(भाग 2 का बाकि)
विचार शक्ति का प्रभाव
यहाँ सर्वप्रथम मेरा अभिमत अनुभव के आधार पर व्यक्त करना
ज़्यादा उपयुक्त समझता हूँ ताकि आप इस बात को आगे और स्पष्ट समझ सकेंगे कि विचार की
अति सूक्ष्म शक्ति, कैसे मानसिक लोक या सूक्ष्म
लोक से लेकर स्थूल लोकों में कार्य करती है। मैं उन महान् आत्माओं को जानता हूँ जो
इस शरीर और स्थूल लोक से पार दिव्य दृष्टि के माध्यम से सूक्ष्म लोकों में जाते हैं।
उनका अनुभव बड़ा ही विचित्र है। उन लोक में मात्र संकल्प करने से ही इस लोक की तरह
दृश्य और वस्तुएँ उनके सामने प्रकट हो जाती हैं। इतने सुनहरे तथा सुन्दर और उसकी विविधता
इतनी उच्च कोटि की होती है कि ऐसी वस्तुओं को इस जगत में देखना बिल्कुल ही असम्भव है।
आज ऊर्जा विज्ञान ने इस बात को तो और भी अधिक स्पष्ट कर दिया है कि यह संसार जैसा हमें ठोस पदार्थ की तरह दिखाई देता है वैसा नहीं है। यह सभी ऊर्जा का ठोस रूप है। वास्तव में यह संसार ऊर्जा रूप है। अर्थात् पूरी दुनिया के अति सूक्ष्म प्रकम्पनों को देख सकने वाले किसी दूरदर्शी परमाणु के विभक्त रूप इलेक्ट्रोन, प्रोटोन, न्यट्रोन को देखने वाले यंत्र से देखा जा सके तो पूरा जगत प्रकाश की तरंगों के अतिरिक्त कुछ भी नहीं दिखाई देगा। उस क्षण आपको लगेगा कि यह संसार स्वप्नवत है।
जिन कंम्पनों से यह संसार निर्मित है उससे भी अति सूक्ष्म प्रकाश तरंगों से वह सूक्ष्म लोक की प्रकृति निर्मित है। इसलिए इस भौतिक संसार में किसी निर्माण के लिये जिस क्रिया-शक्ति की ज़रूरत पड़ती है वह अति मोटे परमाणुओं की प्रकृति का संसार है। सूक्ष्म लोक की प्रकृति इतनी सूक्ष्म है, उसके तत्व इतने सूक्ष्म है कि मात्र संकल्प-शक्ति से ही वहाँ उन चीज़ों का निर्माण हो जाता है। हमारा मनसतत्व उन्हीं अतिसूक्ष्म तत्वों या तरंगों से प्रभावित होता है।
इसलिए
यदि उस जगत में प्रवेश करके कोई भी व्यक्ति अपनी संकल्प-शक्ति
का प्रयोग इस भौतिक संसार में करता है तो वह प्रभाव अत्यधिक शक्तिशाली होता है। लेकिन
उस मानसिक शक्ति को हम यहाँ ही विकसित कर सकते हैं। क्योंकि वह सूक्ष्म तरंग या प्रकृति
का संसार यहाँ भी संव्याप्त है। और यह तरंग-विज्ञान उसी के माध्यम
से अपना चेतन प्रभाव एक जगह से दूसरी जगह तक भेजता है। इस संदर्भ में इतना ही काफी
है।
विचार-शक्ति का वृहद् प्रभाव
अब हम विचार-शक्ति के बृहद प्रभावों पर विश्लेषण करें। मानस जगत की प्रकृति में उत्पन्न
कम्पन का मनुष्य चेतना पर जो प्रभाव या परिवर्तन होता है उसे विचार कहते हैं। सूक्ष्म
लोक की प्रकृति भी अपने ही अलग-अलग अन्तर भागों में अपने मोटे
से पतले रूप में क्रमश व्यवस्थित रहती है, जिसमें अलग-अलग प्रकार के प्रभाव प्रगट होते हैं। जिस प्रकार कामना, शरीर में से अलग-अलग भावनाओं, कामनाओं
भिन्न प्रकार की मनोवृत्तियों की तरंगे पैदा होती है उसी प्रकार मानस शरीर विचारों
का व्यक्त करने का माध्यम है।
जैसा एक व्यक्ति अपने हृदय में विचार करता है, वैसा वह है।
–– हजरत सुलेमान
मनुष्य जो कुछ है वह सभी अपने विचारों से ही है।
–– महात्मा बुद्धि
विचार ही हमारी मुख्य प्रेरणा शक्ति है।
–– विवेकानन्द
मनुष्य अपने विचारों की उपज मात्र है वह जो कुछ सोचता है, वैसा बन जाता है।
–– महात्मा गाँधी
जीवन में मुख्यत विचारों के दो प्रभाव होते हैं ––
1. प्रत्यक्ष : मनुष्य को विचारों के इस प्रभाव का ज्ञान कम है। विचार एक
क्रिया-शक्ति है। यदि वह उसे वाणी
में या कर्म में प्रगट नहीं करें, फिर भी तरंग के रूप में इसका
प्रभाव बहुत अधिक पड़ता है।
2. अप्रत्यक्ष प्रभाव : सभी जानते हैं कि किसी भी कार्य के सम्पादन के
मूल में विचार-शक्ति ही होती है। जिस प्रकार मोटर को चलाने के
लिए विद्युत शक्ति की ज़रूरत पड़ती है, उसी प्रकार कर्म रूपी
मोटर को चलाने के लिए भी विचार रूपी विद्युत की ज़रूरत पड़ती है।
विचार के प्रभाव को मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया
जा सकता है ––
1. विचार करने वाले पर उसका प्रभाव :
(क) आदत या प्रणालिका –– अलग-अलग विचारों की तरंगों
का प्रभाव और उनके आकार प्रकार भी अलग-अलग होते हैं। उनके रंग
भी भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं जैसे उसका कम्पन प्रति सेकण्ड
या उसकी कम्पन की लम्बाई उस विचार के प्रकार पर निर्भर करती है। जैसे लोभ के कुछ विचार
तो ऐसे हैं कि एक बार प्रकम्पन शुरू हो जाये तो अपने आप बिना प्रयास के उनकी पुनरावृत्ति
प्रारम्भ हो जाती है और वह मनुष्य की मानसिक आदत का रूप धारण कर लेती है जिससे छूटना
बड़ा ही मुश्किल हो जाता है।
(ख) गुणों का निर्माण –– बार-बार की यह आदत
हमारे अचेतन मन में उस चीज़ से सम्बन्धित प्रकम्पन ग्रंथि या संस्कार के रूप से स्थापित
होने लगते हैं। जिसके कारण उस व्यक्ति के चरित्र का निर्माण और उसके अनुरूप कर्म का
स्वभाव बन जाते हैं। इस प्रकार विचारकर्त्ता पर आदत और गुणों का निर्माण इसी विचार-शक्ति का फल है।