दृष्टिकोण
दृष्टिकोण
क्या है?
``किसी विषय, वस्तु और व्यक्ति के बारे में उपलब्ध समस्त
सूचनाओं और अनुभवों के आधार पर मानसिक भाव और विचारों के विश्लेषणात्मक प्रक्रिया के
बाद जो निर्णायात्मक भाव-प्रकाशबिम्ब मन में बनता है वह उस विषय,
व्यक्ति या वस्तु के प्रति उस व्यक्ति का दृष्टिकोण कहलाता है। यह वह
सूक्ष्म अव्यक्त भाव प्रकाश है, जो विचारों की व्यापक पृष्ठ-भूमि पर निर्भर करता है''।
जितनी बड़ी आपकी पृष्ठ-भूमि होगी उतना ही विशाल दृष्टिकोण का निर्माण होगा। किसी विषय, वस्तु, व्यक्ति, भाव या विचार के प्रति जितना स्पष्ट दृष्टिकोण होगा उतने ही अनुपात में उस क्षेत्र में किसी व्यक्ति की सफलता सम्भव है। मनुष्य की सफलता या विफलता इस बात पर भी अत्यधिक निर्भर करती है कि उसका दृष्टिकोण नकारात्मक है या सकारात्मक।
दृष्टिकोण
प्राय विचार से प्रभावित रहता है। दृष्टिकोण अगर सैद्धान्तिक है व्यवहारिक नहीं तो
वह दृष्टिकोण मात्र एक विचार रहता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि विचार ही कर्म बनता
है। लेकिन ज़रूरी नहीं कि विचार कर्म बने ही, नहीं भी बन सकता
है। इसलिए दृष्टिकोण यदि व्यवहार में बदल जाये तो उसके फायदे भी हो सकते हैं और नुकसान
भी।
सेब बाहर से दिखने में कितना ही सुन्दर और बड़ा क्यों न हो, परन्तु यह उतना महत्त्वपूर्ण नहीं है जितना कि अन्दर से वह कितना रसीला, स्वादिष्ट और मीठा है या फिर इसके विपरीत भी ठीक है। उसी तरह देश, संस्था या कम्पनी तब ही महान् और सफल हो सकती है जब उसके कार्यकर्त्ता नैतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से चरित्रवान हों। आज यदि सफलता का कोई मापदंड हो सकता है, तो वह एक मात्र मापदंड होगा, एक आदर्श चरित्रवान व्यक्ति। सभी चमकने वाली चीज़ सोना तो नहीं हो सकती है।
परिश्रम और चरित्र के प्रति जब तक सकारात्मक दृष्टिकोण नहीं होगा, सफलता और दिव्यता सम्भव ही नहीं। मनुष्य समस्त बाह्य मूल्यवान साधनों से भी अधिक मूल्यवान है, परन्तु आज मानवीय दृष्टिकोण का दुर्भाग्य देखिए कि लोग बाह्य ढाँचे को अर्थात् पूंजी, संसाधन और सुविधा को जितना महत्त्व दे रहे हैं उतना चरित्रवान मनुष्य को नहीं। वास्तव में सत्य तो यही है कि व्यक्ति ही सम्पत्ति का सृजनकर्त्ता भी है तथा विनाशकर्त्ता भी।
यह भी सत्य है कि धन सम्पत्ति के लिए जहाँ
एक ओर कार्य कुशलता के साथ-साथ उसके लिए अलग-अलग प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजन करने की आवश्यकता होती है वही उत्पादन क्षमता
में बुद्धि तथा वस्तु के ऊँचे स्तर के उत्पादन के लिए अन्य प्रबन्धन की भी आवश्यकता
होती है, परन्तु यदि नैतिक मूल्य और सकारात्मक दृष्टिकोण का अभाव
है, तो सफलता में निश्चय ही संदेह है।
आज के परिवेश में बुराईयाँ या मूल्यहीनता इस कदर संव्याप्त है कि वह मानव जीवन में आदत के रूप में सक्रिय है। मूल्यहीन सोच की उपज के परिणामस्वरूप जीवन के समस्त पहलुओं की व्याख्या दोषपूर्ण दृष्टिकोण में बदल गई है। किसी भी तरह सफलता हासिल करना है –– चाहे इसके लिए किसी भी प्रकार के नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों की अवहेलना क्यों न करनी पड़े।
इस परिभाषा ने सफलता के प्रति मूल्यवान दृष्टिकोण को
नकारा बना दिया है। इसी प्रकार सकारात्मक दृष्टिकोण भी जब तक व्यावहारिक रूप से कर्म
के जगत में आदत का रूप नहीं धारण कर लेती है, तब तक किसी भी तरह
का फायदा सम्भव नहीं हो सकता है।
जिस प्रकार आसमान की बुलन्दियों को छूने के लिए किसी दरख्त को अपनी जड़े जमीन के
अन्दर गहराई तक पहुँचानी पड़ती है, उसी प्रकार जीवन
की इमारत को सफलता की बुलन्दियों तक पहुँचाने के लिए एक ठोस और आधारभूत दृष्टिकोण का
निर्माण करना अत्यन्त अनिवार्य है। जीवन की समस्त दिशाओं में, चाहे आप ऊँचे और आदर्श पदाधिकारी बनना चाहते हों या एक अच्छा उद्योगपति,
चाहे अच्छा व्यवसायी बनना चाहते हों, दुकानदार
या मालिक या पारिवारिक ज़िम्मेदारी उठने वाला मुखिया, आपको अपने
दृष्टिकोण को महत्त्व देना ही होगा।
ज़िंदगी की राह में या किसी मुकाम पर सफलतापूर्वक पहुँचने में दृष्टिकोण की अपनी एक अहम भूमिका है। मानव की समस्त सफलता उसके इसी आन्तरिक प्रकाश पर निर्भर करता है। आप अपने भव्य जीवन का प्रारम्भ, मात्र दृष्टिकोण में सकारात्मक बदलाव लाकर भी कर सकते हैं।
जिस तरह आकाश की ऊँचाईयों के छूने वाले पेड़ को अपनी जड़ें
पाताल तक भेजनी पड़ती है, उसी तरह सफलता की ऊँचाई छूने वालों
को भी अपनी जड़ें अतल गहराई तक भेजनी चाहिए और वह गहराई है उसका स्वस्थ और सम्यक दृष्टिकोण।
लक्ष्य प्राप्ति के मार्ग में प्रत्येक असफलता में उसके कारणों का पूर्ण मूल्यांकन
करते हुए शिक्षा और सावधानी से धैर्य, लगन और हिम्मत से पुन लक्ष्य
हासिल करने में संलग्न हो जाना ही सकारात्मक दृष्टिकोण का धनी बनना है।
हमारी दूर-दृष्टि शक्तिशाली
तथा नज़दीकी दृष्टि कमज़ोर है
हम अपनी नज़दीकी आन्तरिक दोष या गलतियों के प्रति उपेक्षा की दृष्टि रखते हैं और दूसरों की कमियों के प्रति शक्तिशाली दृष्टि रखते हैं। इस मेग्निफाइंग ग्लास से दूसरा व्यक्ति नहीं बचकर जा सकता है। ऐसे व्यक्ति एक सेकण्ड में दूसरे व्यक्ति की उन सभी बड़ी तो क्या, छोटी-से-छोटी गलतियों को भी निकाल कर उसके सामने रख देते हैं। इंसान अपनी इन बुरी आदतों का इस कदर शिकार है कि बात मत पूछिये।
संसार की 90 प्रतिशत समस्याओं का समाधान इसी धारणा में समाया हुआ है कि इंसान दूसरे की गलतियों को ढूँढ़ना छोड़ दे। यह कहावत अच्छी है कि `इंसान जब दूसरों की गलतियों की तरफ अपनी एक अंगुली उठाता है तो तीन अंगुलियाँ उसके खुद की तरफ होती है'। अवगुणी दृष्टि तो इतनी खराब है कि यदि आदमी स्वर्ग में भी जाये तो वहाँ भी दूसरे में नुक्स निकाल सकता है।
अक्सर मनुष्य जिस चीज़
की खोज करता है वह उसे मिल ही जाया करती है। चरित्रगत विशेषता तथा दोष दोनों ही बातें
आपको किसी भी व्यक्ति के जीवन में मिल जायेंगी। महत्त्वपूर्ण यह है कि आप उस व्यक्ति
में क्या खोजते हैं। आपका दृष्टिकोण सकारात्मक है या नकारात्मक।
एक मनोचिकित्सक के पास एक व्यक्ति आया और बोला –– ``डॉ. साहब मैं अच्छा महसूस नहीं कर रहा हूँ, क्योंकि मैं अस्वस्थ हूँ''। डॉ. ने कहा –– ``कोई बात नहीं, अभी से तुम अच्छा महसूस करो, स्वस्थ हो जाओगे''। प्रत्येक असफलता, सफलता के लिए अनुभव का सोपान बन सकता है और आन्तरिक क्षमता को बढ़ा सकता है जैसा कि अल्वा एडिसन के साथ हुआ।
जो अपने प्रयोग में 1000 बार
असफल हुआ और प्रत्येक असफलता के बाद सकारात्मक सोचता रहा कि चलों मैंने भूल-चूक के एक ओर मार्ग को बन्द कर दिया। इसके विपरीत नकारात्मक सोच वाले लोगों
को असफलता पर हिम्मत हारकर ऊर्जाहीन और हताश होकर सफलता को असम्भव समझकर बैठ जाते हैं।
दृष्टिकोण
का निर्माण कैसे करें?
जीवन के जिस मोड़ पर आप खड़े हैं वहाँ आपका दृष्टिकोण इन निम्नलिखित बातों से अवश्य ही प्रभावित होता है। चाहे वह बचपन से वंशानुगत हो या जिस परिवार और शिक्षा-दीक्षा के परिवेश से आप पलकर आये हैं। जीवन में जिस भी तरह के अनुभव आपको हुए हैं वह समझ यदि पर्याप्त नहीं है फिर भी कोई बात नहीं।
आप फिर से एक नये जीवन की शुरूआत
करें। जीवन में सफलता और सफल जीवन के लिए सर्वप्रथम स्वस्थ दृष्टिकोण बनाने का प्रयास
प्रारम्भ कर दें। यह असम्भव तो नहीं परन्तु कठिन अवश्य है और तब एक नया आन्तरिक सूक्ष्म
प्रकाश आपके नूतन दृष्टिकोण पर छाने लगेगा। इसके लिए जानकारी, ज्ञान, अनुभव और मानसिक एकाग्रता द्वारा विश्लेषण की
क्षमता को बढ़ाना अत्यन्त आवश्यक है।
मीडिया के विशाल सागर में सूचनाओं की अनन्त जलराशि है। जितना भी किसी विषय-वस्तु के बारे में आप जानना चाहते हैं, आप जान सकते हैं। सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक और सांस्कृतिक परिवेश की विशाल पृष्ठ-भूमि में अपने दृष्टिकोण को जितना विशाल बनाना चाहे आप बना सकते हैं, परन्तु खेद है कि आज हम रोजी-रोटी कमाने की कला सीखने के साथ-साथ जीवन जीने की कला को खोते जा रहे हैं।
क्षणभंगुर मूलहीन दृष्टिकोण, विवेक शून्य आनन्द, अंतिम दुःखदाई परिणामों वाले सुख
की ओर जिस कदर आज हम बढ़ते जा रहे हैं उसका अत्यधिक भयंकर परिणाम सभी के सामने स्पष्ट
हैं।