जीवन में संतुलन (Part 2)

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(भाग 1 का बाकि)

संतुलन का क्या अर्थ है –– उतना ही जितना आवश्यक है!

संतुलन का अर्थ बराबर-बराबर नहीं, लेकिन जितना आवश्यक है उतना ही। उदाहरण –– मान लीजिए, आप चावल की खिचड़ी बनाते हैं। क्या आप उसमें सभी चीज़ समान अनुपात में डालते हैं मसलन –– एक किलो चावल हो तो उसमें एक किलो दाल, एक लीटर पानी और एक किलो नमक तो नहीं डालेंगे ना। जिस प्रकार किसी भी भोजन के निर्माण में अलग-अलग अनुपात से चीज़ों को मिलाने, डालने और पकाने के बीच एक संतुलन का होना आवश्यक है।

ठीक उसी प्रकार किसी लक्ष्य प्राप्ति में, अनेक परिस्थितियों और बाधाओं के बीच, श्रेष्ठ और सकारात्मक सोच और कर्म के बीच, अपेक्षित संतुलन ही सफलता दिलाने में सहायक सिद्ध हो सकेगा। किसी सफल उद्योगपति या वैज्ञानिक या चित्रकार या साहित्यकार या और कोई राजनीतिज्ञ, सभी के जीवन में आप एक संतुलन पायेंगे। उस विशेष कार्य की कामयाबी में उनके सभी आन्तरिक गुणों और शक्तियों में एक सही तालमेल था।

उदाहरण : राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी को ले देश को स्वतंत्र करने के उद्देश्य से उन्होंने जिस कामयाबी से मंज़िल तय की उसमें उनका पूरा जीवन-वृत्त अद्भुत संतुलन से भरा था। संकल्प में दृढ़ता, कर्म में कर्मठता, अपराजित आत्म-विश्वास, गौरव पूर्ण मृदुल स्वभाव वाला व्यक्तित्व, सभी नैतिक मानवीय गुण से भरपूर अन्तर मन, समस्त दिव्य और श्रेष्ठ आकांक्षा से भरपूर रचनात्मक भाव और विचार, इच्छा-शक्ति और सार में महान् कर्मयोगी जीवन का सम्पूर्ण आदर्श इत्यादि सभी बातों के बीच एक अद्भुत संतुलन उनके जीवन में देखने को मिलता था। 

नेक और बुलन्द इरादे, अटूट श्रद्धा और निश्चय, प्रबल आत्म-विश्वास, दृढ़ इच्छा शक्ति, आशा पूर्ण विचार, सतत् और कभी न हारने वाला प्रयत्न। इसे कहते हैं–– सफलता के मूल कारक तत्व। यदि आप इस विशेषता के साथ अपनी मंज़िल की ओर बढ़ रहे हैं, फिर कोई भी बाधाएँ, चाहे साधनों का अभाव ही क्यों न हो आपके जीवन के महान् संतुलन को कभी नहीं बिगाड़ सकते हैं।

मान लीजिए कोई व्यक्ति आपके ऊपर क्रोधित होकर आप पर अपमान भरे कटु शब्दों का बौछार कर देता है। परीक्षा की इस घड़ी में संयमित होने की अति आवश्यकता होती है। उसी समय परखने और निर्णय-शक्ति की भी ज़रूरत पड़ती है। सागर के समान समाकर उस समय धैर्य और मधुरता के साथ, मधुर प्रेरणादायक गिनती के बोल बोलने की भी आवश्यकता है।

यदि आप ऐसा कर सकते हैं, तो आप अत्यन्त लोकप्रिय और व्यवहार कुशल व्यक्ति माने जायेंगे। वाणी में मधुरता को संतुलन मात्र से भी कई लोग प्रसिद्ध राजनेता बन गये। इस प्रकार जीवन के विभिन्न पहलुओं और परिस्थितियों में बहुत से आंतरिक गुण और शक्तियों का, निर्मल विवेक के आलोक में ``उतना ही जितना आवश्यक है'' के स्वर्ण सूत्र को प्रयोग कर सकें तो सफलता निश्चित है।

कई बार ऐसा होता है कि लोग उमंग उत्साह में आकर दृढ़ इच्छा-शक्ति का भी प्रयोग करते हैं, परिश्रम भी अधिक करते हैं, समय भी पूरा लगाते है, आलस्य को भी त्याग देते हैं लेकिन उनके पास एक दोषमुक्त योजना नहीं होने से या असफल होने पर असफलता का पुर्नमूल्यांकन या त्रुटियों का सही आंकलन के अभाव में वे अपना धैर्य खो देते हैं और उस कार्य को पूर्ण सफल होने के पूर्व ही वे पलायन कर जाते हैं।

इसलिए सफल व्यक्ति उसे ही कहा जा सकता है जो सभी आवश्यक योग्यता और सामर्थ्य के बीच, योजना और प्रयत्न के बीच संतुलन स्थपित करता है। एक गुण यदि तूफान की तरह हो तो भी व्यक्तित्व असंतुलित और असफल हो जाता है।

संतुलन आन्तरिक स्थिति है, जो अभ्यास से आती है

जैसे कोई व्यक्ति कार चलाना सीख रहा हो तो उसे क्लच, ब्रेक, गियर और स्टेयरिंग –– सभी की जानकारी दी जाती है। फिर भी सीखने के प्रारम्भिक काल में वह उन सभी चीज़ों में ठीक-ठीक तालमेल नहीं बिठा पाता है। जिसके फलस्वरूप प्रारम्भ में उसका मन तनावपूर्ण, भयभीत-सा बना रहता है यह सोच कर कि कहीं कोई दुर्घटना न हो जाये। धीरे-धीरे जब वही व्यक्ति अभ्यासी हो जाता है, तो फिर उसके अन्दर एक भाव जागृत हो जाता है, कि `अब मैं' गाड़ी सहज चला सकता हूँ।

यहाँ तक कि बातचीत करते समय, संगीत सुनते समय भी चालक के अन्दर क्लच, ब्रेक, गियर और स्टेयरिंग के बीच सहज संतुलन बना रहता है। ठीक उसी प्रकार मंज़िल तक पहुँचने के लिए जीवन में विभिन्न मानसिक और शारीरिक शक्तियों के बीच व्यवहार के ठोस धरातल पर भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में ताल मेल बिठाकर कार्य करने के अभ्यास से ही व्यक्ति में संतुलन की कला का विकास होता है। यह धीरे-धीरे ठीक उसी प्रकार स्वाभाविक हो जाता है जिस प्रकार कल के नवजात शिशु से आज का जवान।

वही बच्चा जो अपने प्रारम्भिक जीवन में जिन नन्हें पांव पर स्वयं खड़ा नहीं हो सकता था आपके सहयोग देने से धीरे-धीरे अपने दोनों पैरों पर संतुलित हो खड़ा होना सीख जाता है। कालान्तर में वही बड़ा धावक या पहलवान हो जाता है जिसे आप धक्का देकर भी गिरा नहीं सकते हैं, क्यो? क्योंकि वहाँ संतुलन आन्तरिक अभ्यास के बल पर शक्ति बनकर सफलता दिला रही है।

शेष भाग - 3

प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में सपरिवार पधारें।
आपका तहे दिल से स्वागत है।

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