(भाग 3 का बाकि)
2. विचार तरंग से उत्पन्न प्रभाव :
(क) बाह्य जगत पर इसका प्रभाव प्रकम्पन के रूप में हमारे चारों ओर अंतहीन आकाश की तरह उसमें अति सूक्ष्म प्रकाश और इधर से भी अत्यधिक सूक्ष्म तत्व संव्याप्त है जो अर्ध चेतन है। इसे ही मानस तत्व भी कहते हैं। जैसे ही कोई व्यक्ति एक विचार करता है, तक्षण उससे सम्बन्धित प्रकम्पन पूरे ब्रह्माण्ड में फैल जाते हैं। इसकी तीव्रता उस व्यक्ति के मानसिक केन्द्र पर सर्वाधिक होती है।
जैसे झील में पत्थर फैंकने पर जो लहर पैदा होती है वह केन्द्र से तीव्रता
से पैदा होकर क्रमश परिधि की ओर बढ़ते हुए क्षीण होती चली जाती है। विचार का यह प्रकम्पन
वायुमण्डल में फैलकर अपना प्रभाव तो आकृति के रूप में डालती है, साथ-साथ यह एक वैचारिक छूत की तरह है जो दूसरों के मानस
शरीर में प्रवेश कर सकता है। स्थूल जगत में जिस प्रकार रोशनी और आवाज़ के प्रकम्पन
फैल जाते हैं। उसी तरह यह लहर भी मानसिक तथा भावनात्मक जगत में फैल जाती है,
जिसके कारण अनेक लोग नम्बरवार उन विचारों के अनुकूल गुणों या शक्तियों
से प्रभावित होते हैं।
लोगों में यह विचार एक भी हो सकता है तथा अनेकों का मिश्रण
भी। प्राय मिलेजुले वाले भावों और विचारों का प्रभाव अलग-अलग मानसिक स्तर को प्रभावित करता है। उच्च विचारों
से उत्पन्न तरंग मनोवृत्ति की शक्ति को दिव्य और तेजस्वी बना देता है। जबकि साधारण
और मिले-जुले विचारों का प्रभाव, हमारी
निम्न और साधारण भावना और कामना वाली मनोवृत्ति को प्रभावित करता है। यह उच्च,
मध्य और निम्न कोटि का कोई भी विचार क्यों न हो उसी क्रम से अपना प्रभाव
दूसरों पर डालते हैं।
विचार-प्रकम्पन अपने साथ भावों को तो ले ही जाते हैं, परन्तु उससे सम्बन्धित विषय-वस्तु को नहीं ले जाते हैं। जैसे, यदि कोई गायत्री देवी में भक्ति भाव रखकर प्रार्थना करता है तो कृष्ण भक्तिभाव वाले के मन में गायत्री देवी के लिये नहीं अपितु, कृष्ण की भक्ति भाव को ही बढ़ायेगा। कृष्ण का विषय नहीं, परन्तु तरंग जो उस विचार की भावना है वह दूर-दूर तक फैल जायेगी और अपना अलग-अलग प्रभाव पैदा करेगी।
यदि यही तरंग किसी ऐसे व्यक्ति के मानसिक अवस्था को स्पर्श करता है, जो भक्ति पूजा में श्रद्धा नहीं रखता है तो उसके अन्दर उच्च आदर्शमय विचारों को पैदा करेगी। ठीक उसी प्रकार क्रोध, ईर्ष्या या स्वार्थ के प्रकम्पन बिना किसी व्यक्ति को लक्ष्य बनाकर वायुमण्डल में फैलाया जाये तो उसका असर ठीक उसी तरह उसके अनुकूल उन सभी मनोवृत्ति वाले के अन्दर यह भाव तरंगें पैदा कर देंगें। उन तरंगों का प्रभाव अनायास ही किसी व्यक्ति में बढ़ जाने से हो सकता है किसी तीसरे व्यक्ति की साधारण भूल में क्रोध की तरंग को और बढ़ाकर हत्या करा दें।
आये दिन कोर्ट में इस तरह की केस हिस्ट्री आया करती है। जिसमें अपराधी
इस बात को पश्चाताप के साथ स्वीकार करता है कि मैं हत्या नहीं करना चाहता था लेकिन
पता नहीं किस भावावेश की प्रबलता के कारण मैंने यह कुकृत्य कर डाला। इस प्रकार की विचार
तरंगों का प्रभाव सकारात्मक तथा नकारात्मक दोनों ही दिशाओं में पड़ता है। इस तरह वह
गुप्त हत्यारा जिसने हत्या तो नहीं की परन्तु हत्यारे में अपनी बुरी मनोवृत्ति का प्रकम्पन
उसके अन्दर डालने वाला प्रेरक बना। इसलिए वह भी किसी निंश्चित मात्रा में उस बुरे कर्म
फल का उत्तरदायी हो जाता है।
(ख) आकृति के रूप में : वायुमण्डल में विचार प्रकम्पन का दूसरा प्रभाव हमारे चारों तरफ ब्रह्माण्ड में व्याप्त इस सूक्ष्म अर्ध चेतन प्रकृति में विचार प्रकम्पन से रूप या आकृति का निर्माण होता है। जाने-अनजाने जैसे ही हम विचार करते या अपने अन्दर जैसा भी मनोभाव पैदा करते हैं उसी क्षण या मनोवृत्ति थोड़े समय के लिए इस प्रकृति में उसके अनुरूप आकार ग्रहण कर लेती है। इस आकृति में एक सजीवता सी होती है, जो अपने विचार या भाव के अनुकूल तीव्रता से काम करने की शक्ति रखता है।
उदाहरण के लिए यदि आप अमेरिका में बैठे किसी व्यक्ति के लिए घृणा या दुष्टता का भाव रखते हैं तो आपसे उत्पन्न कृत्रिम सजीव आकृति इस संसार में सिर्फ उसी व्यक्ति को ढूँढ़कर उसको आपकी मनोवृत्ति या विचार के अनुसार नुकसान करेगी। इसके विपरीत यदि आप करुणा, प्रेम और ऐसा कोई भी महान् संकल्प किसी के लिए करते हैं तो तक्षण आपका फरिश्ता स्वरूप या आकृति उस व्यक्ति के पास पहुँचकर उसका फायदा या कल्याण करेगी।
जैसे माँ का अपने बच्चे के प्रति उत्पन्न भाव,
आकृति रूप में उसके पास पहुँचकर उसकी रक्षा करती है। ऋषियों के वरदान,
श्राप या दुआएँ इसी तरह से कार्य किया करती हैं। फरिश्ता स्वरूप से मन्सा
सेवा में इस क्रिया की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इस आकृति में स्वज्ञान तथा
सुख-दुःख का बोध नहीं रहता है। यह आकृति विचारों और मनोभाव से
प्रभावित सुन्दर रंग या कुरुपता लिए होता है। इस विचार, आकृति
का समय काल कुछ पल, महीनों या वर्षों तक रह सकता है।
इसका आकार, प्रकार रंग और इसका समय-काल निम्नलिखित बातों से प्रभावित
होता है ––
1. गुणों के
साथ उसके रंग का निर्धारण (गुण अर्थात् पवित्र और दिव्य विचार,
अवगुण अर्थात् निम्न कोटि का विचार) होता है।
2. इसकी आकृति
इसकी अच्छाई या बुराई पर निर्भर करता है।
3. विचार और
भावनाएँ जितनी स्पष्ट होंगी, उतनी ही इसकी परिधि रेखा स्पष्ट
होगी।
4. दृढ़ता और तीव्रता से इसका समय काल सम्बन्धित होता है ––
w यदि कोई
चीज़ प्रति सेकण्ड 0 से 50 बार कांपती है
तो ध्वनि पैदा होने लगती है।
w यदि इस कम्पन को और एक सीमा तक बढ़ाया जाये तो अल्ट्रा साउंड
पैदा होने लगता है।
w यदि इस कम्पन को और एक सीमा तक उत्तरोतर बढ़ाया जाये तो
विद्युत प्रारम्भ हो जाती है।
w यदि इस कम्पन को और एक सीमा तक बढ़ाया जाये तो यह विद्युत
प्रकाश में बदल जाता है।
w यदि इस कम्पन को और एक सीमा तक बढ़ाया जाये तो प्रकाश का
आँखों से दिखना बन्द हो जाता है। जैसे एक्स रे, इननरेड किरणें, यदि इस प्रकम्पन को और सूक्ष्म किया जाये
तो रंगों का प्रभाव शुरू हो जाता है।
हमारे विचार का गुण धर्म क्या है उसी से रंग का निर्माण
होता है। जैसे ऊँचे प्रेम का भाव चमकदार गुलाबी रंग पैदा करता है तो भक्ति भाव पीला
रंग। मतलब आपके विचार से प्रगट आकृति सुन्दर रंगों वाला या कुरूप रंगो वाला होगा यह
उसकी गुणवत्ता पर आधारित होगा।
मान लीजिए आपने लोभ के विचार पैदा किये तो उससे बनने वाली
आकृति छीन लेने वाली, मुड़ी हुई कील जैसी होगी
या यदि पवित्र निर्मल भाव या विचार होंगे तो सुन्दर अंकुडीदार ऊपर उठी हुई आकाशीय लाल रंग की होगी।
जितना पवित्र, स्पष्ट और दैवी गुणों से सम्पन्न भाव या विचार होंगे उतनी ही स्पष्ट आकृति
का निर्माण होगा।
रूप आकृति
का समय इस बात पर निर्भर है कि उस विचार में कितनी दृढ़ता और तीव्रता है। यदि साधारण, व्यर्थ, आकारण भाव
या विचार होंगे तो यह विचार आकृति बनकर कुछ ही क्षणों में वापस इस प्रकृति में बिखरकर
मिल जायेंगे।