सच्ची सफलता (Part 9)

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(भाग 8 का बाकि)

13. क्या है आत्म-विश्वास?

किसी भी कार्य को चाहे वह कितना ही कठिन क्यों न हो, उसे पूरा करने के लिए अद्भुत आन्तरिक सामर्थ्य और हिम्मत में अटूट निश्चय, आत्म-विश्वास कहलाता है और विपरीत परिस्थिति में किसी कार्य को पूरा करने की क्षमता वाले व्यक्ति को आत्म-विश्वासी व्यक्ति कहते हैं।

–– सूक्ति

गौण, अतिशय गौण, है तेरे विषय में, दूसरे क्या बोलते हैं, क्या सोचते हैं। मुख्य है इस बात पर अपने विषय में, तू स्वयं क्या सोचता क्या जानता है।

–– रामधारी सिंह दिनकर, नये सुभाषित

यदि तुम्हारे अन्दर राई के दाने के बराबर भी आत्म-विश्वास है तो तुम्हारे लिए कोई भी कार्य असम्भव नहीं है।

–– महात्मा इसप

 

आपको इस संसार में ऐसे बहुत से लोग यह कहते मिल जायेंगे कि –– ``यदि हमारे पास भी धन होता या अमुक गुण होता या हमारा पारिवारिक आधार समृद्ध होता तो हम भी इस कार्य को इससे भी अधिक सुन्दर ढंग से कर देते कि लोग देखते ही रह जाते''। इस तरह की डींग हाँकने वाले आलसी, जो भाग्य और परिस्थिति को सर्वशक्तिवान मानने वाले होते हैं, वे प्राय आपको यहाँ-वहाँ अवश्य ही मिल जायेंगे।

वास्तव में किसी भी कार्य को मंज़िल की तरफ पहुँचाने के लिए मनुष्य में सबसे आवश्यक गुण और शक्तियाँ, आत्म-विश्वास ही है। आत्म-विश्वास वह जादू है जो सभी आवश्यक साधनों को अपनी ओर खींच लेता है। अत्यधिक गरीबी से धन कुबेर तक की यात्रा करने वाले लाखों ऐसे आत्म-विश्वासी व्यक्ति इतिहास के स्वर्ण पृष्ठों में मिल जायेंगे। ऐसे अनेक व्यक्ति उन सभी दिशाओं में चाहे वह अति उच्च पद है, शिक्षा, कला, संगीत, अध्यात्म, विज्ञान या साहित्य के क्षेत्र में हो, आपको निश्चित ही मिल जायेंगे, जिनके अन्दर इतना आत्म-विश्वास का बल भरा था कि असम्भव समझे जाने वाले कार्य को भी उन्होंने सम्भव करके दिखा दिया।

जब एक बार उन्होंने किसी कार्य को करने का निर्णय कर लिया, फिर किसी भी द्वन्दात्मक परिस्थिति में, बिना शंका कुशंका के उसे लक्ष्य तक पहुँचा कर ही दम लिया। आत्म-विश्वास से ही हमारी आन्तरिक प्रेरणा-शक्ति और सामर्थ्य की परीक्षा होती है कि वह शक्ति हमारे अन्दर कितनी मात्रा में है।

इस संसार में आप को ऐसे बहुत से लोग मिल जायेंगे, जिसमें उस कार्य को करने की क्षमता और योग्यता भी होती है। ऐसा भी नहीं है कि वे उस कार्य को नहीं कर सकते हैं, परन्तु उन्हें अपने आप पर दृढ़ विश्वास नहीं होता है। दूसरी और वे लोग जिनमें इतना गुण और उतनी सामर्थ्य नहीं होने के बाद भी आनन-फानन से उस कार्य को पूरा कर डालते हैं। जिसका एक मात्र कारण होता है आत्म-विश्वास, जो उन में कूट-कूट कर भरा होता है। आत्म-विश्वास उन अभावों को जो उस कार्य के लिए ज़रूरी है, पूरा कर लेता है।

मनुष्य के अन्दर अथाह शक्तियाँ, सागर समान ज्ञान, गुणों और श्रेष्ठ चरित्र से सम्पन्न सम्पदा है, परन्तु वह सुषुप्तावस्था में है। जिस प्रकार सागर में तैर रहे बर्फ के छोटे-छोटे पहाड़ का एक ही हिस्सा सागर के सतह पर दिखाई देता है और उसका नौ हिस्सा अन्दर छुपा रहता है।

मनौवैज्ञानिक कहते हैं ठीक उसी प्रकार मनुष्य का एक हिस्सा चेतन है, जिसमें मनुष्य सोचता है काम करता है। बाकी के नौ हिस्से तो अचेतन सुषुप्तावस्था में ही रहते हैं। मन के अन्दर इन्हीं सुषुप्त शक्तियों को जगाकर मनुष्य उन आश्चर्यजनक आविष्कारों को करके लोगों को चमत्कृत कर देता है।

मन के अन्दर अनेक शक्तियों की खान है। ज़रूरत है उनको खोदकर उसमें से आवश्यक गुणों और शक्तियों से अपने आपको सम्पन्न कर आत्म-विश्वासी बनाने का। कितना आत्म-विश्वास था गुरू गोविंद सिंह मे। गुरू गोविंद जी ने कहा था –– ``सवा लाख से एक लड़ाऊँ तो गोविंद सिंह कहाऊँ''

देखिये, साबरमती के उस संत के आत्म-विश्वास का जादू जिसने भारत को गुलामी की जंजीरों से आजाद कर दिया।

आत्म-विश्वास से भरपूर स्वामी विवेकानन्द की साधना कितनी शक्तिशाली थी? जिस कन्याकुमारी में आप जहाज से विवेकानन्द रॉक को देखने जाते है, उन ऊँची-ऊँची उत्ताल समुन्द्र की लहरों को तैर कर स्वामी विवेकानन्द उस रॉक पर मेडिटेशन करने जाया करते थे। यदि आप जाए तो आप पायेंगे कि यह कार्य अद्भुत साहस और आत्म-विश्वास के बिना सम्भव नहीं था।

शिवाजी ने आत्म-विश्वास के बल पर ही विशाल मुगल साम्राज्य की नींव उखाड़ कर विशाल मराठा राज्य की स्थापना की थी। स्वर-सम्राज्ञी लता मंगेशकर ने भी अपने प्रारम्भिक दिनों में बहुत ही संघर्ष किया। अपने आत्म-विश्वास के बल पर ही वे सफलता के स्वर्ण शिखर पर पहुँची।

अदम्य इच्छा-शक्ति और आत्म-विश्वास से भरी चौड़ी मुस्कान लिए उस अपंग महिला डिजायनर को देख आप आश्चर्यचकित हो जायेंगे। हाथ के नाम पर दोनों कंधों से लटकती दो बेजान बाजुओं। फिर भी इस परंपरागत, परन्तु कठिन काटियावाड़ी शैली में कपड़े पर लहड़दार कढ़ाई को बड़ी ही सहजता से अंजाम देने वाली महिला इला कैसे अपने जीवन के शुभ पक्षी को देखती है? यह हमारे लिए प्रेरणादायक प्रश्न हैं।

अपने तीन भाई-बहनों में सबसे बड़ी 26 वर्षीय इला भावनगर के मोटी वावड़ी गाँव में एक किसान के घर में पैदा हुई।  बचपन से रोजमर्रा का काम उसे पैरें से करने का प्रशिक्षण अपने माता-पिता से मिलता रहा। जीवन के प्रारम्भिककाल से ही अनेक कठिन संघर्षों से जूझ रही इला सचानी 12वीं कक्षा तक ही शिक्षा ग्रहण कर पाई। तत्पश्चात् उसने माँ और दादी से कशीदाकारी की यह कला पाई जो इस समृद्ध परम्परा में माहिर थी।

10 वर्ष के प्रशिक्षण के पश्चात् वह इस कार्य को फल के लिए करती रही। बाद में उसने इसे गम्भीरता से लिया। 26 वर्षों के लम्बी संघर्षपूर्ण दास्तान का वर्णन यहाँ मुश्किल है।

चादर हो या कुशन कवर, तकिया हो या गिलाफ, ड्रेस डिजाइन हो या दीवार को सजाने वाली चित्रकारी, इन सभी में गहरी पच्चीकारी और रंगों का अद्भुत मिश्रण देखते ही बनता है। यही इनकी कला-कार्य का क्षेत्र है। इसी कला की कुशलता के कारण चित्र कला प्रदर्शनी में उन्हें देश-विदेश में भी जाने का सुअवसर मिला। पिछले साल दिसम्बर में उन्हें राष्ट्रपति पदक से भी सम्मानित किया गया। उन्हें और भी कई मान्यता प्राप्त पुरस्कार भी प्राप्त हुए हैं। हमारे लिए महत्त्वपूर्ण और प्रेरणास्पद पहलू यह है कि इला ने इस सफलता में जिस आत्म-विश्वास, इच्छा-शक्ति और परिश्रम के प्रति अपनी लगन दिखाई है, वह प्रेरणास्पद है।

–– इण्डिया टूडे के आधार से

 

मनुष्य को अपने अन्दर की शक्तियों को जगाने की कला सीखनी चाहिए। यदि एक बार उन विशाल अथाह और महान् शक्तियों से आपका सम्पर्क हो जाये फिर जीवन में सफलता अवश्यम्भावी है। इसके लिए एकान्त में श्रेष्ठ आत्म-चिन्तन करते हैं, तथा अपने आपसे बात करते हैं। आत्म-विश्वास से भरपूर उन महान् और सफल लोगों को जीवन चरित्र का अध्ययन करना ज़रूरी है।

यदि वे अपने आत्म-विश्वास को जगाकर महानता की मंज़िल पर पहुँच सकते थे तो आप क्यों नहीं पहुँच सकते हैं। परमात्मा ने सभी को एक जैसी प्रकृति ही प्रदान की है। दुनिया के सफल अतमाम लोगों की सूची देखें तो आप पायेंगे कि बिलकुल प्रतिकूल परिस्थितियों के बीच में से चुनौती को स्वीकार कर प्रबल संघर्ष और साहस का परिचय देते हुए उन्होंने सिर्फ अपने आत्म-विश्वास के बल पर ही सफलता हासिल की थी।

प्रथम तो उनके सामने प्रतिकूल परिस्थिति थी दूसरी तरफ इतने ऊँचे लक्ष्य। आपके साथ तो शायद इतनी प्रतिकूलताएँ भी नहीं है। फिर आप हताश और निराश होकर क्योकि बैठे हैं। दुर्भाग्य का और सामर्थ्यहीनता का रोना छोड़कर दृढ़ निश्चय के साथ पुरुषार्थ में लग जाइये। अपने आत्म-विश्वास को आक्रोश की बुलन्दियों तक बुलन्द कीजिए। उदाहरण के लिए –– अध्ययन कीजिए निम्नलिखित लोगों के महान् जीवन चरित्र और उनकी सफलता को। सन् 1839-1880 तक इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री डिज़राइली को, अमेरिका के प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ और धारा प्रवाह प्रवक्ता डनियल वेबस्तर को और प्रसिद्ध शिल्प चित्रकार मारकल एंजिलां को।

शेष भाग -10

प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में सपरिवार पधारें।
आपका तहे दिल से स्वागत है।

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