(भाग 11 का बाकि)
यदि आप हेनरिफोर्ड बनना चाहते हैं और उस आशा को योजनाबद्ध तरीके से ठोस धरातल पर क्रियान्वित नहीं करते तो उस आशा से इच्छित फल की प्राप्ति कभी भी नहीं हो सकेगी। यदि एक तरफ आप धन पाना चाहते और दूसरी तरफ यह सोचते हैं कि हम गरीब हैं, दरिद्र हैं, हम इसे कैसे प्राप्त कर सकेंगे? पता नहीं! यदि धन व्यापार में लगा दें, जबकि इतना कॉम्पीटीशन है, सफल हो भी सकेंगे या नहीं, मेरा यह धन कहीं डूब न जाये! इस तरह के असमंजस, संदेह, भय और मृढ़तापूर्ण विचार निश्चित ही आपको असफल बना देंगे और आपकी आशा चकनाचूर हो जायेगी। भूलकर भी इस प्रकार के विचार अपने अन्दर पैदा नहीं होने चाहिए।
चाहे कोई
भी व्यक्ति यह कहे कि आप में इस कार्य को करने की क्षमता ही नहीं है या यह आपके वश
की बात नहीं है, परन्तु निश्चयात्मक भाव से, हर्षोल्लास से यह घोषणा कीजिये कि हम
इसे पाकर ही रहेंगे। हम इसे
पूरा करके ही रहेंगे। निराशावादी विचार मनुष्य की सृजनात्मकता और उसकी उत्पादकता दोनों
ही शक्ति को खत्म कर देता है।
याद रखिये –– आशा में अपार शक्ति है। इस जगत में
श्रेष्ठतम भावों में से एक भाव है, ``आशा और विश्वास''। किसी कार्य को लक्ष्य तक पहुँचाने के लिए व्यक्ति को सदा आशावान होना चाहिए।
आशा बड़ी बलवान है।
आशा न होती तो मानव जाति कब की खत्म हो गई होती।
–– रामदरश मिश्र
इच्छित फल की प्राप्ति के लिए जब हम एक आदर्श मूल्य को सामने रखते हुए उस कार्य की सफलता के लिए प्रत्यत्नशील होते हैं, तक्षण मार्ग में कठिन प्रतिरोध उभरकर सामने आ जाते हैं। जो हमारे बार-बार के प्रयास पर पानी फेर देते हैं। फलत हम उदास और निराश होकर उस कठिन परिस्थिति के सामने अपने हथियार डाल देते हैं। नहीं... नहीं, एक बार फिर उठिये, प्रयासरत हो जाइये, अपने संकल्प को पुर्नजीवित कीजिये, अपने अंतर्मन से बात कीजिये, उसे सुझाव दीजिये। सफलता हमारा जन्म-सिद्ध अधिकार है।
हम आत्मा-परमात्मा की संतान हैं। सर्वशक्तिवान परमात्मा का
वरदानी हाथ, उनकी अनन्त शक्तियाँ हमारे साथ हैं। अनुभव कीजिये
उस ज्योतिर्मय का प्रकाश, उस करुणामय की करुणा तथा उस मंगलमय
का शुभ भाव, जो प्राणों की सभी शिथिलताएँ, तभी तनाव, और सभी प्रकार की थकान को मिटाकर आलौकि उमंग
और स्फूर्ति का स्पंदन कर रहा है।
अभ्यास : थोड़ी देर अपनी कल्पना में परमात्मा
को ज्ञान सूर्य की तरह देखिये और महसूस कीजिये कि किरणों के रूप में शान्ति,
शक्ति और आनन्द की बरसात आपके ऊपर हो रही है। आप इसे प्रयोग करें,
अच्छी अनुभूति होगी।
–– निराशा की भावना एक गहन प्रज्ञा अपराध है।
–– निराशा उस धून की तरह है जो मनुष्य की सभी आन्तरिक शक्तियों को समाप्त कर देती
है।
–– निराशा व्यक्ति चलती-फिरती लाश की तरह है।
–– निराशा, व्यक्ति में अविश्वास का भाव पैदा करती है।
आपकी जीवन बगिया में चाहे कितने ही निराशाओं के पतझड़ क्यों न आयें, फिर भी आप अपने सुन्दर आशा का मधुमास बनाए रखिए। सदा मन रूपी फुलवारी में गुणों
से सुरभित शीतल बासंती बयार बहे। इसके लिए थोड़ा चिन्तन, थोड़ा
ध्यान अपेक्षित है, बस।
16. एकाग्रता की शक्ति : किसी भी कार्य को सफलतापूर्वक मंज़िल तक पहुँचाने के लिए शारीरिक और मानसिक एकाग्रता की अति आवश्यकता है। चंचल मन वाला व्यक्ति कभी भी अपनी आन्तरिक शक्तियों को सदा और सतत् एक ही कार्य में पूरा का पूरा समर्पित कर दें अर्थात् लक्ष्य-पूर्ति के लिए अर्जुन दृष्टि प्राप्त कर ले, यह सम्भव नहीं है। स्वाभाविक है ऐसे लोग असफल होकर अपने भाग्य पर रोते हैं और परमात्मा को भी कोसते रहते हैं।
उदाहरण –– मान लिजिए, एक व्यक्ति किसी धनी को देखकर सोचता है कि मैं भी इसके जैसा धनवान बन जाऊँ और इस तरह धन पाने की उसकी इच्छा जागृत हो जाती है। भावना और विचार की शक्ति भी उस दिशा में कार्य प्रारम्भ कर देती है। उसे उस कार्य को सम्पन्न करने की लगन भी लग जाती है। दूसरे दिन, वह एक सुन्दर शारीरिक सौष्ठव वाले व्यक्ति को देखता है और सोचता है कि मैं भी ऐसा बलवान बन जाऊँ। वह तीसरे दिन, एक उच्च कोटि की पुस्तक को पढ़ता है और सोचता है कि मैं लेखक बन जाऊँ।
अब आप ही सोचिए, क्या वह सफल हो सकता है? नहीं... क्योंकि उसके पास इतना समय ही नहीं है। क्योंकि आयु की अपनी एक सीमा होती है
आपने वे बात तो अवश्य ही सुनी होगी कि दो नाव पर पैर रखने वाले व्यक्ति का क्या हाल
होता है। इसलिए जब तक कोई व्यक्ति किसी एक ही कार्य में अपनी समस्त मानसिक एकाग्रता
की शक्ति को नहीं लगाता है तब तक वह सफलता नहीं प्राप्त कर सकता है। एकाग्रता का अर्थ
है आपको उस कार्य में रस मिलता है। उसे दत्त-चित्त होकर करने
में आपको आन्तरिक प्रसन्नता का अहसास होता है।
कई बार प्राय ऐसा देखने को मिलता है कि अचानक कोई दुःखद परिस्थिति उत्पन्न हो जाती है, जो चेतना को उत्तेजित कर देती है और जिससे व्यक्ति चंचल होकर अपनी एकाग्रता की शक्ति को खो देता है। आपने सुना ही होगा किसी गरीब को लॉटरी का मिलना और अत्यधिक खुशी में हृदय गति का रूक जाना या किसी को भाषण देने के लिए उठते ही घबराकर हक्का वक्का हो, सब भूल जाना, टांग का कांपना या गले सूखना इत्यादि यह दर्शाता है कि वह व्यक्ति अपनी मानसिक एकाग्रता को खो बैठा है। कार्य की सफलता के लिए एकाग्रता की शक्ति को हम जितना शक्तिशाली कर लेंगे उसी अनुपात में सफलता प्राप्त होती चली जायेगी।
रहा अभ्यास का प्रश्न तो राजयोग केन्द्र पर इसका
अच्छा प्रशिक्षण दिया जाता है। जो आपके शहर के किसी निकटवर्ती स्थान पर थोड़ा खोजने
से मिल जायेगा।
एकाग्रता का मतलब है दृढ़ता सम्पन्न अभ्यास। चाहे आपके इस प्रयत्न में किसी भी
प्रकार की रुकावटें और विघ्न क्यों न आये, परन्तु दृढ़ता से
उसका सामना कर अपने उद्देश्य के प्रति अटल विश्वास रखना है कि हम कभी भी विचलित नहीं
होंगे। थोड़ी सी दृढ़ता से आगे सबकुछ सहज होने लगता है।
थोड़ी देर के लिए विचारों की हलचल को बन्द कर दें। अपने दो विचारों के बीच ठहरने
का प्रयास करें और उस ठहराव के समय को बढ़ाते चले जायें। उन ठहरे क्षणों में अपने आत्मा
की वास्तविकता को अनुभव करें।
एकाग्रता का दूसरा अर्थ है –– किसी एक ही विषय के सभी पहलुओं पर एक व्यवस्थित-क्रम में मानसिक ध्यान और विचारों के प्रवाह को घुमाना। इसमें विचार का प्रवाह तीव्र हो तो सकता है, परन्तु उस विषय के सिवाय ध्यान या विचार अन्य कहीं भी नहीं जायेगा।
वह विषय चाहे लेखन हो सकता है, विज्ञान के आविष्कार हो सकते हैं या फिर कलात्मक पेन्टिंग उस विषय के प्रति विचार की सजगता तथा अन्य पहलुओं के प्रति निष्क्रियता को एकाग्रता कहते हैं।
(समाप्त)