(भाग 5 का बाकि)
सभी आदतों
के निर्माता हम स्वयं हैं
सभी आदतों का निर्माण हम खुद करते हैं। इसलिए असम्भव नहीं है आदतों से मुक्त होना।
चूंकि हम खुद ही गलत आदतों के निर्माता हैं इसलिए सही आदतों का निर्माण भी निश्चित
रूप से हम खुद ही कर सकते हैं और बुरी आदतों को खुद ही खत्म भी।
क्या पंछी को कभी पिंजड़ा भाता है? चाहे वह हीरे का
ही क्यों न हों। नीलगगन में अपने पंख को फैला मुक्त विचरण कर रहे परिंदे को देख किसका
मन मोहित नहीं हो जाता है। मन के किसी कोने में आश्चर्य मिश्रित ललक किसे नहीं पैदा होती कि काश
वह भी इन परिन्दों की तरह जगत के जंजाल से मुक्त आनन्द के अंतहीन अंतरिक्ष में सदा
उड़ान भरता रहे, परन्तु, आत्मन् इस मुक्ति
या स्वतंत्रता के लिए मात्र लालायित होना पर्याप्त नहीं है, परन्तु
उसके लिए प्रयत्न का मूल्य चुकाना भी तो अपेक्षित है।
आज मनुष्य ही हालत उस तोते की तरह है जिसके पास पर तो है, उसमें उड़ने की क्षमता भी है, परन्तु शिकारी की चालाकी
में भयवश अपनी ही मूढ़ता के कारण बंधन से फँस जाता है।
आप को शायद पता हो कि शिकारी जब तोते को पकड़ता है तो उसकी तरकीब क्या होती है? वह दो बाँस के खंम्भों के बीच एक पतली डोरी बांध देता है। उस डोरी में बाँस
की पतली पनी लगा देता है उस पनी के साथ लाल मिर्च भी जोड़ देता है। जैसे ही तोता मिर्ची
खाने के लिए बाँस की पतली पनी पर बैठता है अपने ही भार से वह नीचे की ओर गिरने लगता
है और घबराहट में वह पत्ती को अपनी ही चोंच से पकड़ लेता है कि कहीं वह गिर न जाये।
उलटा-लटका भय के मारे टें-टें करता रहता
है। उसे उड़ने की अपनी क्षमता का अहसास ही नहीं रहता और शिकारी द्वारा आसानी से पकड़ा
जाता है।
हम अपने द्वारा ही निर्मित अनेक गलत आदतों या संस्कार के बन्धन में खुद ही दुःखों
में फंसकर टें-टें करते रहते हैं। अपने अपूर्व आन्तरिक सामर्थ्य
को भूल अपनी ही आदतों के गुलामी की जंजीर में जकड़े दुःख पाते रहते हैं।
साधारणत व्यक्ति अपनी आदतों का गुलाम होता है। गुलामी की इस बेड़ी में छटपटाता
इंसान उससे मुक्ति की कामना करता रहता हैं। आदतें भी अनेक हैं, जैसे –– व्यसन की आदत, अति भोजन
की आदत, निद्रा की आदत, बहुत प्रकार की
अति आदत, टालमटोल की आदत इत्यादि। कहते हैं –– `अति सर्वत्र वर्जयेत'।
सभी सम्भावनाओं
का आधार है –– आत्म–सुझाव
प्रत्येक व्यक्ति में दिव्य शक्तियों के विकास की अपूर्व सम्भावनायें हैं। अब वैज्ञानिक
रूप से भी यह सत्य सिद्ध हो गया है कि मनुष्य विपुल आन्तरिक शक्तियों का भंडार है।
यह तो भाग्य की विसंगति ही कहेंगे कि कोई व्यक्ति हीरे की खदान पर बैठा दरिद्रता में
अपना जीवन व्यतीत करता हो। हमारी आन्तरिक स्थिति भी कुछ ऐसी ही है। यदि हमें कोई बता
भी दें, तो भी हम उन हीरों को खान से खोदकर बाहर निकालने
का कोई साहसपूर्ण प्रयत्न नहीं करते हैं।
आत्म-सुझाव के माध्यम से व्यक्ति खुद के आन्तरिक शक्ति-स्त्रोत से सम्बन्ध स्थापित कर जीवन की सभी कठिन समस्याओं पर विजय प्राप्त
कर सकता है। बुरे विचार, भाव और संस्कार को मिटाने की सर्वोत्तम
औषधि है –– आत्म-सुझाव।
परन्तु ऐसे सोचने वालों को इस नकारात्मक सोच की चादर को उतार फेंकना चाहिएं ऐसा
नहीं है कि आप इससे मुक्त हो कर नई ज़िन्दगी नहीं जी सकते। इस संसार में ऐसा कोई भी
नहीं जो पूर्ण रूप से दोष मुक्त है। फिर आप ऐसा क्यों सोचते हैं। हीनता, ग्लानी और पश्चाताप को छोड़ उन उपायों पर पुन अपना ध्यान केन्द्रित कीजिए।
आप इन आदतों पर अवश्य विजय प्राप्त करेंगे। हमेशा इन संकल्पों के अन्तर्मन की अतुल
गहराईयों में जाइए, आप निश्चित ही निर्धारित उद्देश्य को उपलब्ध
करने में कामयाबी हासिल कर ही लेंगे।
आदत परिवर्तन
के लिए सुझाव
स्वाभिमान से स्थित होना ही जीवन की पहेली को हल करने का साधन है। स्वाभिमान अर्थात्
स्वमान। स्वमान में स्थिर होने से सभी के लिए और स्वयं के लिए शुभ भावना, शुभ कामना अपने आप ही आ जाती है। स्वमान से स्थित होने का पहला पाठ है `मैं कौन हूँ', इस एक शब्द के उत्तर में ही सारा ज्ञान
और सारी समस्या का समाधान छिपा है। यह एक शब्द ही ज्ञान, गुण,
शक्ति, धन, श्वास सभी खज़ाने
की चाबी हैं। यह पहेली समझदार के लिए सहज और अलवेली आत्मा के लिए गुह्य है।
इस संकल्प को दोहराइये कि आप सर्वशक्तिवान परमात्मा की संतान एक दिव्य सितारा हैं।
जबकि परमात्मा आपका पिता है तो अवश्य ही आप उनके सभी दिव्य शक्तियों के अधिकारी हैं।
निश्चय ही आप प्रभु से उन समस्त शक्तियों को प्राप्त कर अपनी बुरी आदतों पर विजय प्राप्त
कर लेंगे। शुद्धि और निर्मल आत्मिक भावों से भरपूर अपने सर्व सम्बन्ध जैसे माता-पिता, बन्धु-सखा, गुरू-शिष्य, सजनी-साजन उनसे जोड़कर आत्मिक-बातचीत प्रारम्भ कीजिए। अवश्य
ही आप अपने अन्दर उमंग-उत्साह, कुछ कर गुजरने
का साहस और आवश्यक परिवर्तन के लिए अपूर्व दिव्य शक्तियों का स्फूर्तिदायक नूतन स्पन्दन
अनुभव करेंगे।
जिस आदतों का आप नवनिर्माण करना चाहते हैं उसकी एक सुन्दर छवि का निर्माण करें
तथा उसे अपने मानस पर बार-बार अंकित करें। क्योंकि हमारा अचेतन मन जहाँ
हमारी गहरी आदतें हैं वहाँ तक बेहतर सुझाव शब्दों से अधिक चित्रों की भाषा में स्वीकृत
करता है।
कम-से-कम 40 से 50 दिन तक सुझाव की इन प्रक्रिया को प्रतिदिन
4 से 5 बार स्मृति में लाएँ।
आपका अचेतन मन उस शक्तिशाली जिन्न की तरह है जो डिब्बे में बन्द है। उसे जगाने
या उस तक अपने सुझाव भेजने के लिए मन को एक विशेष अवस्था में लाना होगा। तब ही वह आपके
सुझाव को स्वीकार कर क्रियान्वयन करेगा।
अल्फा, बीटा, थीटा और डेल्टा
इन चार तरह की मानसिक तरंगों की अवस्थाओं में प्रत्येक व्यक्ति प्रतिदिन रहता है।
बीटा प्रति सेकण्ड 15 से 50 बार और उससे भी
अधिक प्रति सेकण्ड प्रकम्पन पैदा करता है।
अल्फा 8 से 12, ....15 तक प्रति
सेकण्ड प्रकम्पन पैदा करता है।
थीटा 4 से 8 तक प्रति सेकण्ड
प्रकम्पन पैदा करता है।
डेल्टा 0 से 4 प्रति सेकण्ड प्रकम्पन
पैदा करता है। यह निद्रा की अवस्था है।
यदि आप चाहते हैं कि आपका सुझाव सफल हो तो।
इसके लिए सबसे उपयुक्त समय है प्रात 4 बजे अमृत बेला
में जागकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर एकान्त आसन पर बैठकर प्रभु का स्मरण करते-करते मन को शान्त और आनन्दित अवस्था में ले जाये और तब, जब आप सम्पूर्ण आराम की अवस्था में हैं तब अपने अचेतन मन को स्पष्ट आदेश वैसा
दीजिए जैसी आदत या चरित्र का निर्माण आप करना चाहते हैं।
हमें इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि जहाँ तक हो सके उस सुझाव वाले दृश्य
या संकेत के साथ सारा दिन अपना काम करें अर्थात् सभी कामों में थोड़ा-थोड़ा उसका स्मरण चलता रहे। ऐसा हो सकता है कि शुरू-शुरू
में आपका अचेतन मन यह नया सुझाव ठुकारा दें, परन्तु धैर्य के
साथ आप सुझाव देने का काम करते रहें। उस लक्ष्य में आपको सफलता अवश्य ही मिलेगी।
दृढ़ संकल्प और प्रबल आत्म-विश्वास के बल पर उसे चरित्र
में व्यवहारिक रूप से सचेतन प्रयास सहित अपनाएं और सुझाव के साथ-साथ थोड़ा ध्यान अर्थात् राजयोग का अभ्यास भी करें।
जैसे आप ज्योति पुँज सितारा भृकुटी में विराजमान हैं। अनन्त अंतरिक्ष से भी आगे
सूर्य के समान परमात्मा प्रकाशवान है। उसकी एक तेज शीतल किरण आपकी आत्मा पर पड़ रही
है और आप अपनी आत्मा के अन्दर से उन दुर्गुणों की गन्दगी को खुद से निकलता हुआ महसूस
कर रहे हैं। अलग-अलग अध्याय में ध्यान के अलग-अलग अभ्यास का हम वर्णन करेंगे।
नुकसान पहुँचाने वाली इन अल्पकालिक सुखद मादक आदतों के वशीभूत हो जाना तो बहुत
ही आसान है, परन्तु इससे होने वाली भयंकर हानि के साथ जीना
अत्यधिक मुश्किल है। यदि बुरी आदतों को छोड़ना मुश्किल है तो उसके साथ जीना कौन सा
आसान है। यदि आप इसे नहीं छोड़ सकते तो फिर इसके साथ जीकर देखिए।
अप्रतिष्ठित, घृणित और उपेक्षित सामाजिक जीवन का सतत् सामना
करना ऐसे लोगों के लिए सर्वथा असम्भव हो जाता है। प्रकृति भी उन्हें अप्राकृतिक अमर्यादित
जीवन के लिए कष्ट साध्य विभिन्न प्रकार की मानसिक विकृति उत्पन्न कर उसके सम्पूर्ण
व्यक्तित्व का महाविनाश ही कर देती है। इसलिए आदर्श व्यक्ति के लिए यह आवश्यक हैं कि
जितना जल्दी हो सके उतना जल्दी इससे मुक्त होने का पुरुषार्थ करें। ठीक उसी प्रकार
अच्छी- अच्छी आदतों के साथ जीना आसान है क्योंकि इससे जीवन आनन्द,
हर्षोल्लास और धन्य-धन्य के बोध से भर जाता है।
अच्छी आदतों को जीवन में उतारना कठिन है, परन्तु असम्भव नहीं।
वैसे अच्छाईयों और बुराईयों की मान्यता
समाज, देश काल और अलग-अलग परिवेश
में एक जैसा मान्य तो नहीं है फिर भी उपरोक्त मूलभूत प्रवृत्तियों की जगह प्राय एक
जैसी है। विशाल दृष्टिकोण से आप इसका निर्णय खुद ही करें तो बहुत अच्छा होगा।