहुँचाने में मददगार साबित होता है।

यही वह आन्तरिक सामर्थ्य का बोध है, जो उसके अन्दर एक ज़िम्मेदार व्यक्तित्व की आकर्षक छवि का निर्माण करता है। सफलता का यह बोध ही मनुष्य में प्रबल आत्म-विश्वास को पैदा करता है। आन्तरिक सामर्थ्य का यह वमिक अभिवर्धन एक दिन उसे निर्धारित महान् कार्य को पूरा करने का सुअवसर प्रदान करता है, जिसमें सफलता हासिल कर मनुष्य सम्पूर्ण मानवता के लिए एक आदर्श उपस्थित कर अपना जीवन धन्य-धन्य अनुभव करता है।

यही स्थिति किसी व्यक्ति के जीवन की परम संतुष्टि, खुशी व आनन्द का चरम बिन्दु बन जाती है। जीवन और वस्तु में गुणवत्ता का आधार है –– उत्तरदायित्व। जो अपनी ज़िम्मेदारी को बिना किसी बहाने और दूसरे पर दोषारोपण किये बिना कार्य व्यवहार में स्वीकार करता है वही महान् और सफल कहलाता है। इसके लिए ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विस्टन चर्चिल ने बहुत ही अच्छा कहा है कि –– ``महानता की कीमत ज़िम्मेदारी है''

अधिकार हमारी ज़िम्मेदारियों से बड़े नहीं हो सकते, हमारे अधिकारों की सुरक्षा हमारी ज़िम्मेदारियों के पालन से ज़्यादा नहीं बढ़ सकती।

–– जॉन एक कैनेडी

ज़िम्मेदारियाँ उस व्यक्ति की तरफ खिंची चली जाती हैं, जो उन्हें कंधे पर उठा सकता है।

–– एलबर्ट हव्वर्ड

 

हमें अपने उत्तरदायित्व को अच्छी तरह से जानना और पालन करना चाहिए, जो हमारा नैतिक फर्ज भी बन जाता है और वह है सर्वप्रथम ––

w सामाज और राष्ट्र के प्रति।

w कार्यालय और उद्योग में अपने सहयोगी कर्मचारियों के प्रति।

w परिवार के प्रति।

w पर्यावरण और प्रदूषण के प्रति।

w स्वयं के प्रति।

दूसरे पर दोषारोपण करना हमारी समस्या को तब और भी अधिक बढ़ा देता है जब हम यह कहते हैं कि इसकी गलती के कारण ऐसा हुआ। जब सभी लोग ऐसे ही करते हैं फिर मेरा क्या इत्यादि। जबकि इस समय ज़रूरत होती है उत्तरदायित्व को स्वीकार कर, अपने को बदल देने की। वास्तव में अधिकार से कर्त्तव्य का स्थान कहीं अधिक ऊँचा है, परन्तु मनुष्य अहंकारवश अपने पावन कर्त्तव्य का पालन किये बिना अपने अधिकार का अधिक दुरुपयोग करने लगता है। फलत शीघ ही उसका अधिकार भी छिन जाता है।

उत्तरदायित्व के अभाव में किसी भी मनुष्य का शक्तिशाली व्यक्तित्व उभर कर न तो लोगों के सामने प्रगट होता है और न ही उसे अपने आन्तरिक सामर्थ्य का बोध ही हो पाता है और प्राय इस तरह के व्यक्ति अपना सर्वांगीण जीवन दूसरों के लक्ष्य को पूरा करने में बिता देते हैं। ऐसा करके धीरे-धीरे वह अपने विचार की स्वतंत्र क्षमता को भी समाप्त कर लेता है।

अनीका में मोहनदास कर्मचन्द गाँधी के प्रति यात्रा करते समय अंग्रेज़ों द्वारा अपमानित करने वाली घटना नहीं घटती तो शायद ही वे कभी राष्ट्रपिता बापू कहलाते। प्रथम दर्जे के टिकट के बावजूद भी उन्हें प्रथम दर्जे के रेल डब्बे से सामान सहित बलपूर्वक अंग्रेज़ों द्वारा बाहर निकाल कर प्लेटफार्म पर फेंक दिया गया।

अन्याय और अपमान के विरुद्ध संघर्ष को चुनौतीपूर्ण दायित्व ने उनके अन्दर इतनी आन्तरिक ऊर्जा को पैदा किया कि उन्होंने विशाल भारत को परतंत्रता की पीड़ा से मुक्त कर स्वतंत्र करा दिया। संकल्प को लक्ष्य तक पहुँचाने के उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य ने ही उन्हें राष्ट्रपिता के गौरवपूर्ण सर्वोच्च पर पद प्रतिष्ठित किया।

छोटे-छोटे कार्यों में जीवन बिता देने से मनुष्य अपने अन्दर छिपी उन शक्तियों की अद्भुत सम्पदाओं से वंचित रह कर अपना अभावपूर्ण जीवन साधारण ढंग से ही बिता देता है। किसी कार्य को पूरा करने का संकल्प लेते ही तक्षण इसे कैसे पूरा करें, इसका भाव उठना प्रारम्भ हो जाता है। योजना बनाने से लेकर क्रियान्वयन तक पग-पग पर हमारी आन्तरिक शक्तियाँ हमारा मार्ग-दर्शन करने लग जाती हैं।

करना ही है –– यदि यह संकल्प दृढ़ है, फिर कठिन चुनौती के मध्य इसे कैसे करें इसका समाधान भी साथ-ही-साथ आपके अर्न्तमन से भिन्न-भिन्न शक्तिशाली रूपों में प्रगट होने लगता है। फिर जैसी चुनौती होती है उतनी शक्ति अपने आप प्रगट हो जाती है। उदाहरण के लिए –– बन्दरिया को ही लीजिए। साधारण परिस्थिति में एक छोटा-सा डंडा लेकर भी आप उसे भगा सकते हैं, परन्तु यदि उसके छोटे बच्चे की सुरक्षा का प्रश्न उपस्थित हो जायें फिर तो वह अपनी जान जोखिम में भी डालकर, असाधारण साहस का प्रदर्शन करते हुए अपने बच्चे को सुरक्षा प्रदान करने का प्रयत्न करती है।

एक सच्ची घटना है। अपने छोटे बच्चे की भयंकर चीख सुनकर माँ उस दिशा में दौड़ी। देखा कि उसका बच्चा खेलते-खेलते गाड़ी में दब गया है। दर्द से छटपटाते अपने बच्चे को देख माँ ने गाड़ी को थोड़ा उठा दिया, जिससे बच्चा गाड़ी से बाहर आ सके। साधारण स्थिति में उस महिला का उस गाड़ी को उठा लेना बिल्कुल ही सम्भव नहीं था। क्योंकि जब उसको लोग आश्चर्य से पूछ रहे थे कि वह कैसे सम्भव हुआ कि तुमने इतनी वजनदार गाड़ी को हाथ से उठा दिया। उसने कहा, यह कैसे सम्भव हुआ मुझे कुछ भी पता नहीं। यह मात्र चुनौती के समय प्रगट हुई आन्तरिक शक्ति है, जो प्रत्येक के पास सुरक्षित रहती है, कोई भी इसे जगा सकता है।

इस प्रकार माँ-बाप अपने बच्चे के प्रति या पति अपने पत्नी के प्रति या कोई भी आश्रयदाता अपने आश्रित के प्रति उत्तरदायी होने के कारण कठिन असुरक्षा की परिस्थिति में अपनी जान को जोखिम में डालकर भी अद्भुत साहस का परिचय देते हुए उसे सुरक्षा प्रदान कर देता है।

इस प्रकार सफलता से आत्म-विश्वास और आत्म-विश्वास से पुन बड़े उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य को करने का साहस और साहस से कठिन चुनौती को पार कर पुन सफलता द्वारा आत्म-दायित्वपूर्ण कार्य में अभिबुद्धि की एक शुभ, श्रेष्ठ और शक्तिशाली चक्रीय शृंखला व्यक्ति के जीवन में प्रारम्भ हो जाती है और इस प्रकार व्यक्ति अपने जीवन के महान् उद्देश्य को पाने में सफल हो जाता है।

इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों में ऐसे अनेक अद्भुत व्यक्तित्व ज्योतिर्मय हैं, जिन्होंने पहाड़ जैसी विपत्तियों को भी ठोकर मार उसे अपनी सफलता के मार्ग से हटा दिया। कई लोगों का अनुभव तो और भी विचित्र है। जब तक उनका सबकुछ नहीं लुट गया चारों तरफ से सहयोग के सभी मार्ग बन्द नहीं हो गये तब तक उन्हें अपनी आन्तरिक शक्तियों का बोध नहीं हुआ था। ऐसे लोग जो दरिद्र और भिखारी हो गये थे अपनी शक्तियों को जाग्रत कर पुन धनवान बन गये।

ज़िम्मेदारी का ताज : कई बार ऐसा देखने को मिलता है कि किसी कार्य की ज़िम्मेदारी उठने पर व्यक्ति में वो सूझबूझ और सामर्थ्य पैदा हो जाता है जो प्राय पहले उसके अन्दर देखने में नहीं आता था। यदि किसी कारण से आपको अचानक ज़िम्मेदारी उठाने का मौका आ जाता है तो इसे श्रेष्ठ और शुभ लक्षण मानकर उसे स्वीकार कर लेना चाहिए। माना की थोड़ी कठिनाईयाँ आपको अवश्य महसूस होगी, परन्तु यदि आपने उसे सफलतापूर्वक निभाया, तो आप अद्भुत खुशी और आत्म-विश्वास के मालिक बन जायेंगे। इसलिए अपने लक्ष्य के प्रति उत्तरदायित्व को धारण करें। सफलता साथ है।

ज़िम्मेदार व्यक्ति की विशेषताएँ : ज़िम्मेदार व्यक्ति में यह विशेषता होती है कि वे अपनी किसी भी भूल की न तो उपेक्षा करते हैं और न ही अस्वीकार, परन्तु उसे तहेदिल से स्वीकार कर लेते हैं और उस दिशा में सफलता हासिल करने के लिए उससे आवश्यक पाठ ले लेते हैं। यदि कोई मनुष्य अपनी गलतियों और कमियों की उपेक्षा करता है तो ज़िन्दगीभर भिन्न-भिन्न रूप से वही गलती समस्या बन उसके समय और शक्ति को बरबाद करने का कारण बन जाती है।

एक उदात चरित्र वाला मनुष्य आवश्यकता अनुसार उन सभी ज़िम्मेदारी को एक चुनौती के रूप में स्वीकार करता है और उसे अपना दिव्य कर्त्तव्य समझ उसमें जुट जाता है। किसी भी ज़िम्मेदारी से प्यार मनुष्य को मात्र आन्तरिक संतुष्टता और प्रसन्नता ही नहीं प्रदान करती, अपितु खतरे और मुश्किलों को झेलने का भी अद्भुत सामर्थ्य प्रदान करती है। कायर, कमज़ोर और आलसी मनुष्य अपने मूल्यहीन जीवन के घेरे से बाहर निकल नई ज़िम्मेदारी का खतरा कभी भी नहीं उठाता और हाथ पर हाथ धरे अनुकूल अवसर का इंतजार करता रहता है।

शेष भाग -9

प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में सपरिवार पधारें।
आपका तहे दिल से स्वागत है।

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