सच्ची सफलता (Part 11)

0

 


(भाग 10 का बाकि)

15. जीवन के लिए आशा की किरण

चाहे जितनी सघन घटा हो, निविड़ निशा में तिमिरता हो,

पर विद्युत की एक चमक बस, नभ-भूतल ज्योतित करती है।

आशा पर दुनिया जगती है।

–– श्री मन्नारायण

मनुष्य वसुन्धरा पर प्रभु की अनमोल कृति है। इस संसार रूपी बगिया का वह सुरभित पुष्प है, जो अपने सौन्दर्य, अद्भुत सुवास और खिली मुस्कान के मधुर स्पंदन से जीवन में सदा सुखद् आशा का संचार करता है, परन्तु यह एक दुर्भाग्यपूर्ण विडम्बना है कि हम इस गौरव को बचाये रखने में असमर्थ हो जाते हैं और जीवन सुन्दर बगिया के बदले (सुनसान) बियावान कांटों से भरा, हिंसक वृत्तियों से भरा भंयकर जंगल बन जाता है। और बहुत बार तो यह जीवन नर्क तुल्य हो जाता है। आसपास के लोगों से यह फितरा सुनते हुए कि –– ``अब पछताये हो क्या जब चिड़िया चुग गई खेत''। हम मज़बूर और असहाय, विषम परिस्थितियों के दुश्चक्र में फंसे हुए दुःखद जीवन का अंत होते देखते रहते हैं।

शुभचिन्तन अमृत है, निष्प्राण जीवन के लिए आशा की धड़कन है : आपका जीवन प्रभु की अमूल्य धरोहर है, आपके अपने लिए भी और जगत के लिए भी। इसे निर्मल विवेक के आलाक से सजाइये और सवांरिये। दिव्य आदर्शों और गुणों से उसमें चमकीले रंग भर, दिग-दिगंत तक लोगों में सुंध और सुन्दरता बिखेरते हुए दिव्य और आनन्दित जीवन का प्रेरणा-स्तम्भ बन जाइये। सदा मन की भूमि पर सद्गुणों और सद्विचारों का बीज बोने से जीवन बहुमूल्य आन्तरिक गुणों से सम्पन्न बन जाता है। इसलिए जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए प्रथम आन्तरिक गुण और शक्ति है –– आशा में अटूट आस्था।

जीने के लिये प्रेरणा स्तम्भ बन जाईये : उमंग और उल्लास का एक स्वर्गिक वातावरण पैदा कीजिए। इस अकाट्य सत्य से तो आप अवश्य ही परिचित होंगे कि हम जो बाँटते हैं वही अनन्त गुना होकर हमें मिलता है। बाँट वही सकता है जो सम्पन्न है। सम्पन्नता गुणों की भी हो सकती है और ऐश्वर्य की भी । इस जगत में सर्वाधिक सम्पन्न व्यक्ति वही है जिसके अन्दर श्रेष्ठ विचारों का, भावों का, उमंग और उत्साह का तथा आशा का खज़ाना है।


सफलता का आधार स्तम्भ –– आशा 

आशावादी हर कठिनाई में मौका देखता है

निराशावादी हर मौके में कठिनाई देखता है।

–– अज्ञात

इच्छित फल को पाने में असफल होने के बाद भी पुन उसे पाने की इच्छा या संकल्प को आशा कहते है। किसी व्यक्ति के जीवन में खुशी का सबसे महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह खुशी चाहे इन्द्रियों का सुख हो, मानसिक सुख हो या आत्मिक-जिसे अतीन्द्रिय सुख कहते हैं। जब किसी व्यक्ति के जीवन में सुख सुविधा के सभी साधन उपलब्ध हों तब उसका जीवन सुखमय कहा जाता है। जब भी कोई व्यक्ति इच्छित फल की प्राप्ति के मार्ग में कोई अवरोध पाता है और थोड़े प्रत्यनों से उस अवरोध को अपने जीवन से हटाने में असमर्थ पाता है तथा जिसके कारण उसे ऐसा लगने लगता है कि यह उसके वश की बात नहीं है, उसमें दूसरे की तरह वह योग्यता नहीं है, या भाग्य उससे रूठा है इत्यादि। फलत इस कमज़ोरी या मज़बूरी का भाव उसकी आशा को चकनाचूर कर देता है और उसका जीवन निराशा के गहन अन्धकार में डूब जाता है।

निराशा, जीवन में बड़े ही भयंकर परिणाम को लाती है। निराश व्यक्ति तो मरने से पहले ही मर चुका होता है। निराश, व्यक्ति को चिन्ता के गहन कूप में धकेल देती है और उसके संसार के समस्त सौन्दर्य-बोध को समाप्त कर उसके जीवन में कुरूपता भर देती है। उसके कभी न हारने वाली उस अपराजेय अमूल्य मानसिक शक्ति के शक्ति भंडार से उसका सम्बन्ध विच्छेदित कर दीन-हीन कर देती है। चारों तरफ से उमंग-उत्साह और हर्ष का प्रकाश शनै शनै उसके मुख मंडल से क्षीण होने लगता है और समय से पहले उसकी इहलीला समाप्त हो जाती है।

निराशा एक भ्रम है

आशा अमर है, उसकी आराधना कभी निष्फल नहीं होती।

–– महात्मा गाँधी

निराशा की इस भाव दशा को अभी से ही छोड़ दीजिए। यह एक अज्ञान अन्धकार है। अन्धकार का अपना कोई अस्तित्व नहीं होता। प्रकाश का अपना अस्तित्व है। करोड़ों वर्षों से बन्द किसी अंधेरी गुफा में से यदि आप अन्धेरा मिटाना चाहें तो क्या उसके लिए आप को लाखों वर्ष प्रयत्न करना पड़ेगा? नहीं! प्रकाश का एक दीप आपने जलाया नहीं, कि अधेरा मिटा। प्रकाश एक विधायक प्रयास है। उसका जीवन में अपना एक स्थान है। उनकी अपनी एक गुणवत्ता है, उसे कहीं भी ले जाया जा सकता है।

अंधेरे को कहीं लाया, ले जाया नहीं जा सकता। फिर भी प्रकाश के अभाव में अंधेरा परिणामकारी है। जैसे रस्सी को आप साँप समझ कर भय से काँप उठते हैं। एक झूठ भी जीवन में परिणाम ले आता है। अंधेरा एक तो भय पैदा करता है और दूसरी तरफ वस्तुओं को ठीक-ठीक नहीं देखने देता। जिसके परिणामस्वरूप गलत निर्णय के कारण जीवन में गलत परिणाम आते हैं। जैसे एक सीधी लकड़ी के टुकड़े को पानी में डाल दें तो वह टेढ़ा दिखाई देने लगता है। लकड़ी टेढ़ी हो नहीं जाती है, उसे पानी से बाहर करें, वह सीधी ही है। एक भ्रम, उस सत्य के प्रति असत्य बोध पैदा करता है।

यहाँ मैं प्रकाश की उपमा ज्ञान से अर्थात् उस सकारात्मक चिन्तन से कर रहा हूँ कि आशा जीवन में प्रकाश है। आशावान व्यक्ति अन्तत निश्चित ही अपने मंज़िल पर पहुँच जाता है। आपके जीवन में सदा आशा का सूर्य चमकता रहे, उस पर निराशा की बदलियाँ न आने पाये। इसके लिए सदा सचेत और प्रयत्नशील रहिए।

यह भी बदल जायेगा

कहते हैं वल्क का एक बादशाह था नाम था इब्राहिम। उसने अपने राज्य के प्रसिद्ध स्वर्णकार को बुलाया और कहा ––  ``मेरे लिए एक सुन्दर अंगूठी बनाओ और उस पर एक ऐसा सुन्दर सुभाषित वाक्य अंकित करो, जो किसी भी परिस्थिति में मेरे काम आ सके। लेकिन अंगूठी डिब्बीनुमा हो ताकि समय पर उसे खोल कर पढ़ा जा सके अर्थात् वह बहुमूल्य बात बन्द हो उस डिब्बी में''

अपने घर जाकर स्वर्णकार ने बहुत सोचा-विचारा कि क्या लिखूँ इस अंगूठी में, परन्तु उसे इस प्रश्न का हल नहीं मिल रहा था। उस राज्य में एक दिन एक फकीर आया। वह स्वर्णकार भागकर उसके पास गया और बहुत ही अनुभव विनय के साथ अंगूठी वाली समस्या उसके सामने रखी। फकीर ने सलाह दी, इस अंगूठी में यह वाक्य अंकित कर दे और फकीर ने उसके कान में कुछ फुसफुसा कर कहा। बहुत खुशी-खुशी स्वर्णकार ने वह अंगूठी राजा को भेंट कर दी।

संयोगवश किसी दूसरे राजा ने उसके राज्य पर चढ़ाई कर दी। पराजय के साथ इब्राहिम को युद्ध छोड़कर अपनी जान बचाने के लिए भागना पड़ा, परन्तु शत्रु के कुछ सैनिक अब भी उसका पीछा कर रहे थे। हताश, निराश और चिन्तित राजा किस प्रकार अपनी जान बचाये? यह सोच उसने अपने घोड़े और विश्वास प्राप्त सेनानायक के साथ रास्ते के एक पहाड़ की ओट में अपने को छिपा लिया। चिन्ता और परेशानी के हालत में उसे अपनी उस अंगूठी की याद आई जो बहुत समय पहले उसने स्वर्णकार से बनवाई थी। उसने उसे खोला और पढ़ा। उसमें लिखा था –– ``ये भी बदल जायेगा''

निराशा की अवस्था में राजा को आशा की एक किरण दिखाई दी। उसने मन ही मन सोचा चलो यह संकट भी खुदा की खैर से टल ही जायेगा। जब तक श्वास, तब तक आस। मनुष्य को आशा के दामन को कभी नहीं छोड़ना चाहिये। फिर पीछा कर रहे शत्रु सैनिक आगे निकल गये।

कहते हैं –– थोड़े समय के बाद राजा ने अपनी बिखरी हुई सैन्य-शक्ति को पुनर्गठित किया और पुन अपना खोया राज्य हासिल किया। बड़ी धूमधाम के साथ जब वह अपने राज्य में प्रवेश कर रहा था तभी अचानक उसकी नज़र पुन उस अंगूठी पर पड़ी। ``ये भी बदल जायेगा''  राजा के चेहरे पर पुन एक रहस्यमयी मुस्कान फैल गई।

अब उसकी मनोदशा तो आशा और निराशा से भी बहुत ऊपर और ऊपर जीवन के इस रहस्य को कि `सदा आनन्दित कैसे रहना है', के राज को जान लिया था।

 

जिसके पास उम्मीद है वह लाख बार हारकर भी नहीं हारता।

–– रघुबीरशरण मित्र

हार मान हो गई न जिसकी, किरण तिमिर की दासी।

न्यौछावर उस एक पुरुष पर, कोटि-कोटि संन्यासी।।

–– रामधारी सिंह दिनकर

 

विश्लेषण : बेहद के ड्रामा में प्रतिपल बदल रहे दृश्य को देख हमें कभी भी निराश नहीं होना है। क्योंकि यहाँ सभी परिस्थितियाँ बदल रही है। सुखद भी दुःखद भी। यदि आप अपनी दुःखमय परिस्थति को रोकना भी चाहें तो भी नहीं रोक सकते हैं। वह भी बदल जायेगी। चिन्तित और निराश होने की कोई बात ही नहीं है।

सिर्फ सभी बदल रहे दृश्यों के प्रति आपका आत्मिक द्रष्टाभाव बना रहे, इसकी थोड़ी साधना, थोड़ी राजयोग की कला विकसित करने से सदा आशा और हर्षोल्लास से आपकी जीवन वीणा से मधुर स्वर झंकृत होते रहेंगे। जीवन में सफलता के लिए प्रबल इच्छा शक्ति की आवश्यकता अपेक्षित है, लेकिन उससे भी पहले आशा का गुण जीवन में बना रहे, आशा का संकल्प बलवती रहे, सतत् आशा का दीप आपके मन में जला रहे, इस पुरुषार्थ से अपनी महत्त्वकांक्षा की एक किरण से उसको सदा आलोकित रखिए।

आशा का यह ज्योतिर्मय स्वरूप स्वत ही हिम्मत, निष्ठा, सृजन की क्षमता और सफलता को प्राप्त करने के लिए उन सभी विशेष प्रेरक तत्व को स्वत ही उपस्थित रखेगा। आशा का स्थान योजना के क्रियान्वयन के बाद ही है।

आशा उत्साह की जननी है। आशा में तेज है, बल है, जीवन है। आशा ही संसार की संचालक शक्ति है।

–– प्रेमचंद


शेष भाग -12

प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में सपरिवार पधारें।
आपका तहे दिल से स्वागत है।

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
Post a Comment (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top